नियमित दवाओं के सेवन से ठीक हो सकती है मिर्गी
दूसरे बीमारियों की तरह ही मिर्गी पर भी आसानी से काबू पाया जा सकता है। तीन से चार साल तक दवा खाने से बीमारी ठीक हो जाती है। मिर्गी दिवस के अवसर पर रिम्स के डॉ अनिल कुमार ने उक्त बातें कहीं।
जागरण संवाददाता, रांची : दूसरे बीमारियों की तरह ही मिर्गी पर भी आसानी से काबू पाया जा सकता है। लोगों में जानकारी नहीं होने के कारण इसको लेकर कई प्रकार की भ्रांतियां है। अगर समय पर मरीजों को उचित उपचार मिल जाए तो रोगी पूरी तरह ठीक होकर सामान्य जीवन जी सकता है। इसके लिए उचित जांच व दवाएं आसानी से उपलब्ध है। यह मस्तिष्क से जुड़ी समस्या है। मिर्गी रोगियों को परिवार व समाज में ही नहीं, दूसरे जगहों पर भी कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उक्त बातें राष्ट्रीय मिर्गी दिवस को लेकर रिम्स न्यूरो सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल कुमार ने कही।
उन्होंने कहा कि यह ऐसी बीमारी है जो राज्य में भी तेजी से पैर पसार रही है। झारखंड में हर 1000 में से 5-6 लोग इससे पीड़ित होते हैं। ग्रामीण इलाके में इसके बारे में ठीक से जानकारी नहीं होने के कारण मरीजों का सही उपचार समय पर नहीं हो पाता। इंडियन एपिलेप्सी एसोसिएशन के अनुसार पूरे विश्व में करीब 5 से 6 करोड़ लोग मिर्गी से पीड़ित हैं। सिर्फ भारत में इसकी संख्या करीब 1 से 2 करोड़ है। हर साल करीब 1 लाख लोग मिर्गी के चपेट में
भारत में तो 70 फीसदी रोगियों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार उचित इलाज ही नहीं मिल पाता। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, सिर्फ झारखंड में हर साल करीब 1 लाख लोग इसकी चपेट में आ जाते हैं। डॉ. अनिल कुमार ने कहा कि मिर्गी पर दवाओं के जरिये आसानी से कंट्रोल किया जा सकता है। अगर सही ढंग से मरीज नियमित दवा ले तो तीन से चार साल में ठीक हो सकता है। मिर्गी होने के कई कारण है, अलग-अलग कारण के मरीजों को जीवन भर भी दवा खाकर बीमारी को कंट्रोल में रखा जा सकता है। --------
गांवों में नहीं मिल पाता सहीं उपचार
कहा, मिर्गी से पीड़ित करीब तीन-चौथाई लोगों को उचित उपचार ही नहीं मिल पाता। मिर्गी के 70 प्रतिशत मरीज गावों में रहते हैं, जहा बड़ी संख्या में अभी भी लोग इसे बुरी आत्मा का प्रभाव मानने के कारण रोगी और उसके परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर देते हैं। कई लोग भूत-प्रेत भगाने वालों या तात्रिकों के चक्कर में पड़ जाते है। जिससे बीमारी और गंभीर हो जाता है। डॉ. अनिल ने कहा कि यह बीमारी मस्तिष्क की गड़बड़ी के कारण होता है। चूंकि मस्तिष्क इलेक्ट्रोकेमिकल एनर्जी का उपयोग करता है, इसलिए मस्तिष्क की इलेक्ट्रिक प्रॉसेस में कोई भी अवरोध उसकी कार्यप्रणाली को असामान्य बना देता है। मिर्गी के दौरे
जब मस्तिष्क में स्थायी रूप से परिवर्तन होने लगता है और मस्तिष्क असामान्य संकेत भेजता है, तब लोगों को मिर्गी के दौरे पड़ते हैं। इससे मस्तिष्क की कार्यप्रणाली गड़बड़ा जाती है, जिससे व्यक्ति के ध्यान केंद्र करने की क्षमता और व्यवहार बदल जाता है। हालिया शोधों में यह बात सामने आई है कि सिर्फ 15 फीसदी मामलों में ही इस रोग का कारण पारिवारिक इतिहास होता है, जो पुरानी अवधारणा के विपरीत है। वैसे अधिकतर में 5 से 20 की उम्र में इसके लक्षण दिखने शुरू हो जाते है। मिर्गी के लक्षण
डॉ. अनिल ने कहा कि इस बीमारी का लक्षण इस पर निर्भर करता हैं कि मस्तिष्क का कौन-सा भाग इससे प्रभावित हुआ है और यह गड़बड़ी किस तरह से मस्तिष्क के बाकी भागों में फैल रही है। यह लक्षण सभी में अलग हो सकती है। मिर्गी का सबसे प्रमुख लक्षण है जागरूकता और चेतना की कमी। शरीर की गति, संवेदनाएं और मूड आदि प्रभावित होना भी इसके कारण है। कुछ लोगों को विचित्र अनुभूतिया होती हैं, जैसे शरीर में झुनझुनाहट होना, उस गंध को सूंघना, जो वास्तव में वहा होती ही नहीं है, या भावनात्मक बदलाव, बेहोशी जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं। -------
केस स्टडी 1
रिम्स में मिर्गी के बीमारी का लगातार दो सालों से इलाज करा रहे गिरिडीह के रहने वाले ज्योति शर्मा ने बताया कि उन्हें करीब चार सालों से मिर्गी के दौरे पड़ते है। शुरू के दो साल तो सिर्फ झाड़फूंक में बीता दिए लेकिन बीमारी में कोई सुधार नहीं हुआ। रिम्स में दो सालों से बीमारी का इलाज चल रहा है। डॉक्टर ने जो दवाएं दिए है उसे नियमित ढंग से लेने से बीमारी अब नियंत्रण में है। ज्योति ने बताया कि जब भी मिर्गी के दौरे पड़ते हैं तो शरीर में थरथराहट शुरू हो जाती है। जो लंबे समय तक रहती है। थरथराहट के बाद अचानक बेहोशी आ जाती है। अब यह लगभग नियंत्रण में है।