अंगरक्षक के रूप में गोरखा जवान मंत्रियों-अधिकारियों की पहली पसंद, झारखंड में बनेगा एक और गोरखा बटालियन
Garkha Battalion Jharkhand News रांची के रातू के सिमलिया में एक और बटालियन बनाने की तैयारी है। इसमें गोरखा युवाओं को मौका मिलेगा। जैप वन के गोरखा जवानों की पहले से चार वीआइपी कंपनियां बनी हुई हैं। राजभवन में गोरखा जवानों की एक कंपनी पहले से तैनात है।
रांची, [दिलीप कुमार]। दिखने के स्मार्ट, काम के प्रति गंभीर, चुस्त-दुरुस्त व फुर्तीला के साथ-साथ भीड़ प्रबंधन में माहिर गोरखा के जवान वीआइपी की पहली पसंद हैं। यही वजह है कि झारखंड के जितने वीआइपी के पास स्कॉट वाहन हैं, वहां अंगरक्षक की ड्यूटी गोरखा के जवान कर रहे हैं। अंगरक्षक ड्यूटी के लिए गोरखा के जवानों की मांग इतनी है कि राज्य सरकार ने जैप वन की तरह ही एक अतिरिक्त गोरखा बटालियन बनाने का प्रस्ताव भी तैयार कर लिया है।
इसके लिए रातू के सिमलिया में 50 एकड़ भूमि चिह्नित भी की जा चुकी है। प्रक्रिया शुरू होने के बाद गोरखा युवाओं के लिए नौकरी के रास्ते भी खुलेंगे और गोरखा बटालियन और सशक्त बनेगा। जैप वन बटालियन गोरखा जवानों का बटालियन है। इस बटालियन की चार कंपनियां वीआइपी कंपनी के रूप में चिह्नित हैं, जिसे सिर्फ अंगरक्षक ड्यूटी संभालने की जिम्मेदारी है। इन्हें अंगरक्षक ड्यूटी के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षण मिला हुआ है।
राज्य सुरक्षा समिति लेती है निर्णय, कहां कितने जवान होंगे तैनात
राज्य में वीआइपी, वीवीआइपी की सुरक्षा की समीक्षा राज्य सुरक्षा समिति करती है। यह समिति ही तय करती है कि किस वीआइपी-वीवीआइपी के पास किस श्रेणी की सुरक्षा होगी। जैप वन के गोरखा जवानों की चार वीआइपी कंपनी में करीब 400 गोरखा जवान हैं। राज्य सुरक्षा समिति के निर्देश पर ही इन जवानों की वीआइपी ड्यूटी लगती है।
यहां-यहां तैनात हैं गोरखा के जवान
राज्यपाल, झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, मुख्यमंत्री, झारखंड सरकार के सभी मंत्री, मुख्य सचिव व डीजीपी के स्कॉट में गोरखा के जवान तैनात हैं। इसके अलावा राजभवन में एक पूरी कंपनी यानी राजभवन कंपनी ही गोरखा जवानों की है।
जनवरी 1880 में अस्तित्व में आई थी यह बटालियन, न्यू रिजर्व फोर्स नाम से हुई थी स्थापना
झारखंड सशस्त्र पुलिस (जैप) वन गोरखा जवानों का एक बटालियन है। जनवरी 1880 में अंग्रेजों के शासनकाल में इस वाहिनी की स्थापना न्यू रिजर्व फोर्स के रूप में हुई थी। वर्ष 1892 में इस वाहिनी का नाम बंगाल मिलिट्री पुलिस पड़ा। इस वाहिनी की टुकड़ियों की प्रतिनियुक्ति तत्कालीन बंगाल प्रांत (बिहार, बंगाल एवं ओड़िशा) को मिलाकर की जाती रही। वर्ष 1905 में इस वाहिनी का नाम बदलकर गोरखा मिलिट्री रखा गया।
राज्य के अन्य स्थानों पर प्रतिनियुक्त गोरखा सिपाहियों को भी इस वाहिनी में समंजित किया गया। देश में स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1948 में इस वाहिनी का नाम बदलकर प्रथम वाहिनी बिहार सैनिक पुलिस रखा गया था। इस वाहिनी की प्रतिनियुक्ति नियमित रूप से देश के विभिन्न राज्यों में की जाती रही। इसमें वर्ष 1902 से 1911 तक दिल्ली दरबार, वर्ष 1915 में बंगाल, 1917 में मयूरभंज, मध्य प्रदेश, 1918 में सरगुजा मध्य प्रदेश, 1935 में पंजाब, 1951 में हैदराबाद, 1953 में जम्मू-काश्मीर, 1956 में असम (नागालैंड), 1962 में चकरौता (देहरादून), 1963 में नेफा, 1968-69 में नेफा के प्रशिक्षण केंद्र हाफलौंग असम आदि शामिल हैं।
वर्ष 1971 में भारत पाक युद्ध के समय इस वाहिनी को त्रिपुरा के आंतरिक सुरक्षा कार्यों के लिए प्रतिनियुक्त किया गया था। उस वक्त साहसपूर्ण कार्यों के लिए वाहिनी को भारत सरकार ने पूर्वी सितारा पदक से अलंकृत किया था। वर्ष 1982 में दिल्ली में आयोजित नवम एशियाड खेलकूद समारोह के दौरान इस वाहिनी की प्रतिनियुक्ति की गई, जहां बेहतर कार्य के लिए दिल्ली सरकार ने इन्हें सराहा था। वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य गठन के बाद इस वाहिनी का नाम झारखंड सशस्त्र पुलिस वन (जैप वन) रखा गया था।