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Happy Mother's Day 2022: मैं कभी बतलाता नहीं पर अंधेरे से डरता हूं मैं मां... मदर्स डे पर भावुक मैसेज

Happy Mothers Day 2022 मां शब्द को किसी दिवस या प्रयोजन की जरूरत नहीं लेकिन आज की जरूरत और सेलिब्रेशन को मद्देनजर रखते हुए ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। आज के शुभ मौके पर मां की महानता को आत्मिक गहराइयों से महसूस किया जा रहा है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sun, 08 May 2022 05:45 AM (IST)Updated: Sun, 08 May 2022 10:54 AM (IST)
Happy Mother's Day 2022: मैं कभी बतलाता नहीं पर अंधेरे से डरता हूं मैं मां... मदर्स डे पर भावुक मैसेज
Happy Mother's Day 2022: मां शब्द को किसी दिवस या खास प्रयोजन की जरूरत नहीं...

रांची, जासं। Happy Mother's Day 2022 मैं कभी बतलाता नहीं पर अंधेरे से डरता हूं मैं मां, यूं तो मैं दिखलाता नहीं तेरी परवाह करता हूं मैं मां, तूझे सब है पता, है ना मां, तूझे सब है पता, मेरी मां...। कुछ ऐसी होती हैं मां, जिसे अपने बच्चों के बारे सब कुछ पता होता है लेकिन मां खामोशी से अपनी ममता की छाया में बच्चाें की दुनिया को समेटकर रखती हैं...। देश के मशहूर संगीतकार एआर रहमान की धुनों पर तैयार इस गीत में मां की महानता को आत्मिक गहराइयों से लयबद्ध किया गया है। जिसे सुनने के बाद मां की ममता और महानता काे समझा जा सकता है।

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कहा जाता है मां से बच्चे का रिश्ता दुनिया में सबसे अहम और अनमोल होता है। मां से रिश्ता होने के बाद ही एक बच्चा बड़ा होने तक अपने जीवन में कई और रिश्तों को अपना सकता है। मां की ममता और प्यार हर इंसान के लिए बहुत जरूरी होता है। मां बच्चे की हर जरूरत को बिना किसी स्वार्थ के पूरा करती हैं। वैसे तो मां अपने बच्चे पर अपना पूरा जीवन कुर्बान कर देती हैं। बच्चे की खुशी में खुश और तकलीफों में दर्द बांटती हैं। ऐसे में बच्चे अपनी मां के लिए कुछ खास करना चाहते हैं।

मदर्स डे मां की इसी ममता और प्यार को सम्मान देने का दिन होता है...। मां शब्द का वर्णन हमारे वेदों से लेकर सभ्यता संस्कृति में बेहद प्रमुखता से किया गया है। यही कारण है कि मां शब्द को किसी दिवस या प्रयोजन की जरुरत नहीं लेकिन आज की जरुरत और सेलिब्रेशन को मद्देनजर रखते हुए ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। शहर में बड़े ही उत्साह के साथ सभी स्कूलों व कालेजों में मदर्स डे का आयोजन किया गया। जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम भी पेश किए गए।

तीन बच्चों की परवरिश के साथ साथ मरीजों का देखभाल 

रिम्स में बतौर नर्स कार्यरत रेखा राय कहती हैं कि अपने तीन बच्चों की परवरिश के साथ साथ रिम्स में आने वाले मरीजों की देखभाल करना मेरा परम धर्म है। उन्होंने कहा कि नियत समय पर उठकर बच्चों का लालन पालन करने के अलावे ड्यूटी पर जाकर अस्पताल में एडमिट मरीजों की सेवा करना पड़ता है। हालांकि इस कार्य में किसी प्रकार की कोई हिचक नहीं होती है। मेरा कर्म ही मेरा धर्म है।

26 वर्षों से कर रही हूं टीचिंग

शहर के मनन विद्या मनरखन महतो स्कूल में बतौर टीचर कार्यरत जया झा कहती हैं कि पिछले 26 वर्षों से टीचिंग प्रोफेशन में हूं। कभी भी ऐसी स्थिति नहीं आई कि सामाजिक तौर पर कोई परेशानी हो। यदि होती भी तो बेशक इसे पार कर लेती। कहा कि एक बेटी है जिसे पढ़ाने लिखाने के साथ साथ स्कूल के करीब 1000 बच्चे भी मेरे अपने हैं। इन बच्चों को पढ़ाने में बहुत संतुष्टि मिलती है। मैं वकील बनना चाहती थी लेकिन मां के ही आशीर्वाद से टीचर बन गई। आज छोटे छोटे बच्चों को पढ़ाकर मन तृप्त रहता है।

शादी के बाद बढ़ गई जिम्मेदारी

पिछले सात वर्षों से घर की जिम्मेदारी के साथ साथ पति के बिजनेस में भी हाथ बंटा रही हूं। गृहिणी का फर्ज निभाने के साथ साथ बिजनेस वुमैन पूजा नाहटा कहती हैं कि शादी से पहले तो सिर्फ पढ़ाई की चिंता होती थी। लेकिन शादी के बाद घर परिवार की जिम्मेदारी निभाने के साथ साथ अपने पति के साथ बिजनेस में भी हाथ बंटाती हूं। अब ताे जीवनशैली ही बदल गई है। घर का कामकाज निपटाने के साथ साथ बिजनेस की बारिकियों से भी रुबरु होने का माैका मिलता है। जिसे बखूबी निभा रही हूं।

मां के हर शब्दों में होता है आशीर्वाद

समाजसेवी हिना परवीन कहती हैं हर मां, अपने बच्चों के लिए अपना जीवन समर्पित रखती हैं। धूप, ठंड और बारिश से बचाकर पालन-पोषण करतीं। खुद भुखा रहकर बच्चों का पेट भर्ती। अंगुली पकड़कर चलने से लेकर बड़े हाेने तक बस सलमाती की दुआएं करती। मां के हर शब्दों में आशीर्वाद होता है। इसे बच्चों को भी समझना होगा। मां जब बुजुर्ग होती उस दौरान में उन्हें वह ममता लौटाने की जरूरत होती है। इसलिए ऐसे समय में मां को अपनत्व का एहसास कराएं। मां की ममता के महत्व को हमेशा समझने की जरूरत है।

मां की ममता को समझ जाएं, तो वद्धाश्रम की नहीं पड़ेगी जरूरत

अधिवक्ता सह समाजसेवी रुना शुक्ला कहती हैं कि मदर्स डे पर इंटरनेट मीडिया से लेकर कई प्लेटफार्म पर मां के प्यार के दावे दिखेंगे। लेकिन एक हकीकत यह भी है कि सैकड़ों माताएं वद्धाश्रमों में जीवन जीने काे मजबूर हैं। उनके बच्चे इसी समाज में जी रहे लेकिन कोई अपना सामने नहीं है। यह स्थिति इसलिए है कि बच्चे उनकी ममता का कद्र नहीं करते। मां काे इस हाल में छोड़ देते कि उसे वृद्धाश्रम में रहना पड़े। इस हाल में भी मां अपने बच्चों को दुआएं देती रहती, कि उनके बच्चों को कोई तकलीफ न हो। इसे समझने के लिए हर एक को मां की कद्र करना हो। जबकि मां को अपने बच्चों को ऐसा संस्कार देना होगा कि वे आखिरी सांस तक अलग न रह पाएं।


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