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Jharkhand Politics : झारखंड में सबको साधने की कांग्रेसी रणनीति का कितना होगा असर

झारखंड देश के ऐसे गिने-चुने प्रदेशों में है जहां कांग्रेस सत्तारूढ़ गठबंधन का प्रमुख हिस्सा है। Jharkhand Politics- कांग्रेस ने विधायक प्रदीप यादव को विधानसभा में पार्टी विधायक दल का उपनेता बनाकर संदेश दिया है कि वह पिछड़ी जातियों के बड़े वोट बैंक को नजरंदाज नहीं करेगी।

By Madhukar KumarEdited By: Published: Thu, 09 Dec 2021 02:41 PM (IST)Updated: Thu, 09 Dec 2021 02:41 PM (IST)
Jharkhand Politics : झारखंड में सबको साधने की कांग्रेसी रणनीति का कितना होगा असर
Jharkhand Politics-झारखंड में सबको साधने की कांग्रेसी रणनीति का कितना होगा असर

रांची, (प्रदीप सिंह) । झारखंड देश के ऐसे गिने-चुने प्रदेशों में है, जहां कांग्रेस सत्तारूढ़ गठबंधन का प्रमुख हिस्सा है। कांग्रेस आलाकमान ने सीनियर विधायक प्रदीप यादव को विधानसभा में पार्टी विधायक दल का उपनेता बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह पिछड़ी जातियों के बड़े वोट बैंक को नजरंदाज करने परहेज करेगी।

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2019 में लोकसभा चुनाव के पहले झारखंड राजद की प्रदेश अध्यक्ष रहीं अन्नपूर्णा देवी ने भाजपा का दामन थामा। चुनाव जीतने के बाद उन्हें भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी मिली। केंद्रीय कैबिनेट में हालिया फेरबदल में उन्हें शिक्षा राज्यमंत्री का पद मिला। अन्नपूर्णा देवी फिलहाल उत्तर प्रदेश चुनाव में भाजपा की सह प्रभारी हैं।

अन्नपूर्णा को आगे कर भाजपा ने यह संकेत दिया है कि वह आने वाले दिनों में झारखंड में ओबीसी तबके को रिझाने की रणनीति पर काम करेगी। अब इसी नक्शेकदम पर कांग्रेस भी चल पड़ी है। कांग्रेस ने तेजतर्रार विधायक प्रदीप यादव को विधानसभा में अपना उपनेता घोषित किया है। यादव किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं और उनकी छवि जुझारू नेता की रही है।

कांग्रेस ने उन्हें जिम्मेदारी देकर यह संकेत दिया है कि आने वाले दिनों में उनका उपयोग ओबीसी मतों को रिझाने में होगा। इससे पहले प्रदेश कांग्रेस के पुनर्गठन में भी झारखंड के जातीय और सामाजिक समीकरण का कांग्रेस ने खूब ध्यान रखा। प्रदेश अध्यक्ष से लेकर कार्यकारी अध्यक्षों के चयन में इसका ख्याल रखा गया। क्षेत्रीय क्षत्रपों को भी जगह दी गई।

छात्र संगठन एनएसयूआइ और युवा कांग्रेस की संगठनात्मक पृष्ठभूमि से आए तपे-तपाए नेता राजेश ठाकुर को अध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई। इसके अलावा कार्यकारी अध्यक्षों में बंधु तिर्की, गीता कोड़ा, जलेश्वर महतो और शहजादा अनवर को जगह मिली। बंधु तिर्की की गिनती कद्दावर आदिवासी नेताओं में होती है और उनकी काफी सक्रियता है। गीता कोड़ा का प्रभाव कोल्हान क्षेत्र में है। जलेश्वर महतो आबादी की दृष्टिकोण से बड़े कुर्मी समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं।

उधर विधायक दल के नेता के तौर पर आलमगीर आलम परंपरागत अल्पसंख्यक वोटरों पर प्रभाव रखते हैं। इस व्यापक रणनीति के पीछे कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी और पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री आरपीएन सिंह हैं, जिन्होंने 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ तालमेल कर भाजपा को पीछे धकेलने में कामयाबी पाई।

प्रदीप यादव की ताजा नियुक्ति के पीछे ओबीसी राजनीति पर अधिकाधिक केंद्रित रणऩीति है, जो आने वाले दिनों में रंग दिखाएगा। इसी के तहत आरपीएन सिंह ने पिछड़ों का आरक्षण प्रतिशत 27 प्रतिशत करने को लेकर दबाव बनाया है। इसपर किसी प्रकार का विवाद भी नहीं है। सत्तारूढ़ गठबंधन में इसे लेकर सहमति है। भाजपा भी इसकी पक्षधर है। इस मांग को पिछले विधानसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव घोषणापत्र में शामिल किया था।


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