National Sports Day: 'महान खिलाडिय़ों के नाम पर पुरस्कार की घोषणा करे सरकार'
Jharkhnd. झारखंड के महान हॉकी खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा के बेटे जयंत ने कहा कि खिलाडिय़ों का हौसला बढ़ाने के लिए रोजगार के दरवाजे खोलने चाहिए।
रांची, [संजीव रंजन]। भारतीय हॉकी टीम के पहले कप्तान व झारखंड हॉकी के दद्दा मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के बेटे जयंत सिंह मुंडा राज्य में खेलों की वर्तमान स्थिति से खुश नहीं हैं। कोलकाता में रह रहे जयंत ने दैनिक जागरण से बातचीत के क्रम में कहा, मेरे पिता ने बिरसा की धरती को गौरवांवित किया लेकिन आज स्थिति विपरीत है। सही सोच व सही कार्य करने वालों की कमी व योजना का अभाव झारखंड में खेल को गति नहीं दे पा रही है, जो उसे मिलनी चाहिए थी।
पहले यहां के खिलाड़ी हॉकी में नजर आते थे। अब तीरंदाजी में भी यहां के खिलाड़ी जौहर दिखा रहे हैं। अन्य खेलों में भी बेहतर परिणाम के लिए खिलाडिय़ों का हौसला बढ़ाना चाहिए। रोजगार के दरवाजे खोलने चाहिए। जयंत ने कहा, मेरे पिताजी भारतीय हॉकी टीम के पहले कप्तान थे। उन्हें राज्य सरकार कितना मान दे रही है, इस पर मैं कुछ कहना नहीं चाहता। लेकिन इतना अवश्य कहूंगा कि उनके नाम पर एक पुरस्कार की घोषणा होनी चाहिए।
यह पुरस्कार प्रत्येक वर्ष हॉकी में बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्य के खिलाड़ी को देना चाहिए। मेरे पिता ही क्यों, राज्य व देश का गौरव बढ़ाने वाले प्रदेश के महान खिलाडिय़ों में शुमार लोगों के नाम पर भी पुरस्कार होना चाहिए, ताकि युवा खेल के प्रति आकर्षित हो। इससे हर खेल में बेहतर खिलाड़ी मिलने को संभावना बनी रहेगी।
भारतीय हॉकी टीम के पहले कप्तान जयपाल सिंह मुंडा।
जयपाल सिंह मुंडा स्टेडियम का व्यवसायीकरण नहीं होना चाहिए था
जयंत मुंडा ने कहा कि जयपाल सिंह मुंडा स्टेडियम का व्यवसायीकरण नहीं होना चाहिए था। 60 के दशक में स्कूल के बच्चों के द्वारा तत्कालीन उपायुक्त राव ने तालाब को भरने के लिए श्रमदान कराया था। इसके बाद इसे खेलने लायक मैदान बनाया गया। लेकिन उस मैदान का व्यवसायीकरण कर दिया गया। इस स्टेडियम में पिता की प्रतिमा लगाई गई। लेकिन खेल का यह मैदान अब खेलने लायक नहीं रहा।
ग्र्रास रूट से करें खिलाडिय़ों को तैयार
उन्होंने कहा कि अगर बच्चों को आठ से दस वर्ष की उम्र से ही प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया जाए तो इसके बेहतर परिणाम निकलेंगे। इसके लिए सभी जिला मुख्यालयों में भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) की तरह आवासीय सेंटर खोलना चाहिए तथा जिले के विभिन्न गांवों से टैलेंट हंट कर बच्चों का चयन करना चाहिए।