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हेमंत सरकार-लोकायुक्त टकराव: निगरानी विभाग बना फाइलें दबाने और दागियों को बचाने का अड्डा

आय से अधिक संपत्ति व भ्रष्टाचार से संबंधित 20 से अधिक मामले निगरानी में वर्षों से लंबित हैं। एक दिन पहले लोकायुक्त जस्टिस डीएन उपाध्याय ने निगरानी विभाग पर गंभीर आरोप लगाए थे।

By Alok ShahiEdited By: Published: Thu, 25 Jun 2020 12:22 AM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2020 05:25 AM (IST)
हेमंत सरकार-लोकायुक्त टकराव: निगरानी विभाग बना फाइलें दबाने और दागियों को बचाने का अड्डा
हेमंत सरकार-लोकायुक्त टकराव: निगरानी विभाग बना फाइलें दबाने और दागियों को बचाने का अड्डा

रांची, राज्य ब्यूरो। लोकायुक्त और झारखंड सरकार के बीच हाल के दिनों में शुरू हुए टकराव की मुख्य वजह मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग बना हुआ है। इस विभाग की छवि अबतक जांच की फाइलें दबाने व दागियों को बचाने के रूप में बनी हुई है। जिन मामलों में प्रारंभिक जांच के लिए अनुमति दी जानी थी, उन मामलों की फाइलें दफन होने तक दबा दी गईं। यही कारण है कि उक्त मामले में लोकायुक्त के न्यायालय में सुनवाई लंबित रही और शिकायतकर्ता को न्याय नहीं मिल सका।

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प्रावधान के अनुसार किसी भी अधिकारी की सेवानिवृत्ति के तीन साल के भीतर ही प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज हो सकती है। ऐसे भी उदाहरण सामने आए हैं, जिसमें तीन साल से अधिक समय तक मामले को लटका दिया गया, ताकि पीई का झंझट ही खत्म हो जाए और आरोपित अधिकारी की परेशानी समाप्त हो जाए। आरोप है कि मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग अपने ही विभागों में फाइलों को टहलाकर समय काट रहा है।

एक दिन पहले लोकायुक्त जस्टिस डीएन उपाध्याय भी विभाग पर गंभीर आरोप लगा चुके हैं। वह कह चुके हैैं कि जिसके विरुद्ध आरोप होता है, उसी से विभाग से जांच कराई जाती है, जिसके चलते निष्पक्ष जांच हुई या नहीं, इसपर संदेह बना रहता है। उन्होंने लगभग सभी विभागों में भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप लगाया है।

कुछ प्रमुख हस्तियों से जुड़े मामले, जिनकी फाइलें वर्षों से निगरानी में डंप हैं

  1. एनएन पांडेय : पूर्व गृह सचिव हैं। वर्ष 2016 में सेवानिवृत्त हुए। लोकायुक्त ने सुनवाई के बाद भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को प्रारंभिक जांच (पीई) दर्ज कर जांच का आदेश दिया। एसीबी ने भी वर्ष 2017 में ही मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग से अनुमति मांगी। तीन साल के बाद भी पीई की अनुमति नहीं मिली। 
  2. संजीव विजयवर्गीय : रांची नगर निगम के डिप्टी मेयर हैं। लोकायुक्त ने इनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला पाया और एसीबी को पीई के लिए निर्देशित किया। एसीबी ने मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग से एक साल पहले ही अनुमति मांगी थी। एक साल बाद भी अनुमति नहीं मिली। 
  3. राजीव रंजन : भारतीय वन सेवा के पदाधिकारी हैं। वन प्रमंडल पदाधिकारी हजारीबाग के विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति के मामले की प्रारंभिक पुष्टि के बाद लोकायुक्त ने एसीबी को पीई दर्ज करने का निर्देश दिया था। एसीबी ने पीई की स्वीकृति के लिए मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग को पत्र लिखा। डेढ़ साल बाद भी अनुमति नहीं मिली। 
  4. रेंजर सुरेश टेाप्पो : जैव विविधता उद्यान में घोटाला व आय से अधिक संपत्ति के मामले में लोकायुक्त के आदेश पर एसीबी ने मंत्रिमंडल निगरानी से एक साल पहले ही पीई के लिए अनुमति मांगी थी। अब तक नहीं मिली।
  5. ओम प्रकाश सिंह : नगर विकास विभाग के कार्यपालक अभियंता हैं। इनके विरुद्ध आय से अधिक संपत्ति के मामले में लोकायुक्त के आदेश पर एसीबी ने एक साल पहले ही मंत्रिमंडल निगरानी से अनुमति मांगी थी, जो अब तक नहीं मिली। 
  6. उमाशंकर त्रिपाठी : बोकारो के अमीन त्रिपाठी पर भी आय से अधिक संपत्ति का मामला सामने आया था। करीब डेढ़ साल से पीई के लिए अनुमति की फाइल मंत्रिमंडल निगरानी विभाग में टहल रही है।

भ्रष्टाचार के आरोपित रामकुमार मधेशिया पर सीएम दे चुके हैं जांच का आदेश

गुमला के जिला अवर निबंधक राम कुमार मधेशिया पर भ्रष्टाचार के एक आरोप का मामला मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग में लंबित था। दो साल के बाद मुख्यमंत्री के आदेश पर एसीबी जांच शुरू हुई है। दो साल पहले ही लोकायुक्त ने मधेशिया के खिलाफ पीई दर्ज कर जांच का आदेश दिया था। फाइल लंबित पड़ी हुई थी। नई जानकारी यह है कि इस मामले में पीई के बजाए आसूचना प्रतिवेदन (आइआर) तैयार किया जा रहा है। यानी पहले मामले का सत्यापन होगा, उसके बाद पीई के लिए मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी विभाग से अनुमति मांगी जाएगी।


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