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पिता आइएएस बनाना चाहते थे मैं लेखिका बन गई : गीतांजलि श्री

रांची आमतौर पर अधिकतर अभिभावक सोचते हैं कि उनके बच्चों का भविष्य सरकारी नौकरी में ही सुरक्षित रहेगा। इसी तरह का विचार प्रसिद्ध लेखिका गीतांजलि श्री के पिता का भी था।

By JagranEdited By: Published: Sun, 13 Oct 2019 02:54 AM (IST)Updated: Sun, 13 Oct 2019 02:54 AM (IST)
पिता आइएएस बनाना चाहते थे मैं लेखिका बन गई : गीतांजलि श्री
पिता आइएएस बनाना चाहते थे मैं लेखिका बन गई : गीतांजलि श्री

नवीन शर्मा , रांची :

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आमतौर पर अधिकतर अभिभावक सोचते हैं कि उनके बच्चों का भविष्य सरकारी नौकरी में ही सुरक्षित रहेगा। इसी तरह का विचार प्रसिद्ध लेखिका गीतांजलि श्री के पिता का भी था। वे चाहते थे कि उनकी बेटी आइएएस बने और एक ब्राह्मण आइएएस लड़के से ही शादी भी करे। यह बात उन्होंने गीतांजलि के जन्मदिन पर सौ रुपये का नोट देते हुए कही थी, लेकिन गीतांजलि ने वो सौ रुपये का नोट नहीं लिया और बिना कुछ कहे मुड़ कर चली आईं। यही वो मोड़ था जिसने यह साफ कर दिया था कि गीतांजलि लकीर की फकीर नहीं है। गीतांजलि ने खुद और नियति ने भी उनके लिए कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण और दमदार किरदार तय कर दिया था। गीतांजलि को तो लेखिका बनना था और वो भी हिदी की। यह बातें गीतांजलि श्री ने साहित्यप्रेमियों के संग साझा कीं। मौका था प्रभा खेतान फाउंडेशन व दैनिक जागरण के कलम कार्यक्रम का। श्री सीमेंट द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम में मुक्ति शाहदेव ने उनकी जीवन यात्रा, लेखन प्रक्रिया व रचना संसार के बारे में कई अनछुए पहलुओं को जानने के लिए उनसे बातचीत की। पिता अंग्रेजी के पैरोकार, मां की भाषा हिदी

गीतांजलि अपने लेखन यात्रा के बारे में बताते हुए कहती हैं कि मेरे पिता को लगता था कि मैं हिदी में लेखन कर अपना जीवन बर्बाद करूंगी। उनकी धारणा थी कि फ्यूचर बिलोंग्स टू इंग्लिश। मेरी पढ़ाई भी इंग्लिश मीडियम से ही हुई थी, लेकिन मेरी मां की भाषा तो हिदी थी हम मां से हिदी में ही बात करते थे। आजादी के बाद का दौर था हिदी को लेकर देशवासियों में प्रेम की भावना थी। उस दौर में हिदी के साहित्यकारों को भी सुनने का मौका मिला। पराग, चंदामामा और नंदन जैसी किशोरवय के लिए निकलनेवाली पत्रिकाओं को पढ़ती थी। साहित्य में रस आने लगा। दादी -नानी के किस्से कहानियां मन को भाती थीं। इसलिए हिदी में ही छिटपुट लिखना शुरू किया। देर से लिखना शुरू किया

गीतांजलि बताती हैं कि उन्होंने लिखना देर से शुरू किया। वे पीएचडी कर रही थीं। उम्र करीब 27-28 की थी। शादी भी हो गई थी। पति के साथ ट्रेन में सफर कर रही थीं तो सोचने लगीं कि अगर मुझे लेखन ही करना है तो अब तक क्या लिखा है? इसी उधेड़बुन में ट्रेन के सफर में ही कहानी लिखी। पति को दिखाई तो उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं लगता कि पहली बार कोई लिख रहा है। इसके बाद लेखन का सिलसिला शुरू हुआ और कहानियों से होते-होते उपन्यास तक पहुंचा। अब तो वे एक थियेटर ग्रुप की अनुराधा कपूर के साथ मिलकर नाटकों के लिए भी लिखतीं हैं। पति के सहयोग ने लेखन को करियर बनाने में मिली मदद पति व पत्नी को दांपत्य जीवन की गाड़ी के दो पहिए माना जाता है। उनकी टयूनिंग अच्छी रहे तो जिंदगी का सफर आसान हो जाता है। गीतांजलि को भी पति का पूरा साथ मिला। उन्होंने कहा कि कॉलेज में पढ़ाने का काम छोड़ो, पूरी तरह से लेखन में जुट जाओ। पहले एजेंडा तय करके या खाका बनाकर नहीं लिखतीं हर लेखक के लेखन प्रक्रिया होती है। गीतांजलि कहतीं हैं कि वे कोई एजेंडा तय करके या पूरा खाका बनाकर नहीं लिखतीं। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती जाती है तो वो उसे उसकी सहज व स्वभाविक गति व शैली में आगे बढ़ने देतीं हैं। रेत समाधि, मौत के द्वार पर जिजीविषा की कथा गीतांजलि का उपन्यास रेत समाधि अपनी शैली व कहानी को लेकर काफी चर्चित रहा है। यह मौत के द्वार पर पहुंची बुजुर्ग महिला की जिजीविषा की कहानी है। ऐसे वक्त में जब वो जीवन की तरफ से मुहं मोड़ कर पीठ कर लेती हैं। ऐसे में उसके परिवार के अन्य सदस्य उन्हें जीवन की तरफ उन्मुख करने की कोशिश करते हैं। इससे मां और बेटी की बाउंडिंग की कथा रूप लेती है और वो बुजर्ग महिला फिर से जीवन को अलहदा अंदाज में जीने लगती है। गीतांजलि बताती हैं कि वृद्ध हो जाने पर भी इच्छाएं खत्म नहीं होतीं हैं। इसलिए हमें अपने प्यारों की इच्छाएं पूरी करनी चाहिए। वे बतातीं है कि उनकी मां जो 92 वर्ष की हैं वे कहतीं है कि गोवा जाना रह गया।

इसके साथ ही उपन्यास में रोजी नाम की किन्नर (थर्ड जेंडर) भी एक महत्वपूर्ण पात्र है जो कहानी को एक नया आयाम देता है। पाकिस्तान बार्डर का अतिक्रमण भारत के इतिहास में देश विभाजन एक ऐसा निर्णय था जिसने करोड़ों भारतवासियों को प्रभावित किया था। कई लोगों के लिए इस त्रासदी को पचा पाना बेहद कठिन रहा है। बार्डर के दोनों तरफ के लोगों के लिए इस विभाजन को पचा पाना बहुत मुश्किल है। गीतांजलि बताती हैं कि वे एक बार पाकिस्तानी लेखक इंतजार हुसैन के बुलावे पर पाकिस्तान गईं थी। वे पाकिस्तान में सिर्फ उन्हें ही जानती थीं लेकिन जितने दिन वे वहां रहीं उन्हें वहां के कई लोगों ने प्रेमपूर्वक अपने घरों में बुलाकर मेहमाननवाजी की। इंतजार हुसैन भी जब भारत आए तो उनकी चाहत पर उन्हें वृंदावन घुमाने ले गए थे। इन अनुभवों का असर उनके रेत समाधि उपन्यास के किरदारों द्वारा बिना वीसा के पाकिस्तान जाने की घटनाओं पर नजर आता है।

इस मौके पर गीतांजलि ने रेत समाधि उपन्यास के कुछ अंश पढ़ कर सुनाए। यह संवेदनशील प्रसंग साहित्यप्रेमियों के दिल को छू गया। अंत में लेखिका से लोगों ने कुछ प्रश्न भी पूछे। कई लोगों ने किताब पर उनके ऑटॉग्राफ लिए और सेल्फी भी ली।


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