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पिता थे मेरे पहले गुरु, हर चुनौती से लड़ने का हौसला दिया: डीसी

रांची डीसी ने कहा कि मेरे पिता पहले गुरु थे।

By JagranEdited By: Published: Sat, 05 Sep 2020 01:37 AM (IST)Updated: Sat, 05 Sep 2020 01:37 AM (IST)
पिता थे मेरे पहले गुरु, हर चुनौती से लड़ने का हौसला दिया: डीसी
पिता थे मेरे पहले गुरु, हर चुनौती से लड़ने का हौसला दिया: डीसी

जागरण संवाददाता, रांची : हिदी जनमानस के हृदय की प्रतिनिधि रचना कही जाने वाली गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस में श्रीराम वाल्मीकि संवाद में वाल्मीकि राम से कहते हैं:- तुम्ह तें अधिक गुरहि जियं जानी। सकल भयं सेवहि सनमानी..। हे राम, आप उनके हृदय में निवास करें, जो आपसे ज्यादा गुरु को महत्व देते हैं। भारतीय संस्कृति अनंत काल से गुरु की महिमा को अलग-अलग रूपों में बताती रही है। शिक्षक दिवस पर मैं अपने उन सभी शिक्षकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं, जिन्होंने मुझे जीवन को समझने की दृष्टि प्रदान की। मेरे पहले गुरु मेरे पिता आरडी पंडित रहे। उन्होंने मुझे हर चुनौती से लड़ने का हौसला दिया। स्कूली शिक्षा के दौरान सेंट मेरिज स्कूल तथा विद्या भारती चिन्मया विद्यालय के शिक्षकों ने मेरा मार्गदर्शन किया। मैं विशेष रूप से सेंट मेरिज की शिक्षिका सुशीला तथा चिन्मया विद्यालय के त्रिपाठी सर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं। इन दोनों ने मुझे अपना बेटा समझा। समय-समय पर मेरा मार्गदर्शन किया। जीवन में आज मैं जिस भी मुकाम पर पहुंचा हूं, उसमें शिक्षकों की बेहद अहम भूमिका रही है।

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आजीवन प्रेरणा पुंज बने रहेंगे गुरु के दिखाए रास्ते : लोकेश मिश्रा

जासं, रांची : रांची के एसडीओ लोकेश मिश्रा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि मेरे सबसे प्यारे और आदर्श गुरु हैं विजय तिवारी। उन्होंने मुझे मेरे गांव के सरकारी स्कूल लीलावती मोंटेसरी स्कूल प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश में कक्षा एक से 10 तक हिदी साहित्य व भाषा की शिक्षा दी। उनकी सबसे विलक्षण बात यह थी कि वे सभी छात्रों में व्यक्तिगत रुचि लेते थे। हिदी के साथ वे सभी विषयों को पढ़ने के लिए प्रेरित करते थे। पढ़ाई में कभी भी कोई परेशानी हो तो सीधे उनसे किसी भी समय संपर्क करने की छूट थी। वे कभी उबते नहीं थे। कितने भी व्यस्त क्यों न हों, बड़ी गंभीरता से बच्चों की पढ़ाई से संबंधित समस्या का समाधान करते थे। स्कूल छूटे इतने दिन हो गए, लेकिन वे आज भी मुझसे संपर्क करते रहते हैं। हमेशा अपने पिता की तरह कर्तव्यपरायण और सत्यनिष्ठ बनने की प्रेरणा देते रहते हैं। मेरे पिता अनिल प्रकाश मिश्रा ग्रामीण बैंक के मैनेजर पद से सेवानिवृत्त हैं। मेरे गुरु विजय तिवारी मेरे पिता के अच्छे मित्र भी हैं। आज मैं जहां भी हूं, अपने गुरु विजय तिवारी की प्रेरणा से ही हूं। उनके दिखाए रास्ते मेरे लिए प्रेरणा पुंज हैं।


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