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पूर्व मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती को मिली जमानत, लेकिन अभी रहेंगे जेल में

झारखंड हाई कोर्ट से पूर्व मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती को राहत मिल गई है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 09 Feb 2019 05:53 AM (IST)Updated: Sat, 09 Feb 2019 05:53 AM (IST)
पूर्व मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती को मिली जमानत, लेकिन अभी रहेंगे जेल में
पूर्व मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती को मिली जमानत, लेकिन अभी रहेंगे जेल में

रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड हाई कोर्ट से पूर्व मुख्य सचिव सजल चक्रवर्ती को राहत मिल गई है। जस्टिस अपरेश कुमार सिंह की अदालत ने चाईबासा (आरसी 20ए/96) मामले उन्हें जमानत प्रदान कर दी है। साथ ही, सजल को जुर्माने के रूप में डेढ़ लाख रुपये जमा करने का निर्देश दिया। जमानत के लिए सजल को पचास-पचास हजार रुपये का बेलबांड भी भरना होगा। सजल चक्रवर्ती को चाईबासा (आरसी 68ए/96) के एक अन्य मामले में भी सजा मिली है।

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जिसमें जमानत की याचिका हाई कोर्ट में सुनवाई के लंबित इसलिए फिलहाल उन्हें जेल में रहना होगा।

सुनवाई के दौरान सजल की ओर से अदालत को बताया गया कि आरसी 20ए/96 मामले में उन्हें पांच साल की सजा सुनाई गई है। उन्होंने 31 माह जेल में बिताए हैं, इसलिए उन्हें जमानत मिली चाहिए। अदालत ने उनके आग्रह को स्वीकार करते हुए जमानत की सुविधा प्रदान कर दी। सीबीआइ की ओर से अधिवक्ता राजीव नंदन प्रसाद ने कोर्ट में पक्ष रखा।

बिहार के पूर्व डीजीपी डीपी ओझा व सीबीआई एएसपी एके झा को राहत

झारखंड हाई कोर्ट से बिहार के पूर्व डीजीपी डीपी ओझा व सीबीआइ के एएसपी एके झा को बड़ी राहत मिली है। जस्टिस अपरेश कुमार सिंह की अदालत ने दोनों के खिलाफ जारी समन के आदेश को निरस्त कर दिया। देवघर कोषागार मामले में आरोपित बनाने के लिए सीबीआइ कोर्ट ने इनके खिलाफ समन जारी किया था।

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि सीबीआइ कोर्ट ने समन जारी करने के पूर्व सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया। सीआरपीसी की धारा 319 के तहत तभी किसी को आरोपित बनाने के लिए समन जारी किया जा सकता है, जिसके खिलाफ पुख्ता सबूत हो, जिसके आधार पर उसे सजा भी मिल जाए।

इस मामले में सीबीआइ को समन से पहले इन लोगों को नोटिस जारी करना चाहिए था। साथ ही पूरे ट्रायल के दौरान इन लोगों के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला था। इसलिए सीबीआइ के समन को निरस्त किया जाता है। बता दें कि पूर्व डीजीपी डीपी ओझा व सीबीआइ के एएसपी एके झा ने सीबीआइ के समन को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

राज्य में 12 वां मंत्री बनाना अनिवार्य है या नहीं दें रिपोर्ट

झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अनिरुद्ध बोस व जस्टिस एचसी मिश्र की अदालत में राज्य सरकार में 12वें मंत्री को शामिल नहीं किए जाने के मामले में सुनवाई हुई। अदालत ने मौखिक रूप से सरकार से पूछा कि अभी कैबिनेट की क्षमता क्या है?

कैबिनेट में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या कम से कम कितनी होनी चाहिए और ज्यादा से ज्यादा कितनी हो सकती है? राज्य में 12वा मंत्री बनाना अनिवार्य है अथवा नही? अदालत ने सरकार से इससे संबंधित पूरी जानकारी कोर्ट में दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले में अगली सुनवाई 15 फरवरी को होगी।

इससे पहले अधिवक्ता राजीव कुमार ने अदालत को बताया कि चार साल में सरकार ने 12वां मंत्री नहीं बनाया है। विधानसभा में विधायक सदस्यों की कुल संख्या के 15 फीसद को मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है, जबकि झारखंड में मंत्रियों की संख्या 12 से कम है। वहीं, सरकार की ओर से इस मामले में जानकारी लेकर कोर्ट को अवगत कराने की बात कही गई।

जिसके बाद अदालत ने सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। गौरतलब है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रदीप कुमार बलमुचू ने हाई कोर्ट में इस बाबत याचिका दाखिल की है।


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