Jharkhand: वर्दी वाले साहब का विवादों से नहीं छूटता पीछा, पढ़ें सत्ता के गलियारे का हाल
Jharkhand Political Gossip and Rumours ऐसा डायलाग मारते थे कि पूछो मत। कभी गले में सांप लटका लिया तो कभी धारण कर लिया भगवा। मूड में आए तो नारे भी खूब लगाते थे।
रांची, [प्रदीप सिंह]। वर्दी भले ही साहब से पीछा छुड़ा गई, लेकिन विवादों से पीछा नहीं छूट रहा साहब का। जबतक पावर में रहे सिर्फ डंडा घुमाया। वैसे इनके चाहने वाले कहते रहे कि हुजूर पुलिस से ज्यादा बालीवुड के लिए फिट थे। ऐसा डायलाग मारते थे कि पूछो मत। कभी गले में सांप लटका लिया, तो कभी धारण कर लिया भगवा। मूड में आए तो नारे भी खूब लगाते थे। ऐसे-ऐसे काम किए कि सबका रिकार्ड टूट गया, फिर भी सिर्फ माया मिली, नहीं मिले राम। कहते हैं कि अब रिकार्ड ठीक कराने के लिए चुस्ती से जुट गए हैं। अपनी मंडली को भी लगाया है पूरे खेल में। साहब हैं खतरों के खिलाड़ी। उनके लिए कोई काम मुश्किल नहीं। बस थोड़ा साथ मिल जाए, तो लग जाएगा बेड़ा पार, लेकिन इनके दुश्मनों की तादाद देखकर लगता नहीं कि साहब के दिन सुधरने वाले हैं।
आकर मिलिए तो सही
सही कहा है, मेल-मुलाकात से ही बात बनती है। किस्मत से कोरोना काल में राजधानी में एंट्री मारने का मौका मिला हुजूर को। पहले से ही छवि ऐसी बना दी है दुश्मनों ने कि पूछो मत। अब भला हुजूर लकड़ी जलाकर अग्निपरीक्षा दें अपनी पवित्रता की। जितना पुण्य कमाया था, सब पाप धोने में निकल गया। अब बारी फिर से सबकुछ पाने की है, सो इसका भी अजब आइडिया निकाला है। पता लगा रहे हैं कि पुराने वाले की महिमा के कौन-कौन कायल थे। लिस्ट और नंबर हाथ में आया, तो एक-एक कर पूछ रहे हैं हालचाल। न्योता भी दे रहे हैं कि कभी आइए तो सही हमारी कोठी पर, आकर मिलिए तो सही। हमें भी अपना दोस्त ही समझिए। वैसे कोरोना काल में मिलने-मिलाने के खतरे हजार हैं, लेकिन हुजूर के बुलावे को टालते भी नहीं बन रहा सेवादारों को।
रूखे हैं साहब
साहब को न उधो से लेना है, न माधो को देना है। बस काम के सिवाय कुछ इन्हें भाता नहीं। कोई आकर लटकने की कोशिश करे, तो उसे भी बर्दाश्त नहीं करते। यही कारण है कि सबको साहब की यह अदा भाती नहीं। वह तो किस्मत से उलट-पुलट हुई कि चांस मिल गया। पहले बहुत हाथ-पांव चलाया जलने वालों ने, लेकिन जिसकी किस्मत में कुर्सी है, उसे भला कौन जमीन पर गिराए। बस इसी धुन में साहब ने ऐसी रेस पकड़ी है कि कोई पकडऩे वाला दिख नहीं रहा आसपास। बस इसी मौके का फायदा उठाते हुए एक नौसिखिया गया था साहब का आशीर्वाद लेने। कह बैठा कि सर क्या आदेश है हमारे लिए। साहब ठहरे बैरागी, छूटते ही बोल दिया कि जितनी जल्दी हो, निकल लो झारखंड से। बस हुजूर ने बांध लिया है बोरिया-बिस्तर। वैसे, झारखंड की महिमा का मोह जल्दी छूटे, तो दिल्ली में मन लगा पाएंगे हुजूर।
बदल लेते हैं भगवान
साहबों में नर-नारी का भेद कभी मत करिए। ये इन छोटी बातों से कोसों दूर रहते हैं। सारी कोशिश बस कुर्सी को टिकाए रखने की होती है। एक बात और, इनकी भक्ति में कोई कमी नहीं आती, बस ये वक्त के साथ बदलते रहते हैं भगवान। जिसका राजपाट, उसी की सेवा। इनके टिके रहने का यही तो मूल मंत्र हैं। तभी तो समय के साथ डिब्बे का एड्रेस और मेन्यू तक चेंज हो जाता है। वैसे यह नुस्खा भी एकदम आजमाया हुआ है। करो सेवा, पाओ मेवा। अब इन्हें ही देख लीजिए, जोड़ी देखकर जलते हैं सामने वाले। एक बार जो डिपार्टमेंट पकड़ा है, वह नाम ही नहीं लेता छूटने का। भले ही भद्द पिट जाए सरकार की, लेकिन साहब-मैडम की भोली मुस्कान के सब कायल हैं। इनकी काबिलियत देखकर जलते हैं साथ वाले तो जलते रहें। फिलहाल इनकी कुर्सी को कोई खतरा नहीं है।