रांची सदर अस्पताल में शुरू हुआ हीमोफिलिया का इलाज
रांची सदर अस्पताल में हीमोफिलिया का इलाज शुरू हो गया। इसके साथ ही मरीजों को फैक्टर 8 उपलब्ध होने लगा। पहले दिन ही 8 से 9 मरीज हीमोफिलिया के पहुंचे।
जागरण संवाददाता, राची : रांची सदर अस्पताल में हीमोफिलिया का इलाज शुरू हो गया। इसके साथ ही मरीजों को फैक्टर 8 और 9 की दवा भी मिलने लगी। शुक्रवार को स्वास्थ्य सचिव डॉ. नितिन कुलकर्णी ने सदर अस्पताल में हीमोफिलिया डे केयर सेटर का उद्घाटन किया। सेटर में अभी चार बेड उपलब्ध कराए गए हैं। स्वास्थ्य सचिव डॉ. कुलकर्णी ने सिविल सर्जन कार्यालय सभागार में शहर के निजी अस्पतालों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक भी की। इसमें हिमोफिलिया को लेकर चर्चा हुई। डॉ. कुलकर्णी ने कहा कि सेटर में बेड बढ़ाए जाएंगे। कहा कि जिले में हीमोफिलिया के बारे में जागरूकता फैलाने की जरूरत है। इसमें आईईसी अपनी भूमिका निभाए। उन्होंने हीमोफिलिया से संबंधित पोस्टर बैनर उपलब्ध करवाने की बात कही। सदर अस्पताल के शिशु वार्ड में जाकर सुविधाओं की जानकारी ली और कई निर्देश भी दिये। रिम्स पर नहीं रहेगी निर्भरता : सदर अस्पताल में हीमोफिलिया डे केयर सेटर शुरू होने से रिम्स पर निर्भरता खत्म हो गई है। पहले फैक्टर 8 सिर्फ रिम्स में मिलता था। एक सेंटर होने से लोगों को काफी परेशानी होती थी। इसे देखते हुए सदर अस्पताल में दूसरी यूनिट चालू की गई। हीमोफिलिया सोसाइटी के प्रतिनिधि संतोष ने बताया कि इस बीमारी से पीड़ित लोगों को काफी राहत मिलेगी। यहां मरीजों को परामर्श के साथ फैक्टर 8 और 9 की दवाएं भी दी जाएगी।
होल ब्लड प्रिस्क्राइब करना बंद करें चिकित्सक : स्वास्थ्य सचिव डॉ. कुलकर्णी ने कहा कि चिकित्सक मरीजों को होल ब्लड प्रिस्क्राइब करना बंद करें। कहा कि इतने ब्लड से दो या तीन मरीजों को लाभ पहुंचाया जा सकता है। डॉ. कुलकर्णी ने निजी अस्पताल के प्रतिनिधियों को कंपोनेंट सेपरेटर इंस्टॉल करने का भी निर्देश दिया। निजी अस्पताल खुद लगाएं ब्लड डोनेशन कैंप
स्वास्थ्य सचिव ने कहा कि निजी अस्पताल खुद के प्रयास से ब्लड डोनेशन कैंप लगाएं। उन्होंने कहा कि पिछले छह महीने में राज्य के करीब 343 निजी अस्पतालों ने लगभग 32,989 यूनिट ब्लड इस्तेमाल किया है। इसलिए निजी अस्पताल जो महीने में 100 से ज्यादा यूनिट ब्लड इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें खुद से ब्लड डोनेशन कैंप लगाना चाहिए। यह अनिवार्य है। इसके लिए पहले ही विभाग की ओर से चिट्ठी भी जारी की जा चुकी है। दुर्भाग्य है कि इसका असर होता नहीं दिख रहा। उन्होंने कहा कि कैंप आयोजित करने के लिए अस्पतालों को मदद उपलब्ध कराई जाएगी। इधर, डॉ. कुलकर्णी से अस्पताल प्रतिनिधियों ने लाइसेंसिंग प्रक्रिया को सरल बनाने का अनुरोध किया है। बता दें कि निजी अस्पतालों के मरीजों को भी ब्लड रिम्स और सदर से ही उपलब्ध कराया जाता है। जिस कारण लगातार ब्लड के स्टॉक में भी कमी रहती है। बैठक में सिविल सर्जन डॉ. वीबी प्रसाद, डी.एस डॉ एके. झा, एसीएमओ. डॉ नीलम चैधरी, डॉ एस.बी. खलखो, डॉ. विमलेश सिंह, रणजीत, अंतरा और अन्य चिकित्सक एवं स्वास्थ्य पदाधिकारी उपस्थित थे। क्या है हीमोफिलिया
ब्लड क्लॉटिंग (धक्का बनने) के लिए टोटल 13 फैक्टर काम करते हैं। जिसमें ब्लड को क्लॉट कराने के लिए फैक्टर 8 और 9 भी होता है। हीमोफिलिया दो प्रकार का होता है। हिमोफिलिया ए में फैक्टर 8 की कमी हो जाती है, जिस कारण चोट लगने, कटने और किसी अन्य कारण से ब्लीडिंग के समय खून का जमाव नहीं हो पाता। रक्त का धक्का बनने के लिए फैक्टर 8 दिया जाता है। वहीं हीमोफिलिया बी में फैक्टर 9 की कमी होती है। इसके लिए मरीजों को फैक्टर 9 दिया जाता है। अगर शरीर में ब्लड की कमी हो जाएगी तो इसका जमाव नहीं होगा। ऐसे में कहीं कट जाने की स्थिति में ब्लड रुकेगा नहीं। ये जानकारी सदर अस्पताल के चिकित्सक डॉ विमलेश ने दी। बाजार में ये है रेट
7000 रुपये से अधिक है एक इंजेक्शन की कीमत फैक्टर 8 और 9 की निजी संस्थानों में 02 इंजेक्शन की जरूरत पड़ती है एक समय में मरीज को