लोकतंत्र के प्रति जिंदा है धान की उम्मीदें
रांची पेशे से किसान सरोज धान 82 साल के हो चुके हैं।
राज्य ब्यूरो, रांची : पेशे से किसान सरोज धान 82 साल के हो चुके हैं। उम्र के अंतिम पड़ाव पर हैं। कई बीमारियों ने उन्हें अपनी चपेट में ले रखा है, परंतु लोकतंत्र के प्रति उनकी उम्मीदें अब भी जिंदा हैं। सरोज शुक्रवार की शाम सिल्ली प्रखंड मुख्यालय से तकरीबन तीन किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित जतरा गांव की एक पुलिया पर बैठे मिले। चुनाव की बात छेड़ने पर उनके चेहरे पर मिश्रित भाव उभर आते हैं। वे पुलिया से उठ खड़े होते हैं और चहलकदमी शुरू कर देते हैं। बातचीत के क्रम में चुनाव के पुराने अनुभवों को वे साझा करते हैं।
धान कहते हैं, लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए निर्वाचन प्रक्रिया जरूरी है। यह देश को गढ़ने वाली प्रक्रिया है, जिसमें सभी को हिस्सा लेना चाहिए। खुद को बहुत थका-थका महसूस करता हूं, परंतु आज भी वोट जरूर देता है। परिजन गाड़ी पर बिठाकर मोदीडीह वोट डालने के लिए ले जाते हैं। कहते हैं आज की निर्वाचन की प्रक्रिया पहले से भिन्न है। बैलेट बॉक्स की जगह इवीएम ने ले लिया है। तब इतनी सिक्यूरिटी भी नहीं होती थी। किसी तरह का कोई दबाव भी नहीं होता था। आज एक व्यक्ति पर कई दल मतदान के लिए एक तरह से दबाव बनाते हैं। मत खरीदे और बेचे जाने लगे हैं, जो लोकतंत्र के लिए कई उचित नहीं है। कुछ कदम चलने में ही वे हाफ जाते हैं और पुलिया पर बैठ जाते हैं। लेकिन वो चुनाव को लेकर बहुत जागरूक हैं।
(दैनिक जागरण उनके दीर्घायु होने की कामना करता है)।