पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा व तीन भाजपा नेता बरी
बैरिकेटिंग तोडने सहित अन्य आरोप में यशवंत सिन्हा, संजय सेठ, यदुनाथ पाडेय व अजय मारू साक्ष्य के अभाव में बरी हुए।
जागरण संवाददाता, राची : पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा व तीन भाजपा नेताओं को न्यायिक दंडाधिकारी वैशाली श्रीवास्तव की अदालत ने साक्ष्य के अभाव में बरी किया। बरी होने वालों में भाजपा नेताओं में राज्य खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के अध्यक्ष संजय सेठ, यदुनाथ पाडेय व अजय मारू शामिल थे। नेताओं की ओर से अधिवक्ता रणविजय सिंह ने पैरवी की।
उन्होने बताया कि नेताओं पर गलत आरोप लगा था। कोर्ट ने बरी कर दिया। उन्होंने बताया कि राज्य के जनता से जुड़े विभिन्न मुद्दे और भ्रष्टाचार के खिलाफ 12 मई 2008 से 23 मई 2008 तक भाजपा का सीएम आवास घेराव का कार्यक्रम था। उस समय मधु कोड़ा मुख्यमंत्री थे। नेताओं पर काके के तत्कालीन अंचलाधिकारी रंजीत सिन्हा ने गोंदा थाना में 12 मई 2008 को प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
उसने आरोप लगाया था कि 12 मई 2008 को मुख्यमंत्री आवास घेराव के दौरान इन नेताओं ने हॉटलिप्स चौक पर प्रदर्शन किया। प्रदर्शन करते हुए निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया, नाजायज मजमा बनाकर बैरिकेडिंग तोड़ते हुए प्रतिबंधित क्षेत्र में घुस गए। पुलिस ने जब उन्हें रोकने का प्रयास किया तो सभी नेता सड़क पर ही धरने पर बैठकर प्रदर्शन करने लगे। इससे सड़क जाम भी हो गई, जिस कारण आने-जाने वालों को परेशानी हुई। यातायात बाधित हो गया।
13 में तीन लोगों ने ही दी थी गवाही
मामले में 13 लोगों को गवाह बनाया गया था। इसमें दस लोग गवाही देने पहुंचे ही नहीं। तीन लोगों की गवाही दर्ज की गई। उसने भी घटना के बारे में अदालत को स्पष्ट जानकारी नहीं दी। तीन गवाहों में एक गवाह सिपाही और दो प्रशासनिक पदाधिकारी थे। सिपाही मधई मंडल ने अभियुक्तों को पहचानने से इन्कार किया था। दो गवाहों में के रवि कुमार और अखौरी शशाक कुमार सिन्हा शामिल थे। उन्होंने अपनी गवाही में अदालत को बताया था कि 12 मई 2008 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के काके रोड़ स्थित आवास के समीप हॉटलिप्स पर क्या घटना हुई थी, घटना में कौन-कौन लोग थे यह सब उन्हें याद नहीं है और न ही घटना को अंजाम देने वाले लोगों को वे पहचानते हैं।
नीति आयोग फैसला करने वाली बॉडी नहीं :
नीति आयोग की बैठक पर यशवंत सिन्हा कहा कि नीति आयोग की बैठक साल में होती है। मुख्यमंत्री अपनी बात रखते हैं, मांग भी रखते हैं और उपलब्धिया भी गिनाते हैं। इस पर केंद्र सरकार को फैसला करना है, क्योंकि नीति आयोग फैसला करने वाली बॉडी नहीं है। केंद्र सरकार पर निर्भर है कि वह क्या करती है। झारखंड के मुख्यमंत्री भी उसमें अपनी बातें रखे हैं। वह कहा तक सही है। इस पर केंद्र सरकार को देखने की जरूरत है।
भूमि अधिग्रहण पर मिलकर रास्ता निकालना चाहिए :
झारखंड में भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन के प्रस्ताव को राष्ट्रपति के द्वारा मंजूरी दिए जाने के बाद राज्य के राजनीति में सरगर्मी तेज हो गई है। पूर्व मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा भूमि अधिकरण बिल में संशोधन करने से रैयतों को कोई नुकसान तो नहीं है। रैयतों को बिना मर्जी से जमीन देने के लिए बाध्य होना पड़े, समुचित मुआवजा नहीं मिले यह प्रावधान ठीक नहीं है।
दोनों तरफ की विचारों को हमने देखा है। उसमें स्टडी करने की जरूरत है। समाधान का रास्ता निकालना चाहिए। राज्य सरकार को सभी राजनीतिक दलों के नेता और सामाजिक संगठनों के लोगों से विचार करना चाहिए। इसके बाद समाधान निकालना चाहिए।