हेमंत का पीएम से अनुरोध, बकाया कटौती निरस्त कर झारखंड के खाते में लौटाएं राशि
डीवीसी की बकाया राशि काटे जाने के मामले पर मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
राज्य ब्यूरो, रांची : राज्य सरकार के आरबीआइ खाते से डीवीसी के बकाया मद की राशि काटने के निर्णय के आहत मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। प्रधानमंत्री को प्रेषित पत्र में मुख्यमंत्री ने महामारी काल में की गई इस कटौती को अनैतिक और संघीय ढांचे पर प्रहार बताया है। सीएम ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि कोविड-19 की महामारी और अनुसूचित जनजाति बहुल झारखंड प्रदेश की गरीब जनता के कल्याण को ध्यान में रखते हुए कटौती को निरस्त कर यह राशि शीघ्र राज्य सरकार को लौटाने की कृपा की जाए। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से मिलने का समय भी मांगा है, ताकि वे वस्तुस्थिति से उन्हें अवगत करा सकें।
प्रधानमंत्री को प्रेषित विस्तृत पत्र में मुख्यमंत्री ने कहा है कि राज्य सरकार के संधारित राजकोषीय कोष से 1417 करोड़ रुपये की कटौती कर ली गई है। यह कार्रवाई राज्य सरकार, केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच हुए त्रिपक्षीय समझौते के तहत की गई है, कितु वर्तमान परिस्थितियों में केंद्र सरकार को यह कार्रवाई नहीं करनी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि यह समझौता केंद्रीय विद्युत उत्पादन कंपनियों से ऊर्जा क्रय के क्रम में कंपनियों के वित्तीय हितों की रक्षा के लिए किया गया था, लेकिन यह सामान्य काल को ध्यान में रखकर किया गया था। इसके प्रावधानों को महामारी काल में लागू करना कहीं से भी उचित नहीं है।
सीएम ने यह भी कहा कि हमसे ज्यादा बकाया कई अन्य राज्यों का है। हमारे राज्य का बकाया तो मात्र 5500 करोड़ का था। तब भी कटौती झारखंड जैसे आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक बहुल गरीब राज्य से की गई।
सीएम ने यह भी स्पष्ट किया कि कोविड महामारी का प्रभाव राज्य की राजस्व प्राप्तियों पर पड़ा है। महामारी के दौरान हमने किसी भी क्षेत्र में राजस्व वसूली की दिशा में कठोरता न बरतने का निर्णय लिया। इसका सीधा असर राज्य की बिजली वितरण कंपनियों के भुगतान पर भी पड़ा है।
---------- देनदारी पिछली सरकार की, तब नहीं की गई कटौती
मुख्यमंत्री ने यह भी साफ किया कि मेरी सरकार ने जनवरी 2020 से कार्य करना शुरू किया है। इस दौरान डीवीसी की कुल देयता 1313 करोड़ बनती है, जिसके विरुद्ध महामारी के समय भी हमने डीवीसी को 741 करोड़ का भुगतान किया है। लगभग 5514 करोड़ की देनदारी पिछले पांच वर्षों की भाजपा सरकार के कार्यकाल में सृजित हुई, जो हमें विरासत में मिली। कहा, 90 दिनों से अधिक समय बीतने पर भुगतान नहीं होने की स्थिति में कटौती का प्रावधान त्रिपक्षीय समझौते में है, लेकिन इस प्रावधान का उपयोग पूर्व की राज्य सरकार के समय कभी नहीं किया गया। यदि ऊर्जा मंत्रालय प्रारंभ से ही ऐसी कटौती करता तो महामारी काल में राज्य को इतनी बड़ी राशि नहीं खोनी पड़ती।
-------------- त्रिपक्षीय समझौते में चौथे पक्ष के रूप में कोयला मंत्रालय को जोड़ा जाए
मुख्यमंत्री ने त्रिपक्षीय समझौते में चौथे पक्ष के रूप में कोयला मंत्रालय को भी जोड़े जाने का अनुरोध प्रधानमंत्री से किया है। उन्होंने कहा कि त्रिपक्षीय समझौते का मुख्य उद्देश्य विद्युत उत्पादक कंपनियों के बकाया का ससमय भुगतान सुनिश्चित करना है। मुख्यत: यह संस्थान कोयला आधारित हैं। बकाया राशि का 70 प्रतिशत अंश उत्पादक कंपनियों के माध्यम से कोयला मंत्रालय के उपक्रमों को जाता है। कोयला मंत्रालय के विभिन्न उपक्रमों के विरुद्ध राज्य सरकार की एक बड़ी राशि बकाए के रूप में दर्ज है। इस समस्या का समग्र समाधान तभी संभव होगा जब कोयला मंत्रालय को चौथे पक्ष के रूप में जोड़ा जाएगा।
--------- राज्य सरकार को ऋण सुविधा के लिए बाध्य करने का प्रयास
मुख्यमंत्री ने कहा कि इस कटौती को लेकर हमारी सरकार के अधिकारियों और ऊर्जा मंत्रालय के सचिव के साथ कुछ दिन पूर्व वार्ता भी हुई थी। आत्म निर्भर भारत अभियान के तहत दी जानी वाली ऋण की सुविधा पर भी विस्तृत विचार-विमर्श हुआ था। ऋण प्राप्त करने का प्रस्ताव सरकार के समक्ष विचाराधीन है। कितु ऐसा लगता है कि मंत्रालय का राशि कटौती का यह कदम राज्य सरकार को इस सुविधा का उपभोग करने के लिए बाध्य करना है। यह सर्वथा अनुचित है।