सत्ता के गलियारे से : तीर-कमान में तकरार, विपक्षी गठबंधन पर रार...
झारखंड में अभी से आने वाले लोकसभा को लेकर सियासत की बिसात बिछाई जा रही है। विपक्षी दल एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगे हैं।
रांची, राज्य ब्यूरो। सत्ता के गलियारे में इन दिनों लोकसभा 2019 को लेकर विपक्षी गठंबधन पर जोर का मंथन चल रहा है। सभी विपक्षी पार्टियां अपनी मजबूत स्थिति दर्शाने में लगी है। सीटों की लड़ाई में कोई पार्टी खुद को छोटा मानने को तैयार नहीं है। सब के अपने-अपने दावे के बीच अधिक से अधिक सीट लेने की होड़ सी मची है। कहीं पार्टी गठबंधन से इंकार कर रही है, तो कोई दल कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार तक बताने को तैयार नहीं है।
तीर-कमान में तकरार : लगता है कि खेल-खेल में पूरा खेल ही बिगड़ जाएगा। लड़ाई बड़े और छोटे के बीच ठन गई है। एक उनके पाले में गेंद फेंक रहा है तो दूसरा अपने ही गोलपोस्ट में गोल दागने को आतुर है। बगलबच्चे समझा रहे हैं कि दूरी बस एक गेट की हीं बची है। जैसे ही हरी झंडी मिलेगी, उस पार जाकर कुर्सी पर कब्जा कर लेंगे। 14 महीने के राजपाट में मन नहीं भरा इनका। तब दम भरा था कि कुर्सी उनकी ही है लेकिन कमल वाले की ऐसी चली कि इनके बुरे दिन शुरू हो गए। अब तो ऐतिहासिक पार्टी भी इनसे सटने के पहले सौ दफा सोच रही है। ऐसा न हो कि कुर्सी सपने में ही रह जाए और बगल का गेट नहीं खुले इनके लिए।
तीर्थ पर निकले साहब : वर्दी वाले बाबा इन दिनों बहुत परेशान हैं। इतना लंबा राजपाट तो किसी का चला ही नहीं झारखंड में। लेकिन बेचारे इन दिनों परेशान चल रहे हैं। पहुंच-पैरवी के बल पर दूसरों को बुलडोजर से फेंकने की कुब्बत रखने वाले साहब अब खुद को कमजोर महसूस करने लगे हैं। फर्जीवाड़े का आरोप जो लगा रहे हैं इनसे जलने वाले। न्याय की चौखट पर इन्होंने ऐसी पटखनी खाई कि साथ वाला भी साथ देता नहीं दिख रहा है। साहब हैं कि बिल्कुल बिलबिला उठे हैं। ऐसे में मन की शांति और कुर्सी को बुरी नजर से बचाने के लिए निकल पड़े हैं तीर्थयात्रा पर। कहते हैं कि हारे का हरिनाम, लेकिन साहब तो हार का मुंह देखने के पहले हरिनाम करने निकल पड़े। देखना होगा कि कुर्सी बचती है या खिसक जाती है धीरे से।
बढ़ी धड़कन : दवा-दारू वाले विभाग में साहब दूसरी बार आए हैं। पिछली बार थोड़ा नीचे के ओहदे पर थे। लेकिन अधीनस्थ दफ्तरों की जिम्मेदारी उनके कंधों पर थी। उस समय अवैध नियुक्त बाबुओं को हटाने के लिए सफाई अभियान चलाया था। अब एक बार फिर इन दफ्तरों के कई लोगों की धड़कनें बढ़ गई हैं। पता नहीं सफाई अभियान फिर चलेगा क्या? कुछ ऐसे भी हैं जो उनके जाने के बाद तिकड़म लगाकर दोबारा पहुंच गए थे। उनकी धड़कनें कुछ अधिक बढ़ गई हैं। एक दफ्तर में पिछले माह भी जांच -पड़ताल चली थी, लेकिन बाद में मामला ठंडा हो गया था। डर है कि कहीं यह मामला फिर से न खुल जाए।
मन नहीं लगता : राजधानी के बगल वाले नेताजी को अब वोट की चिंता सताने लगी है। यही वजह है कि मुख्यालय में अब उनका मन एकदम नहीं लगता। मौका मिलते हीं क्षेत्र की राह पकड़ लेते हैं। साहब ने ग्रामीण सड़कों के निर्माण पर खुलकर जेब ढीली की है। उन्हें पता है, यही रास्ता 2019 की नैया पार लगाएगा। अब जब बजट ही साफ हो चुका है, मुख्यालय में रहकर भी क्या होगा। बगलगीर धीरे से कह रहे हैं, साहब ने सबको साधा है, मेहनत का फल मीठा ही होगा।