1857 Rebellion: झारखंड में 1857 के नायक जयमंगल पांडेय व नादिर अली, क्यों नहीं मिला शहीद का दर्जा
1857 Rebellion हजारीबाग में आज भी यह गीत गूंजता है- जयमंगल पांडेय नादिर अली दोनों सूबेदार रे।। दोनों मिलकर फांसी चढ़े हरजीवन तालाब रे।। 1857 की क्रांति में दोनों नायकों का अतुलनीय योगदान है। लेकिन आज तक इन्हें शहीद का दर्जा नहीं मिला है।
रांची, (संजय कृष्ण)। Jaimangal Pandey and Nadir Ali हजारीबाग के खीरगांव में 1793 को जन्में जयमंगल पांडेय 1818 में ब्रिटिश सेना में भर्ती हुए और फिर सूबेदार बने। अंग्रेजों की एक महत्वपूर्ण छावनी डोरंडा, रांची में थी, जहां जयमंगल पांडेय कार्यरत थे। गया के रहने वाले नादिर अली भी इनके साथ ही थे। जब बैरकपुर छावनी में विद्रोह हुआ और इसकी आंच में देश के अन्य हिस्सों की छावनियां सुलगने लगीं तो डोरंडा छावनी भी अछूता नहीं रह सकता। सब जानते हैं, क्रांति की निश्चित तिथि 21 मई 1857 थी। किंतु इसका विस्फोट दो माह पूर्व 29 मार्च 1857 को हो गया था। इसकी लपटें मेरठ, दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, झांसी, बिहार आदि में फैल गई। 13 जुलाई 1857 को दानापुर छावनी पटना में क्रांति हुई तथा 4 जुलाई को पीर अली सहित 36 व्यक्तियों को फांसी दी गई।
बगावत इतनी तेज हुई कि परेशान हो गए अंग्रेज
यह समाचार दावानल की तरह फैल गया। 30 जुलाई 1857 को हजारीबाग स्थित रामगढ़ बटालियन के आठवें नेटिव के दो दस्तों ने दिन के एक बजे क्रांति कर दी। उस समय छोटानागुपर का कमीशनर ई. टी. डाल्टन था। उसने क्रांति को दबाने के लिए लेफ्टिनेंट ग्रहम के नेतृत्व में रांची स्थित रामगढ़ बटालियन की दो टुकडिय़ां भेज दी। इसमें 25 इररेगुलर घुड़सवार एवं दो छह पौंड वाले बंदूकधारी भी सम्मिलित थे। रामगढ़ पहुंचने पर इस दस्ते ने भी बगावत कर दी। जिसका नेतृत्व जमादार माधव सिंह कर रहे थे। शीघ्रता से रांची की ओर प्रस्थान कर गए। वहां बुड़मू के क्रांतिकारियों से उनकी भेंट हो गई। उसी दिन डोरंडा (रांची) की बटालियन ने विद्रोह कर दिया। इस प्रकार छोटानागपुर कमिश्नरी में क्रांति की लपटें तेज हो गईं और अंग्रेजों के छक्के छूट रहे थे।
सैनिक टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे थे दोनों योद्धा
30 सितंबर को डोरंडा से स्वतंत्रता सेनानी बाबू कुंवर सिंह की सहायता के लिए कूच कर गए। रास्ते में चुटिया के जमींदार भोला सिंह उनके साथ हो गए। तब वे कुरू, चंदवा, बालूमाथ होते हुए चतरा की ऐतिहासिक स्थल पहुंचे। उस समय चतरा का तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर सिम्पसन था। उसे तार द्वारा यह सूचना मिली कि क्रांतिकारी सेनानी भोजपुर जा रहे हैं। इस सैनिक टुकड़ी का नेतृत्व जयमंगल पांडेय और नादिर अली खां कर रहे थे। इस क्रांतिकारी दस्ते में ठाकुर विश्वनाथ शहदेव (बड़कागढ़) तथा उनके दीवान पांडेय गणपत राय सम्मिलित थे। मार्ग में सलगी के जगन्नाथ शाही जो कल्पनाथ शाही के पुत्र तथा बाबू कुंवर सिंह के भाई दयाल सिंह के दामाद थे ने भी सहयोग किया। इसमें शेख भिखारी, टिकैत उमराव सिंह, चमा सिंह, जमींदार माधव सिंह तथा भोला सिंह भी सम्मिलित थे। कमीशनर डाल्टन ने इस स्वतंत्रता संग्राम की धधकती ज्वाला को बड़ी कठिनाइयों से 23 सितंबर को हजारीबाग में शांत करने में तो सफलता पा ली।
चतरा युद्ध में मारे गए थे 56 सरकारी सैनिक
हालांकि चतरा का युद्ध डिप्टी कमिश्नर सिम्पसन को काफी मंहगा पड़ा। चतरा का युद्ध 1857 ई. के बिहार का एक निर्णायक युद्ध था। इस खूनी संघर्ष में 56 सरकारी सैनिक मारे गए। इसमें 46 यूरोपीय सैनिक तथा 10 सिख सैनिक थे। अनेक ब्रिटिश सैनिक घायल हुए। इनमें चार सैनिक इतने गंभीर रूप से घायल हुए कि उनके अंग भंग करने पड़े। 100 से अधिक घायल सैनिकों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। चतरा शहर के पश्चिमी छोर पर चतरा गया मार्ग के उत्तर में वन प्रमंडल कार्यालय चतरा के पीछे कैथोलिक आश्रम के निकट अंग्रेज एवं सिख सैनिकों को एक ही कुएं में डाल दिया गया था। इस युद्ध में तीन अक्टूबर को सूबेदार जयमंडल पांडेय और सूबेदार नादिर अली खां सिम्पसन के सामने पेश किए गए। 1857 की गदर की धारा 17 के अनुसार उन्हें चार अक्टूबर को उन्हें फांसी दी गई। जहां दो दिन पूर्व 2 अक्टूबर को उन लोगों ने शौर्य का परिचय दिया था। 150 सैनिकों को जहां आम के पेड़ों पर लटका कर फांसी दी गई वह स्थल फांसीहारी तालाब मंगल तालाब, भूतहा तालाब, हरजीवन तालाब आदि नामों से इस क्षेत्र में जाना जाता है। वास्तव में यह एक ही तालाब है जो अभी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया चतरा शाखा के पीछे जेल और अंचल कार्यालय के बीच पड़ता है। उसी तालाब के पास स्वतंत्रता के अनेक पुजारियों ने स्वतंत्रता की बलि बेदी पर अपने प्राणों को मां भारती पर अर्पित कर दिया था।
बिहार के गया जिले के रहने वाले थे नादिर अली
नादिर अली गया के रहने वाले थे, लेकिन उनके परिवार का पता आज तक नहीं चल सका। जयमंगल पांडेय के वंशज सच्चिदानंद पांडेय अपने पूर्वजों की थाती को संजोए हुए हैं। जयमंगल पांडेय न होते तो रांची में 1857 की क्रांति को सफलता नहीं मिल पाती। इसकी सफलता के पीछे जयमंगल पांडेय और नादिर अली की मुख्य भूमिका थी, जिन्होंने विद्रोह कर आजादी की धार को और तेज कर दिया। ब्रिटिश दस्तावेज में वे एक राजद्रोही सैनिक के रूप उल्लेखित हैं, लेकिन देश के लिए तो वे वीर बलिदानी हैं। मंगल पांडेय को तो देश याद करता है, लेकिन जयमंगल पांडेय इतिहास में दर्ज ही नहीं हैं। सच्चिदानंद पांडेय को इस बात का मलाल है, उन्हें अपने राज्य में ही याद नहीं किया जाता। उनकी पुण्यतिथि पर चतरा में जरूर कार्यक्रम का आयोजन होता है और उन्हें नमन किया जाता है। सच्चिदानंद पांडेय आज भी जयमंगल पांडेय के लकड़ी के बक्से को संभालकर रखे हैं।