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झारखंड के एक लाल... बाबूलाल, बाबूलाल, जानें सत्ता के गलियारे का हाल Ranchi News

झारखंड में नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सेटिंग-गेटिंग बिठाने का खेल शुरू हो गया है। पूर्व मुख्‍यमंत्री बाबूलाल मरांडी भी सहयोगियों के साथ धुनी रमा रहे हैं।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sun, 18 Aug 2019 07:05 AM (IST)Updated: Sun, 18 Aug 2019 07:05 AM (IST)
झारखंड के एक लाल... बाबूलाल, बाबूलाल, जानें सत्ता के गलियारे का हाल Ranchi News
झारखंड के एक लाल... बाबूलाल, बाबूलाल, जानें सत्ता के गलियारे का हाल Ranchi News

रांची, [जागरण स्‍पेशल]। झारखंड में नवंबर में विधानसभा चुनाव संभावित हैं। सितंबर माह में इसकी अधिसूचना भी जारी हो सकती है। चुनाव आयोग इसकी तैयारियों में जुटा है। इस बीच सत्‍ता पक्ष-विपक्ष के नेता भी अपनी सेटिंग-गेटिंग बिठाने में लगे हैं। दलबदल की कसरत भी शुरू हो गई है। कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में भाजपा बड़ी संख्‍या में दूसरे दलों के विधायकों को पार्टी में शामिल कर विरोधियों पर कड़ा प्रहार करने की तैयारी में है। इधर पूर्व मुख्‍यमंत्री भी पूरे दमखम से चुनावी वैतरणी में छलांग लगाने की बात कह रहे हैं। आइए जानें चुनाव से पहले झारखंड की सत्ता के गलियारे का हाल...

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झारखंड के एक लाल
कंघी के सहारे भविष्य संवरने का दूर-दूर तक सीन नहीं दिखा तो कमल खिलाने निकल गए। सोचा लहर में बहकर दूर तक निकल जाऊंगा, परंतु विश्व के सबसे बड़े दल वालों ने दुलत्ती मार दी। फिर तीर-धनुष के सहारे लक्ष्य भेदने निकल गए। निशाना यहां भी नहीं सधा। जमुआ के चुनावी जंग में खेत हो गए। चांदनी की चाहत अमावस में तब्दील हुई, तो फिर लालबाबू याद आए। द्वार खुला था, सो सीधी इंट्री ले ली। अब गाते फिर रहे झारखंड के एक लाल... बाबूलाल, बाबूलाल।

नंदू बाबा हुए रेस
राजनीतिक परिस्थितियां अनुकूल हों और बिसात आपके अनुसार बिछी हो तो कांफिडेंस सिर चढ़कर बोलता है। अब अपने नंदू बाबा को ही ले लें। कमल दल वालों ने बिहार से खासतौर पर विधानसभा चुनाव के लिए आयात किया है। पहुंचते ही वे रेस हो गए। सामने वालों के राजनीतिक रसूख को ध्यान में रखते हुए ताबड़तोड़ निर्देश जारी किए। 65 प्लस की तयशुदा लकीर खींची और बिहार का रास्ता पकड़ लिया। दिल बल्लियों उछल रहा है, झारखंड में परिणाम अनुकूल रहे तो बिहार में पौ-बारह हो जाएगी।

मर्ज लाइलाज, डॉक्टर भी बीमार
पार्टी को परिवारवाद की ऐसी बीमारी है, जिसका इलाज बड़े-बड़े नहीं कर पा रहे हैं। शीर्ष से शुरू हुई बीमारी अब जड़ों तक पहुंच गई है और यही कारण है कि पार्टी में पार्षद का उम्मीदवार भी पूर्व पार्षद की पत्नी बनती है या फिर पुत्र बनता है। इस बीमारी का इलाज करने की ठान चुके डॉक्टर को मरीजों ने ही परेशान करके रख दिया। एक का इलाज करें, तो दूसरा हमला कर बैठे। दूसरे की दवा लाएं, तो तीसरा मोर्चे पर तैयार। कुल मिलाकर डॉक्टर हार ही गए। सो, एक दिन डॉक्टर पूरी तरह से डंका पीटकर लंका से निकल गए। अब देखने की बात यह है कि नया डॉक्टर कौन आता है। 


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