झारखंड: पांच इंजीनियरों ने सरकारी पैसे हड़पने के लिए रचा आपराधिक षडयंत्र
Corruption. ग्रामीण विकास विभाग की रिपोर्ट में राशि में व्यापक गड़बड़ी का खुलासा हुआ है। इसके मुताबिक चहेते सहायक अभियंताओं को एकमुश्त 2.68 करोड़ रुपये दे दिए गए।
रांची, राज्य ब्यूरो। झारखंड में अफसरशाही ने भ्रष्टाचार के कई नमूने पेश किए हैं। इसी कड़ी में एक और नाम ग्रामीण विकास विशेष प्रमंडल, हजारीबाग का जुड़ गया है। भ्रष्टाचार की यह कहानी संबंधित प्रमंडल के कार्यपालक अभियंता गुमानी रविदास के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है। रविदास पर आरोप है कि उन्होंने न सिर्फ उच्चाधिकारियों के आदेश की अवहेलना की, बल्कि जांच दल को भी अपेक्षित सहयोग नहीं किया। नतीजतन जांच में एक साल का अनावश्यक समय लगा।
ग्रामीण विकास विभाग की रिपोर्ट पर गौर करें तो रविदास पांच अभियंताओं के सहयोग से सरकार को नचाते रहे। अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अधीनस्थ अभियंताओं के सहयोग से उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से सरकारी राशि का गबन करने का आपराधिक षडयंत्र रचा। पांच सहायक अभियंताओं तथा 22 कनीय अभियंताओं के रहते हुए उन्होंने दो सहायक तथा छह कनीय अभियंताओं की एक कोर कमेटी बनाई। इनमें से दो सहायक अभियंताओं को पूरे जिले का प्रभार सौंप दिया। योजनाओं की अग्रिम राशि दोनों अभियंताओं को एकमुश्त दे दी गई। संबंधित राशि सरकारी अथवा निजी खाता में जमा है, अभियंताओं ने न तो विभाग को जानकारी दी और न ही उसे समायोजित किया गया।
इस गड़बड़झाले में कनीय अभियंता हरिशंकर सिंह और संजय कुमार सिंह की सहभागिता भी बताई गई है। विभिन्न स्तरों पर हुई जांच में गड़बडिय़ां सामने आने पर ग्रामीण विकास विभाग के प्रधान सचिव की अनुशंसा पर विभागीय मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा ने सख्त कार्रवाई का आदेश दिया है। साथ ही गबन की गई राशि सूद समेत वसूलने का आदेश दिया है।
गड़बड़ी की बानगी : गुमानी रविदास ने जिन दो सहायक अभियंताओं को पूरे जिले का प्रभार सौंपा, उनमें से सहायक अभियंता सुनील कुमार को उन्होंने एक करोड़ 51 लाख 58 हजार रुपये के चेक बतौर अग्रिम एकमुश्त दे दिया। इसी तरह उन्होंने सहायक अभियंता पप्पू कुमार को दो चेक के माध्यम से क्रमश: 66.94 लाख तथा 50 लाख रुपये दे डाले। जिला कार्यक्रम समन्वय की ओर से जब संबंधित राशि के बारे में जानकारी मांगी गई, परंतु कार्यपालक अभियंता ने उनके आदेश की अवहेलना की। और तो और न तो योजनाओं को पूरा करने की कोशिश की गई, न तो राशि के समायोजन का प्रयास किया गया और न ही दोषी अभियंताओं के खिलाफ कार्रवाई ही की गई।
अभियंताओं की कारगुजारी : -व्यक्तिगत लाभ सुरक्षित रखने के लिए इन्होंने योजनाओं को दरकिनार किया। नतीजतन मनरेगा के तहत 100 दिनों का रोजगार मुहैया कराना संभव नहीं हो सका। -बगैर प्राक्कलन का काम किया गया। पुल की ऊंचाई पांच फीट की जगह नौ फीट रखी गई, जिससे जनता को कोई लाभ नहीं हुआ। -तालाब के गहरीकरण में 63 हजार रुपये का गड़बड़झाला किया गया। इसी तरह सड़क निर्माण की एक योजना में 1.24 लाख रुपये का गबन किया।