खुल गई पोल, बंद हो गई बोल...जानें सत्ता के गलियारे का हाल Ranchi News
साहब युवाओं के नेता है। हार उन्हें स्वीकार नहीं बड़े साहब से मिल नहीं पाए तो मिलने की झूठी कहानी ही गढ़ डाली।
रांची, [जागरण स्पेशल]। झारखंड विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी राजनीतिक पार्टियों के नेता-कार्यकर्ता उत्साह में हैं। हर कोई इस बार सत्ता के गलियारे तक अपनी पहुंच का दावा कर रहा है। सेटिंग-गेटिंग भी शुरू हो गई है। सत्ता पक्ष जहां फिर से आसन पर विराजमान होने को आतुर दिख रहा है, वहीं विपक्षी दल महागठबंधन की राह ताक रहे हैं। आइए जानें आखिर किस रंग में रंग रही झारखंड की सियासत...
जोड़ी कमाल की
शीर्ष राजनीतिक दलों की कमान अब सही हाथों में हैं। बयानबाजी में कमल दल के छोटे भाई हों या हाथ वालों के बड़े भाई। दोनों के मुंह से कमाल के बोल फूट रहे हैं। हाथ वाले बापू तक पर विवादित टिप्पणी से नहीं चूक रहे हैं, तो कमल वाले भइया हाल ही में उनकी पार्टी में शामिल हुए भूषण की तुलना आंदोलनकारियों तक से कर रहे हैं। सत्ता के गलियारों में चर्चा है कि अब बनी है दोनों दलों के मुखियाओं की जोड़ी कमाल की।
गठबंधन की जल्दबाजी!
गठबंधन वाले नेताजी इस बार और जल्दबाजी में हैं। कुछ महीनों पूर्व लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन इस बार और तेजी है। पार्टी लाइन से इतर खुद सबसे मिलना-जुलना शुरू कर दिया है। सीटों को लेकर और उम्मीदवारों के नाम पर जल्द मुहर लगवाने के पीछे पारिवारिक कारण भी है, जिसे नेताजी फिलहाल तूल नहीं देना चाह रहे हैं। लेकिन, उनकी ही पार्टी के पूर्व अध्यक्ष ने एक माह पूर्व उनकी मंशा को सबके सामने जाहिर कर दी थी। पार्टी के सभी सीनियर नेताओं को भी लिख दिया था। ऐसे में अब नेताजी न तो खुद और न ही परिवार का नाम आगे करके शोर करने की हिम्मत जुटा रहे हैं। पार्टी में भी उनके विरोधी इस बार ताकत की आजमाइश देख ही लेना चाहते हैं।
नेताजी की परेशानी
लातेहार के दाढ़ीवाले नेताजी की परेशानी बढ़ गई है। पिछले चुनाव में किस्मत ने साथ नहीं दिया था। उनकी किस्मत अभी भी दगा दे रही है। इसलिए उनकी परेशानी बढ़ गई है। इस बार तो उनके टिकट पर ही आफत आ गई है। प्रतिद्वंद्वी ने उनके अपने ही घर में सेंध मार दिया है। अब नेताजी पशोपेश में हैं, करें तो क्या करें। चुनाव लडऩा है, तो कैसे लड़ें। चर्चा है कि नेताजी अपना दूसरा ठिकाना खोजने के प्रयास में भी हैं। अब उनका ठिकाना कहां होगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन नेताजी फिलहाल तो काफी परेशान हैं। किसी तरह रास्ता निकले इसके लिए बड़े नेताओं के यहां चक्कर भी लगा रहे हैं।
खुल गई पोल, बंद हो गई बोल
कहते हैं राजनीति में सब जायज है। इसमें क्या सच और क्या झूठ? लालटेन के रखवाले इन दिनों झार प्रदेश की जेल की हवा खा रहे हैं। रिम्स उनका ठिकाना है, जहां हर हफ्ते लगता है समर्थकों का मेला। इस भीड़ में दर्जनों शामिल होते हैं, पर रखवाले का दर्शन उनमें से तीन ही कर पाते हैं। इस शनिवार त्रिदेव की जगह चार धमक आए। रोहतास गढ़ वाले वचन बाबू व जगदीशपुर के नरेश लोहिया जी बाजी मार आए, परंतु दो अनिल आपस में टकरा आए। इनमें से एक मिल आए, तो दूसरे को सिक्योरिटी ने चलता कर दिया। साहब युवाओं के नेता है। हार उन्हें स्वीकार नहीं, मिल नहीं पाए तो मिलने की झूठी कहानी ही गढ़ डाली। बगलगीर को यह रास नहीं आया तो खोल दी उनकी पोल, युवा तुर्क नेता की बीच में ही बंद हो गई बोल।