बाघ बचाने को पलामू टाइगर रिजर्व से हटाए जाएंगे आठ गांव
पलामू टाइगर रिजर्व में बाघों को बचाने के लिए कोर एरिया के भीतर आने वाले आठ गांवों को कहीं और बसाने की तैयारी है।
रांची : पलामू टाइगर रिजर्व में बाघों को बचाने के लिए कोर एरिया के भीतर आने वाले आठ गांवों को हटा कर इन्हें कहीं और बसाया जाएगा। रविवार को अंतरराष्ट्रीय व्याघ्र दिवस पर प्रधान मुख्य वन्य संरक्षक संजय कुमार ने इस कदम को बाघों के संरक्षण के लिए जरूरी बताया।
उन्होंने कहा कि यहां के आठ गांवों के पुनर्वास के लिए राज्य सरकार सबसे बेहतर पुनर्वास नीति लेकर आई है, जिस पर जल्द ही कैबिनेट की मंजूरी ली जाएगी।
संजय कुमार ने कहा कि पलामू के कोर एरिया में आठ गांव आते हैं जबकि बफर एरिया में 189 गांव। करीब इतने ही गांव इस जंगल की 10 किलोमीटर की परिधि में हैं।
कोर एरिया के लिए हम पुनर्वास नीति ला रहे हैं। जबकि बफर एरिया और आसपास के गांवों के ग्रामीणों की सामुदायिक भागीदारी बढ़ाकर उनका डेवलपमेंट किया जाएगा। अन्य विभागों से समन्वय स्थापित कर यहां विकास के कार्य चलाए जाएंगे।
यहां पालतू पशुओं की गतिविधियों को भी नियंत्रित किया जाएगा। सीसीएफ ने कहा कि किसी भी जंगल में बाघ की उपस्थिति उस जंगल की इकोलॉजी अच्छी है। हम केवल बाघ का संरक्षण नहीं करते बल्कि उस जंगल के अंतर्गत आने वाली इकोलॉजी को भी बचाते हैं।
देश की अर्थव्यवस्था को बचाते हैं। क्लाइमेट चेंज का उदाहरण देते हुए उन्होंने इसे स्पष्ट भी किया। कहा, पलामू में पिछले कुछ वर्षा में तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है, जबकि विश्वस्तर पर यह आंकड़ा एक डिग्री सेल्सियस का है।
किसी भी क्षेत्र में एक डिग्री तापमान बढ़ने से उस क्षेत्र में कृषि उपज 15 फीसद तक कम हो जाती है। वहीं, पानी की उपलब्धता 25-50 फीसद तक कम हो सकती है।
उन्होंने कहा कि बाघों को बचाने की हमारी मुहिम जारी है, यह एक चैलेंज भी है। स्वागत भाषण पीसीसीएफ वन्य जीव एलआर सिंह ने दिया। कार्यशाला को भारतीय वन्य प्राणी संस्थान, देहरादून के सेवानिवृत्त निदेशक पीआर सिन्हा और डीएस श्रीवास्तव ने भी संबोधित किया।
कभी बाघों को मारने की 500 रुपये होती थी फीस
पीसीसीएफ वन्य जीव एलआर सिंह ने बताया कि 1960 में एक बाघ को मारने की 500 रुपये फीस निर्धारित की गई थी। इसका परिणाम यह हुआ कि बाघों की संख्या तेजी से कम हुई, जिसका प्रतिकूल प्रभाव जंगलों पर भी पड़ा।
बाघों की तेजी से कम होती संख्या के बाद 1973 से इनके संरक्षण पर ध्यान दिया गया। प्रोजेक्ट टाइगर का गठन किया गया। भारत के पहले नौ टाइगर रिजर्व में पलामू टाइगर रिजर्व भी था। इको डेवलपमेंट को कभी गंभीरता से नहीं लिया गया
वन्य जीव बोर्ड के सदस्य डीएस श्रीवास्तव ने कहा झारखंड में कभी इको डेवलपमेंट को गंभीरता से नहीं लिया गया। कोई प्लानिंग नहीं हुई।
उन्होंने कहा कि पलामू टाइगर रिजर्व में 189 गांव हैं और करीब 32 हजार घर है। उनका जंगल पर दबाव हैं। लकड़ी काटी जा रही है, तस्करी से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। हा, जिस वाटर होल में भैंस चली जाती है, वहां कोई जानवर पानी नहीं पीता।
टाइगर रिजर्व में कैटल मैनेजमेंट एक बड़ा चैलेंज है। यहां टाइगर आते हैं और चले जाते हैं। पलामू में बायोटिक प्रेशर कम करना होगा। उन्होंने इससे निपटने के लिए सामूहिक सहभागिता पर जोर दिया। कहा, ग्रामीणों से हाथ मिलना होगा, तभी बाघ सहित अन्य वन्य जीवों का संरक्षण हो सकेगा। जैविक दबाव कम करना होगा
भारतीय वन्य प्राणी संस्थान के सेवानिवृत्त निदेशक पीआर सिन्हा ने बाघों के संरक्षण के लिए जैविक दबाव कम करने के एजेंडे पर काम करने की नसीहत दी। कहा, पलामू में कैटल का दबाव कम करना होगा। सरिस्का का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां समस्या का समाधान तब हुआ जब गांवों को जंगल से हटाया गया। बाघ इको सिस्टम की छतरी
पीसीसीएफ वन्य जीव एलआर सिंह ने कहा कि बाघ इको सिस्टम की छतरी है। जब हम एक बाघ को संरक्षित करते हैं तो उसके साथ अन्य वन्य जीवों और वनस्पतियों का भी संरक्षण होता है।
जहां बाघ होता है, वह जंगल सर्वश्रेष्ठ होता है। उन्होंने कहा कि बाघों का संरक्षण सिर्फ वन विभाग की जिम्मेदारी नहीं है, इनके संरक्षण के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे।
उन्होंने जंगलों में बढ़ती जनसंख्या पर चिंता जताई। कहा, इसकी वजह से मानव-वन्य जीव टकराव बढ़ा। उन्होंने विकास की परिभाषा की अवधारणा बदलने पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि मानव नर्मित संरचना को क्षति पहुंचती है तो कहा जाता है विनाश हुआ है और जब ईश्वर प्रदत्त प्रकृति को नष्ट किया जाता है तो इसे विकास कहा जाता है।