हस्तशिल्प व्यापार मेले में दिख रही भारतीय संस्कृति की झलक
मोरहाबादी मैदान रांची में पंद्रह दिवसीय हस्त शिल्प व्यापार मेले में लोगों की भीड़ उमड़ रही है।
जागरण संवाददाता, रांची : मोरहाबादी मैदान रांची में पंद्रह दिवसीय हस्त शिल्प व्यापार मेले में लोगों की खासी भीड़ उमड़ रही है। यह मेला नए साल में एक जनवरी से शुरू हुआ था। 15 जनवरी तक चलने वाले इस मेले में देशभर के 25 राज्यों से आए 275 उद्यमियों ने स्टॉल लगाए हैं। मेले में हस्तशिल्प उत्पाद से लेकर बच्चों के खेलने तक के साधन यहां मौजूद हैं। इस मेले में एंट्री फीस 10 रुपये है। यह सुबह के 11 बजे से रात के 9 बजे तक खुला रहता है। यहां लोगों के मनोरंजन के लिए हर शाम सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।
इस मेले में संपूर्ण भारत के हस्तशिल्प का अनोखा संगम दिखाई देता है। यहां कच्छ की चादरें, दिल्ली की क्रॉकरी, बनारसी सूट एवं साड़ी, बंगाल का कांथा वर्क, गुजराती सूट, पंजाब की चुन्नी तथा फुलकारी सूट, असम के बांस से बने सामान, सहारनपुर का फर्नीचर, खादी ग्रामोद्योग के वस्त्र, नागालैंड का ड्राई फ्लावर, बंगाल का जूट बैग, कानपुर का लेदर, झारखंड का डोकरा आर्ट, राजस्थान ब्लॉक प्रिंट कुर्ती, भदोही की कालीन, हरियाणा के पर्दे,आंध्रा का क्रोशिया वर्क, राजस्थानी मोजरी, भागलपुर की सिल्क साड़ी, तमिलनाडु की सीप ज्वेलरी, राजस्थानी जूती, कोलकाता का शांति निकेतन बैग इत्यादि सामान मिल रहे हैं।
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प्लास्टिक की बजाए हैंडलूम उत्पाद अपना रहे लोग
बनारस से आए मोहम्मद अल्ताफ के स्टॉल में हैंडलूम उत्पादों की भरमार है। वे कहते हैं कि आम वस्तुओं की तुलना में हस्तनिर्मित वस्तु थोड़े महंगे अवश्य होते हैं लेकिन ये खूबसूरती के साथ टिकाऊ तथा पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। वे कहते हैं कि प्लास्टिक के विरूद्ध बन रही मुहिम से हस्तनिर्मित उत्पादों को फायदा हुआ है। अब आमलोग भी इसे खूब खरीद रहे हैं। वे बताते हैं कि उनकी दुकान में 50 रुपये से 2000 रुपये तक के सामान उपलब्ध हैं।
कोलकाता से आए सुजॉय के यहां शांति निकेतन डिजाइन के कई विभिन्न उत्पाद हैं। वे बताते हैं कि रविंद्रनाथ टैगोर के प्रसिद्ध विद्यालय शांति निकेतन के छात्रों ने इस डिजाइन को उन्नत किया था। वे बताते हैं कि शांति निकेतन डिजाइन में थिनर के उपयोग न कर केले के दूध का उपयोग किया जाता है। यह अधिक टिकाऊ तथा प्राकृतिक है। वे बताते हैं कि हस्तशिल्प हाथ के कौशल से तैयार किए गए रचनात्मक उत्पाद है। इसे तैयार करने के लिए किसी आधुनिक मशीन या उपकरणों की मदद नहीं ली जाती है।
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कतरनी चावल की महक लोगों को कर रही आकर्षित
हस्तशिल्प व्यापार मेले में आए लोगों को स्टॉल पर कतरनी चावल तथा चूड़े की सुगंध खूब आकर्षित कर रही है। लोग अनायास ही दुकान पर खींचे चले जाते हैं। यहां कतरनी चावल, कतरनी चूड़ा मालभोग चावल तथा चूड़ा बेचने वाले भागलपुर से आए देवेंद्र साह बताते हैं कि वे हर साल यहां आते हैं। इस बार चुनाव के कारण यहां आयोजन नहीं हो पाया था। इस महीने में यहां स्टॉल लगाने का इरादा नहीं था लेकिन रांची में कतरनी चूड़ा-चावल के शौकीन ग्राहक उन्हें कई बार फोन कर चुके थे। जब यहां मेला लगा तो लोगों के प्यार के लिए यहां आना पड़ा। वे बताते हैं कि उनके यहां मालभोग चूड़ा तथा चावल भी मिलता है। जिसकी कीमत कतरनी से दस रुपये अधिक है।
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अनार से इमली तक की गोली के लोग हैं दीवाने
जयपुर से आए आमिष खान के स्टॉल में अनारदाना, इमली, पुदीना, जीरा, अजवाइन, हींग, काली हींग, आंवला आदि की गोली मिलती है। वे कहते हैं कि ये गोलियां चटपटी तथा पाचनवर्धक हैं। इसके अलावा उनकी दुकान पर बनारसी व कलकतिया पान को लोग खूब पसंद कर रहे हैं। वे बताते हैं कि यह पहले से तैयार पान है जिसे लोग खाने के बाद माउथफ्रेशनर के रूप में खा सकते हैं। फूट जेली, आवला कैंडी, मैंगो स्लाइस, हींग का पेड़ा भी लोगों के जुबान को खूब पसंद आ रहे हैं।
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लुप्त हो रही शिल्पकला को लोगों के बीच लाने का हो रहा प्रयास
मेले के आयोजक संजीव तिवारी बताते हैं कि हस्तशिल्प मेला भारतीय संस्कृति की पहचान है। यह हजारों सालों से देश में चलता आ रहा है। आधुनिक समय में विशाल शॉपिंग मॉल वाली संस्कृति में इसकी अहमियत और बढ़ जाती है। हस्तशिल्प मेला आधुनिक समाज से कट गए आदिवासी समुदाय को, प्रचार-प्रसार के दौर में पिछड़ चके उद्यमियों को अपना हुनर दिखलाने का अवसर प्रदान करता है। यह मेला लुप्त हो रहे शिल्पकला को लोगों के बीच लाने का प्रयास है। यह झारखंड की संस्कृति के साथ ही देश के विभिन्न राज्यों की संस्कृति से लोगों को अवगत कराने का एक प्रयास है।