सुप्रीम कोर्ट के जज ने की फैमिली कोर्ट के लिए अलग परिसर की वकालत Ranchi News
जजों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सुप्रीम कोर्ट के जज एनवी रमना जस्टिस आर भानुमति जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने भाग लिया। विशिष्ट अतिथि जस्टिस डीएन पटेल भी कार्यक्रम में मौजूद रहे।
रांची, राज्य ब्यूरो। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमन ने कहा कि नियमित अदालत परिसर में फैमिली कोर्ट नहीं होना चाहिए। इसका अपना परिसर हो जहां सिविल और आपराधिक मामलों की सुनवाई नहीं होती हो। फैमिली कोर्ट के जज और वकीलों को यूनिफॉर्म पहनने से भी छूट मिलनी चाहिए, ताकि पारिवारिक विवाद सुलझाने के लिए आए लोगों को अच्छा माहौल मिले। लोग इसे कोर्ट नहीं बल्कि एक मदद केंद्र समझे और अपनी बातों को बेझिझक कह पाएं।
लेकिन यह सुनिश्चित करना होगा कि इस परिसर में असामाजिक तत्वों का प्रवेश न हो। जस्टिस रमन शनिवार को रांची के ज्यूडिशियल एकेडमी में फैमिली कोर्ट के जजों के दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने सभी फैमिली कोर्ट में एक हेड कांस्टेबल और चार जवानों की तैनाती करने का सुझाव दिया ताकि इस कोर्ट से जारी समन, वारंट और नोटिस का तामिला अविलंब करा सकें।
हाई कोर्ट और सरकार फैमिली कोर्ट में पर्याप्त संख्या में काउंसिलर, मनोविज्ञानी और विशेषज्ञों की नियुक्ति करे जो विवाद को सुलझाने में फैमिली कोर्ट को मदद कर सके। प्रशिक्षण कार्यक्रम में 13 राज्यों के फैमिली कोर्ट के जज हिस्सा ले रहे हैं। इसमें हाई कोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एचसी मिश्र समेत हाई कोर्ट के सभी जज, पुलिस अधिकारी, वरीय अधिवक्ता और न्यायिक अधिकारियों ने हिस्सा लिया।
समाज की नींव है परिवार : जस्टिस इंदिरा बनर्जी
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने कहा परिवार समाज की बेसिक यूनिट है। आज के समय में अहम (इगो) के चलते ही परिवार में विवाद होते हैं। कभी-कभी छोटी सी बात भी पति-पत्नी के बीच विवाद का बड़ा कारण बन जाती है। फैमिली कोर्ट में आने वाले हर केस की समस्या अलग होती है। इसलिए जजों को संवेदनशील होकर अपनी भूमिका का निर्वहन करना होगा। दोनों पक्षों के बीच काउंसेलिंग का प्रयास करना चाहिए, ताकि दोनों पक्षों को मिलाया जा सके।
गुजारा भत्ता तय करने में समय न गंवाएं : जस्टिस बानुमथि
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस आर बानुमथि ने कहा कि कई बार देखा गया है कि फैमिली कोर्ट पत्नी को गुजारा भत्ता देने में काफी विलंब करता है। सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा मामला आया जिसमें 11 साल तक गुजारा भत्ता तय ही नहीं किया गया। इतने दिनों तक अगर गुजारा भत्ता तय नहीं किया गया तो कोई भी महिला अपना और अपने बच्चों का जीवन यापन कैसे करेगी? उन्होंने पुलिसकर्मियों से आग्र्रह किया कि इस तरह के मामले में तुरंत प्राथमिकी दर्ज कर आरोपित को जेल न भेजें। पहले उनको मामलों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि अगर पति जेल चला जाता है, तो मामला और ज्यादा बिगड़ जाता है।
बच्चों के संरक्षण पर संवेदनशील होकर सोचें : जस्टिस पटेल
दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीएन पटेल ने कहा कि फैमिली कोर्ट के जजों को बच्चों के संरक्षण पर भी संवेदनशीलता से विचार करना होगा। उन्हें यह तय करना होगा कि बच्चे का सही संरक्षण किसके पास हो सकता है। इसके बाद ही निर्णय लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि फैमिली कोर्ट में पोस्टिंग को कई जज सजा के तौर पर लेते है, लेकिन उन्हें खुद भाग्यशाली समझना चाहिए कि उन्हें किसी के परिवार को बचाने का मौका मिला है।
विवाह बचाना हमारे हाथ में : जस्टिस मिश्रा
झारखंड हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एचसी मिश्र ने कहा कि जन्म और मृत्यु हमारे में हाथ में नहीं है, लेकिन विवाह को बचाना हमारे हाथ में हैं। संवेदनशीलता के साथ इसकी सुनवाई करनी चाहिए।