Exclusive: शहरों में गोद में ही दम तोड़ रहीं दुधमुंही बेटियां, SRS रिपोर्ट में खुलासा
झारखंड में फीमेल शिशुओं की मृत्यु दर में वृद्धि गांवों के मुकाबले शहरी क्षेत्रों में खतरा अधिक। यानी बेटियां शहरों के मुकाबले गांवों में ज्यादा बेहतर तरीके से पल-बढ़ रहीं। पढ़ें रिपोर्ट
रांची, [नीरज अम्बष्ठ]। बात चिंता की है। शहरों में दुधमुंही बेटियां गोद में ही दम तोड़ रही हैं। उनकी मृत्यु दर में वृद्धि हुई है। हालांकि गांवों से थोड़ी राहत की खबर है। यहां शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। यानी बेटियां शहरों के मुकाबले गांवों में ज्यादा बेहतर तरीके से पल-बढ़ रहीं। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया द्वारा जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम-2019 के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। शिशु मृत्यु दर शून्य से एक वर्ष के दौरान हुई मौतों को इंगित करता है।
- स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की बढ़ी चिंता, होगा मंथन
- ग्रामीण क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर में आई कमी, मेल शिशु में भी
- सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम-2019 रिपोर्ट में खुलासा
दो साल पूर्व सितंबर 2017 में जारी सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में वर्ष 2016 में प्रति एक हजार जन्म पर 29 शिशुओं की मौत एक वर्ष के अंदर हो जाती थी। वर्ष 2017 के आंकड़ों के आधार पर दो साल बाद मई 2019 में जारी रिपोर्ट में भी यह दर 29 ही बनी हुई है। इस तरह प्रदेश के शिशुओं के स्वास्थ्य में इस दौरान कोई सुधार नहीं हो सका। हालांकि, झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर 31 से घटकर 30 हुई है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में यह दर 21 से बढ़कर 24 हो गई। ऐसा शहरी क्षेत्रों में बेटियों की मृत्यु दर में काफी अधिक वृद्धि होने से हुआ।
लिंग आधारित दर की बात करें तो झारखंड में मेल शिशुओं की मृत्यु की दर में कमी आई है, लेकिन बेटियों में यह दर बढ़ गई है। झारखंड में बेटियों की मृत्यु दर दो साल पहले 31 थी जो बढ़कर 33 हो गई। बेटियों की मृत्यु दर में सबसे अधिक वृद्धि शहरी क्षेत्रों में हुई है। शहरी क्षेत्रों में बेटियों की मृत्यु दर प्रति एक हजार जन्म पर दो साल पूर्व बीस थी जो बढ़कर 31 हो गई। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में मेल शिशु मृत्यु दर में कमी आई है। यह दर 22 से घटकर 19 हो गई है।
कहीं लड़का व लड़की में भेद तो कारण नहीं?
शहरी क्षेत्रों में फीमेल शिशुओं की मृत्यु दर में वृद्धि के क्या कारण हो सकते हैं, यह स्वास्थ्य विभाग के पदाधिकारियों की भी समझ में नहीं आ रहा है। विशेषज्ञ भी इसके कारणों को लेकर असमंजस की स्थिति में हैं। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि लड़के व लड़कियों में भेद की मानसिकता भी इसका एक कारण हो सकता है। शहरी क्षेत्र के पढ़े-लिखे लोगों में यह भेद अधिक होता है। आइएमए, झारखंड के डा. विमलेश सिंह का कहना है कि इसके कई कारण हो सकते हैं। इसकी समीक्षा जरूरी है। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में बेटियों की बेहतर स्थिति की एक वजह यह जरूर मानी जा सकती है कि गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति सुधरी है।
शहरी क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय दर से अधिक
झारखंड में कई वर्षों से शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय दर से काफी कम रही है। अभी भी राष्ट्रीय दर 33 है, जबकि झारखंड में यह दर 29 है। लेकिन इन दो साल में शहरी क्षेत्रों में शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय दर से अधिक हो गई है। राष्ट्रीय स्तर पर शहरी क्षेत्रों में एक हजार जन्म पर 23 शिशुओं की मौत एक वर्ष के भीतर हो जाती है, जबकि झारखंड में यह दर शहरी क्षेत्रों में 24 हो गई है।
बेटियों की मृत्यु दर भी राष्ट्रीय दर से अधिक
शहरी क्षेत्रों में बेटियों की मृत्यु दर भी राष्ट्रीय दर से अधिक है। सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर यह दर महज 25 है जबकि झारखंड में यह दर 31 है।
ऐसे समझिए शिशु मृत्यु दर को
झारखंड में शिशु मृत्यु दर 29 है तो इसका मतलब यह है कि एक हजार बच्चे के जन्म होने पर 29 बच्चे की मौत एक वर्ष के अंदर हो जाती है। इतने बच्चे अपना पहला जन्मदिन नहीं मना पाते।
निश्चित रूप से यह चिंता की बात है। हम इसकी समीक्षा करेंगे। शहरी क्षेत्रों में फीमेल शिशुओं की मृत्यु दर में क्यों वृद्धि हुई, इसे अभी बता पाना मुश्किल है। इसके कई कारण हो सकते हैं। डा. अजित कुमार, शिशु स्वास्थ्य प्रभारी, राष्ट्रीय स्वास्थ्य अभियान, झारखंड।
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