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राज्य के अफसर न तो सीएम की सुनते हैं और न अदालत की : हाई कोर्ट

राची : झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य के अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कड़ी टिप्पण करते हुए कहा कि अिध्धकरी न सीएम की बात मानते हैं, न कोर्ट की? यह अवमानना है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 15 Aug 2018 08:28 AM (IST)Updated: Wed, 15 Aug 2018 08:28 AM (IST)
राज्य के अफसर न तो सीएम की सुनते हैं और न अदालत की : हाई कोर्ट
राज्य के अफसर न तो सीएम की सुनते हैं और न अदालत की : हाई कोर्ट

राची : झारखंड हाई कोर्ट ने राज्य के अधिकारियों की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि राज्य के अधिकारी न तो मुख्यमंत्री रघुवर दास की सुनते हैं और न ही कोर्ट के आदेश का पालन करते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के अधिकारी वन्य जीवों के संरक्षण को लेकर बिल्कुल गंभीर नहीं हैं। सरकार को ऐसे अधिकारियों का नाम सामने लाना चाहिए। बाघों के संरक्षण की मांग वाली विकास महतो की याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस अपरेश कुमार सिंह व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की कोर्ट ने यह टिप्पणी की।

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हाई कोर्ट ने कहा कि 28 फरवरी 2017 के आदेश का अब तक पालन नहीं करना कोर्ट की अवमानना है। कोर्ट ने इस मामले में संबंधित विभागों से स्पष्टीकरण मांगा है कि अबतक आदेश का पालन क्यों नहीं किया? यह भी पूछा गया है कि वन्य जीवों के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार से मिले बजट को राज्य सरकार ने अबतक रिलीज क्यों नहीं किया? मामले की अगली सुनवाई 30 अगस्त को होगी।

मंगलवार को सुनवाई के दौरान न्याय मित्र ने कोर्ट को बताया कि पलामू टाइगर रिजर्व में काम करने वाले दैनिक कर्मचारियों को करीब 5 महीने से वेतन नहीं मिला है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने जून माह में ही राशि राज्य सरकार को भेज दी थी और वेतन दो सप्ताह में रिलीज करने का निर्देश भी दिया था। लेकिन अभी तक राज्य सरकार ने इस राशि को रिलीज नहीं किया है।

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बैठक में नहीं पहुंचे अधिकारी

हाई कोर्ट के आदेश पर मुख्यमंत्री रघुवर दास की अध्यक्षता में 8 फरवरी 2018 को एक बैठक हुई थी। जिसमें संबंधित विभागों को समन्वय बनाकर वन्य जीवों के संरक्षण करने का निर्देश दिया गया था। इसके लिए एक वर्कशॉप आयोजित किया जाना था। लेकिन उक्त वर्कशॉप में कृषि विभाग, ऊर्जा विभाग के अलावा स्वास्थ्य विभाग, खाद्य आपूर्ति विभाग, सामाजिक सुरक्षा विभाग, पथ निर्माण विभाग सहित अन्य विभागों के अधिकारी बिना कारण बताए ही गायब रहे। जिसपर कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि वन्यजीव कुछ बोल नहीं सकते, इसलिए कोर्ट को बोलना पड़ रहा है। कोर्ट ने इस बैठक में नहीं जाने वाले विभागों से स्पष्टीकरण मागा है। बता दें कि विकास महतो ने हाई कोर्ट में इसको लेकर जनहित याचिका दाखिल की है।

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मंगल डैम की ऊंचाई घटने से 634 की जगह अब सिर्फ 232 परिवार होंगे विस्थापित सुनवाई के दौरान मंडल डैम के बनने से विस्थापित होने वाले परिवारों को मिलने वाले मुआवजे का मुद्दा उठाया गया। जिस पर सरकार की ओर से कहा गया कि डैम के बनने से पहले 15 गांवों के करीब 634 परिवार विस्थापित हो रहे थे। लेकिन पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) के निर्देश पर अब डैम की ऊंचाई 367 मीटर से घटाकर 341 मीटर की जा रही है। जिसके चलते 232 परिवार ही विस्थापित हो रहे हैं। विस्थापित परिवारों को मुआवजा उसी समय का मिलेगा जब उक्त जमीन का अधिग्रहण किया गया है।

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