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'काला जीरा' की खेती से महक रही किसानों की जिंदगी, जैविक तरीके से उपजाई जा रही बासमती धान की कई किस्‍में

Basmati Rice Production in Gumla विकास भारती के प्रयास से गुमला के नक्सल प्रभावित इलाके में बासमती धान की कई किस्में उपजाई जा रहीं हैं। किसानों की आय बढ़ाने के लिए संस्था बाजार भी उपलब्ध करा रही है। इसका दायरा लगातार बढ़ रहा है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Mon, 28 Dec 2020 11:03 AM (IST)Updated: Mon, 28 Dec 2020 05:51 PM (IST)
'काला जीरा' की खेती से महक रही किसानों की जिंदगी, जैविक तरीके से उपजाई जा रही बासमती धान की कई किस्‍में
गुमला में उपजाई जा रही बासमती चावल की यह किस्‍म।

रांची, [संजय कुमार]। Basmati Rice Production in Gumla विकास भारती के प्रयास से गुमला जिले के नक्सल प्रभावित इलाके बानालात के किसानों की जिंदगी संवर रही है। यहां बासमती धान की किस्म 'काला जीरा' की खेती से दर्जनों किसान परिवारों की जिंदगी महक रही है। यहां पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए रासायनिक खाद के उपयोग की बजाय जैविक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। विकास भारती के माध्यम से संचालित कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानी संजय पांडेय के प्रयास से पिछले वर्ष शुरू की गई सामूहिक खेती ने अब रंग दिखाना शुरू किया है।

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अब बासमती चावल बेचकर किसानों को अच्छी-खासी आमदनी हो रही है। विकास भारती के सचिव पद्मश्री अशोक भगत कहते हैं कि उनका उद्देश्य किसानों को स्वावलंबी बनाना और लोगों को रोजगार के लिए बाहर जाने से रोकना है। संस्था की ओर से धान से चावल निकालने तक की व्यवस्था कर किसानों को इसका बाजार भी उपलब्ध कराया जा रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानी संजय पांडेय के प्रयास से पिछले वर्ष शुरू की गई सामूहिक खेती अब इतनी सफल हो रही है कि उस इलाके के किसान अब चावल का निर्यात करने की तैयारी में लग गए हैं।

विकास भारती के अशोक भगत।

किसानों को मिल रही दोगुनी कीमत

कृषि विज्ञानी संजय पांडेय ने कहा कि बानालात के किसान पहले मोटा धान व गेहूं की खेती करते थे। उसमें उतनी आमदनी नहीं हो रही थी। बातचीत में पता चला कि इस इलाके में काला जीरा व जीरा फुल धान की खेती पहले खूब होती थी। अभी स्थिति ऐसी थी कि उसका बीज भी उपलब्ध नहीं था। कई गांवों में घुमने के बाद बीज मिला। पिछले वर्ष 56 किसानों के साथ 25 हेक्टेयर क्षेत्र में खेती शुरू की। इससे 200 क्विंटल धान का उत्पादन हुआ। वहीं इस वर्ष 400 क्विंटल से अधिक का उत्पादन हुआ है।

विकास भारती ने 3500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से किसानों से धान खरीद लिया। किसान यदि अपने से बाजार में इस धान को बेचते तो 2000 से 2500 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा मूल्य नहीं मिलता। धान से चावल निकालने के बाद उसकी प्रोसेसिंग कर बाजार में उतारने की तैयारी कर ली गई है। खेती कर रहे किसान बाबूराम उरांव, मलखन उरांव, कुंती देवी, रामवृक्ष खेरवार का कहना है कि इस खेती से बहुत ज्यादा लाभ मिल रहा है। परिवार की आर्थिक स्थिति सुधर रही है। नए कृषि कानून के बारे में किसानों का कहना था कि यह ज्यादा लाभदायक है। अब अपनी उपज को कहीं भी ले जाकर बेच सकते हैं।

लुप्त हो रही थी परंपरागत किस्म

डाॅ. संजय पांडेय ने कहा कि बासमती धान की यह प्रजाति विलुप्त हो रही थी। उस प्रजाति को फिर से जीवित रखने का काम किया है। इस धान में पानी की ज्यादा जरूरत होती है। इसलिए घाघरा नदी के किनारे इसकी खेती करवाई गई। वहीं किसानों को पंपसेट उपलब्ध कराया गया।


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