सत्ता का गलियारा : एक अनार सौ बीमार...हम साथ हैं, साथ रहेंगे...
झारखंड में लोकसभा 2019 की तैयारी में जुटी सियासी पार्टियों में आपसी खींचतान और रस्साकशी तेज हो गयी है।
रांची, राज्य ब्यूरो। 'हम साथ हैं, हम साथ रहेंगे' का नारा बुलंद करने वाली झारखंड की विपक्षी पार्टियों का मन सीट को लेकर डोलने लगा है। कोई जनाधार तो कोई उसपर कभी रहा अपना राज की दुहाई दे रहा है। राज्य में लालटेन की लौ तेज कर रही मोहतरमा के जंग-ए-बहादुर ने तो अभ्रक नगरी पर दावा ठोक ही दिया है, कंघी से राज्य की तस्वीर संवारने चले लाल बाबू के पांव भी यहां से उखडऩे का नाम नहीं ले पा रहा।
राज्य के सबसे बड़े विपक्ष का तीर भी वार को तैयार है। बहरहाल लोकसभा चुनाव की आहट मात्र पर एक अनार सौ बीमार की कहावत चरितार्थ होने लगी है। सबकुछ चुपचाप देख रहा बगलगीर बुदबुदाता है, भइया यह राजनीति का अखाड़ा है, अंतिम सांस तक जंग जीत लेने की उम्मीद में जनता उनका सहारा है।
उनका भी सम्मान : हाल ही में आयोजित एक कार्यक्रम में अफसरों-बाबुओं को भी सम्मानित होने का अवसर मिल गया। वहां शहीदों के परिजनों को गमछा ओढ़ाकर सम्मानित किया जा रहा था। बड़ी संख्या में गमछा खरीदे गए थे, सो कार्यक्रम में आनेवाले अफसरों और बाबुओं को भी सम्मान मिल गया। कई माननीय के पीए भी सम्मानित होकर गौरवान्वित हुए। अब तो वे ही जानें कि इस सम्मान के लिए उन्होंने राज्य-समाज को क्या दिया था।
तैयार है जीत का गणित : कमल दल वाले खुशफहमी का शिकार हैं। चुनावी चर्चा शुरू होते ही पार्टी के बड़े से लेकर छोटे नेता उंगलियों पर जीत का गणित समझाने लगते हैं। गणित सदस्यों से शुरू होकर बूथों की संरचना तक जाता है और तत्काल बता दिया जाता है कि जीत तय है। पार्टी के बड़े बाबा ने ढांचा ही ऐसा खड़ा किया है। बाबा मेहरबान तो कमल दल वाले पहलवान। तो करो गुणगान, वोटों के लिए न हो परेशान।
हाथ किसके साथ : बहुत ही अहम सवाल है। सभी उत्तर जानना चाह रहे हैं और जितने दलों को हाथवाली पार्टी समेटने का दावा कर रही है उतनी अंगुलियां भी हाथ के पास नहीं। एक पार्टी एक-एक अंगुली पकड़ ले तो गिनती शुरू होते ही सन्नाटा पसर जाएगा। बड़ी संख्या में पार्टियों को समेटने के साथ ही कप्तान के पास उन्हें एक साथ जोड़े रखने की चुनौती भी आ गई है। दिक्कत यह कि कप्तान खुद रहते कहां हैं।
महीने में चार-पांच दिन तो वे झारखंड को देते हैं और बाकी दिन रोजी-रोजगार-परिवार। आखिर इन्हें तो छोड़ नहीं सकते। एक-दो पार्टी छूट जाए तो छूट जाए। ऐसे में बाएं हाथ की पार्टियां अधिक छटपटा रही हैं। साथ चलें तो ऐठें, छूटे तो रूठें। ऐसे हाथ वाली पार्टी इन लोगों से पिंड छुड़ाने में ही अपना भला मान रही है। मुश्किल है कि बाएं हाथ वाली पार्टी को यह समझ में नहीं आ रहा है।