जहर उगल रही हिडाल्को, खतरा टला नहीं
विनोद श्रीवास्तव रांची बोल्डर की कई मीटर चौड़ी मजबूत घेराबंदी तोड़ते हुए पिछले दिनों हुआ हादसा एक बार फिर से हो सकता है।
विनोद श्रीवास्तव, रांची : बोल्डर की कई मीटर चौड़ी मजबूत घेराबंदी तोड़ते हुए पिछले दिनों भरभरा कर ढह गई रेड मड की ढेर निकट भविष्य में और भी तबाही मचा सकती है। यह तबाही कई स्वरूप में देखने सामने आ सकती है। एक तो रेड मड को स्टोर करने वाली मौजूदा संरचना निकट भविष्य में नौ अप्रैल की घटना को फिर से दोहरा सकती है। दूसरी ओर हिडाल्को से निकलने वाला घातक रासायनिक तत्व पास ही बह रही स्वर्णरेखा नदी को तेजी से प्रदूषित कर रहा है, जिसका सीधा प्रभाव आम जनजीवन पर पड़ेगा। रेड मड पौंड को नजदीक से जानने और हिडाल्कों में कई वर्षो तक अपनी सेवा दे चुके ग्रामीणों ने यह आशंका जताई है।
लगाम, मार्दू, कोकोराना समेत आसपास के ग्रामीणों के मुताबिक हिडाल्को से जब उत्पादन शुरू हुआ था, लाल पानीनुमा कास्टिक विशालकाय पौंड में गिराया जाता था। कालांतर में टेक्नोलॉजी के अपग्रेड होने के बाद इस कास्टिक का स्वरूप गाढ़ा तरल पदार्थ सा हो गया। टेक्नोलाजी और भी अपग्रेड हुई तो यह गीली मिट्टी और बाद में डस्ट का रूप धारण कर लिया। डस्ट उड़े नहीं, सो इसपर पानी की अनवरत छिड़काव भी जारी है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि ढेर के नीचे कई दशक का कास्टिक पानी जमा है, जो पहाड़नुमा डस्ट की ढेर को अपनी ओर खींच रही है। ऐसे में अभी दक्षिणी-पश्चिमी छोर की ही दीवार ढही है। यह कहना कि कल अन्य दिशा की दीवार भी इसकी चपेट में आ जाए तो गलत नहीं होगा।
कंपनी की मौजूदा गतिविधियों पर ग्रामीण कई सवाल खड़ा करते हैं। उनका स्पष्ट मानना है कि कंपनी अगर रेड मड की ढेर को और भी विस्तार देने के लिए जब 100 करोड़ से भी अधिक की लागत पर उसकी घेराबंदी करवा सकती है तो फिर कुछ करोड़ रुपये लगाकर नया डंपिंग यार्ड क्यों नहीं बनवाती। वे दो टूक कहते है, एकरारनामे के मुताबिक अगर कंपनी डंपिंग यार्ड के लिए जमीन खरीदती है तो उसे संबंधित रैयतों को नौकरी देनी पड़ेगी, जिससे वह गुरेज करना चाहती है। ऐसे भी नई टेक्नालाजी आने के बाद कंपनी में स्थाई कामगारों की संख्या में काफी कमी आई है, कंपनी इस कमी को बरकरार रखते हुए आउटसोर्सिग के सहारे अस्थाई कामगारों से अपना काम निकालना चाहती है।
पान जहरीला, कहती है झारखंड सरकार की रिपोर्ट
कंपनी से रिसने वाले रासायनिक तत्वों की वजह से स्वर्णरेखा प्रदूषित हो रही है। झारखंड सरकार की टेस्टिंग लेबोरेट्री ने अपनी जांच में इसे प्रमाणित किया है। रिपोर्ट के मुताबिक प्लांट से निकलने वाले पानी का पीएच लेवल, टर्बीडिटी, रंग, हार्डनेस, क्लोराइड, फ्लोराइड, आयरन आदि की मात्रा निर्धारित मानक से कहीं अधिक है।
नाम बदलते ही बंद हो गई सीएसआर की गतिविधियां
ग्रामीणों का आरोप है कि जबतक हिडाल्को इंडाल था, उसकी सीएसआर गतिविधियां ठीक थी। मोदीडीह, कलवाडीह, कांटीडीह, सिंगपुर, पिस्का, मेदनी गांवों में जहां एक ओर बुनियादी सुविधाओं पर खर्च किए जाते थे, वहीं मेडिकल कैंप भी लगाए जाते थे। रात्रि पाठशाला का भी आयोजन होता है। ग्रामीणों को स्वावलंबी बनाने के लिए कई प्रशिक्षण कार्यकम चलाए जाते थे, जो ठप है।