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Hemant Soren Oath Ceremony: जब मुश्किल में थे शिबू, हेमंत सोरेन ने थामा तीर-कमान

Hemant Soren Oath Ceremony हत्या के पुराने मामले में जब शिबू सोरेन को जेल हाे गई तब 2005 में उन्‍हें इस्‍तीफा देना पड़ा था।

By Alok ShahiEdited By: Published: Mon, 30 Dec 2019 08:00 AM (IST)Updated: Mon, 30 Dec 2019 01:44 PM (IST)
Hemant Soren Oath Ceremony: जब मुश्किल में थे शिबू, हेमंत सोरेन ने थामा तीर-कमान
Hemant Soren Oath Ceremony: जब मुश्किल में थे शिबू, हेमंत सोरेन ने थामा तीर-कमान

रांची, प्रदीप सिंह। Hemant Soren Oath Ceremony राजनीति की रपटीली राह पर मंजिल जल्दी और आसानी से नहीं मिलती। यहां संघर्ष की भट्ठी में तपाकर खुद को साबित करना पड़ता है और प्रतिकूल परिस्थिति में धैर्य बनाए रखना पड़ता है। 2005 में अपनी राजनीति के शुरूआती दिन में अगर हेमंत सोरेन हौसला हार जाते तो आज सत्ता के शीर्ष पर कतई नहीं पहुंचते। मैकेनिकल इंजीनियर बनने की चाहत लिए हेमंत सोरेन को उस वक्त प्रतिकूल स्थिति में राजनीति में आना पड़ा, जब पिता शिबू सोरेन मुश्किल में आए। उस वक्त शिबू सोरेन केंद्र की यूपीए सरकार में कोयला मंत्री थे और हत्या के एक पुराने मामले में उनकी गिरफ्तारी हुई।

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वे जेल चले गए और हाथ से मंत्री की कुर्सी भी फिसल गई। बाद में वे बरी हो गए। पिता को मुश्किल में फंसा देख हेमंत सोरेन अपने अग्रज दुर्गा सोरेन का साथ देने और राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए राजनीति में कूद पड़े। शुरूआती अनुभव भी कड़वा रहा। दुमका विधानसभा सीट से वे पहला चुनाव हार गए, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। झारखंड मुक्ति मोर्चा के अग्रिम संगठन छात्र मोर्चा की कमान उनके हाथ में आई और वे राजनीति की डगर पर धीमे-धीमे आगे सरकने लगे।

सफलता 2009 के विधानसभा चुनाव में मिली। दुमका से वे विधायक चुने। विपरीत विचारधारा के बावजूद झारखंड मुक्ति मोर्चा ने विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। शिबू सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनी जो महज चार माह चली। भाजपा ने समर्थन वापस लिया तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। छह महीने बाद एक बार फिर सरकार बनाने की कवायद में दोनों दलों को सफलता मिली। अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने तो हेमंत सोरेन को उनकी कैबिनेट में उप मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी मिली। उनके जिम्मे अहम विभाग थे। बाद में हेमंत सोरेन ने समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस और राजद के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाबी पाई। पहली बार वे 13 जुलाई 2013 को मुख्यमंत्री बने और इस पद पर 23 दिसंबर 2014 तक रहे। हेमंत सोरेन के नेतृत्व में उनकी पार्टी ने 2014 के विधानसभा चुनाव में 19 सीटों पर कब्जा किया था।

हेमंत सोरेन को परंपरागत मानी जाने वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा को हाईटेक बनाने का श्रेय जाता है। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा के आधार क्षेत्र को विस्तार देने में कामयाबी पाई। उन्होंने महसूस किया कि अगर सत्ता हासिल करनी है, भाजपा को परास्त करना है तो शहरी इलाकों में प्रभाव बनाना पड़ेगा। इस मुहिम में हालिया विधानसभा चुनाव में उन्होंने कामयाबी पाई। गिरिडीह, गढ़वा सरीखे शहरों की विधानसभा सीटों पर झामुमो ने कब्जा जमाया। रांची से झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी ने भाजपा को कड़ी टक्कर दी। चुनाव में झामुमो ने 30 सीटें जीती तो अबतक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।

विरासत बढ़ाया, घेरते रहे भाजपा को

शिबू सोरेन ने कद्दावर नेता बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर 4 फरवरी 1973 को झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया था। बिनोद बिहारी महतो झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष बने और शिबू सोरेन को महासचिव की जिम्मेदारी दी गई। इस संगठन को मशहूर ट्रेड यूनियन नेता एके राय का भी साथ मिला। निर्मल महतो, टेकलाल महतो आदि प्रमुख नेताओं ने इसे और सफलता प्रदान किया। 10 अगस्त 1975 को रामगढ़ जिले के गोला प्रखंड के नेमरा में जन्मे हेमंत सोरेन ने 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद नेता प्रतिपक्ष की भूमिका धारदार तरीके से निभाई। वे लगातार रघुवर दास के नेतृत्व में बनी भाजपानीत गठबंधन सरकार को विभिन्न मुद्दों पर घेरते रहे। 2016 में जब जमीन संबंधी पुराने कानून छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संताल परगना काश्तकारी अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव लाया गया तो इन्होंने कड़ा विरोध किया। 2017 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने वैश्विक निवेशक सम्मेलन का आयोजन किया तो हेमंत सोरेन ने आयोजन से दूरी बनाई और आरोप लगाया किया कॉरपोरेट घरानों को जमीन देने के लिए यह आयोजन किया जा रहा है।

कड़े फैसले में देर नहीं लगाते, तब दो मंत्रियों को किया था बर्खास्त

हेमंत सोरेन की छवि कड़े फैसले लेने वाले मुख्यमंत्री की है। वे अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं करते। अपने पिछले कार्यकाल में उन्होंने दो-दो मंत्रियों को अलग-अलग समय में बर्खास्त कर दिया था। इनमें से एक कांग्रेस के दिग्गज नेता थे तो एक उनकी अपनी पार्टी के प्रमुख नेता। हेमंत सोरेन ने सरकार विरोधी बयान लगातार देने पर सबसे पहले तत्कालीन श्रम मंत्री चंद्रशेखर दूबे उर्फ ददई दूबे को बर्खास्त कर दिया था। ददई लगातार हेमंत सोरेन के विरुद्ध बयानबाजी कर रहे थे। बाद में उनकी जगह केएन त्रिपाठी को श्रम मंत्री बनाया गया, जिन्होंने अपना कार्यकाल भी पूरा किया। हेमंत ने उस वक्त एक और मंत्री साइमन मरांडी को बर्खास्त कर दिया था। वे राजमहल से अपने बेटे को लोकसभा चुनाव के लिए टिकट नहीं मिलने पर हेमंत से नाराज चल रहे थे तथा लगातार उनके विरुद्ध बयानबाजी कर रहे थे। हेमंत सोरेन ने उन्हें तत्काल बाहर का रास्ता दिखाया।


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