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Weekly News Roundup Ranchi: कंप्यूटरजी बड़ा दुख दीना... पढ़ें हफ्ते भर की कैंपस की हलचल

Weekly News Roundup Ranchi. रांची में शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई के साथ स्वास्थ्य और हरियाली की बातें भी नजर आई।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Mon, 20 Jan 2020 03:12 PM (IST)Updated: Mon, 20 Jan 2020 03:12 PM (IST)
Weekly News Roundup Ranchi: कंप्यूटरजी बड़ा दुख दीना... पढ़ें हफ्ते भर की कैंपस की हलचल
Weekly News Roundup Ranchi: कंप्यूटरजी बड़ा दुख दीना... पढ़ें हफ्ते भर की कैंपस की हलचल

रांची, [प्रणय कुमार सिंह]। इस सप्ताह राजधानी रांची में शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई के साथ स्वास्थ्य और हरियाली की बातें भी नजर आई। एक तरफ कुलपति साहब कैंपस में हरियाली बढ़ाने पर जोर देते नजर आए वहीं, दूसरी तरफ अधिकारी शिक्षकों और विद्यार्थियों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित दिखे। आइए जानते हैं इस हफ्ते कैंपस में किन बातों की रही हलचल...

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कंप्यूटरजी बड़ा दुख दीना

राज्य के सबसे पुराने रांची विश्वविद्यालय से भी पुराना इतिहास रहा है रांची कॉलेज का। पहले यह रांची विवि का ही हिस्सा हुआ करता था, लेकिन अब उससे अलग होकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय के रूप में अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखता है। अलग हुआ तो विकास की दौड़ में भी रेस हो गया। मुखिया फटाफट सबकुछ डिजिटल करने में लग गए। सब ठीकठाक चल ही रहा था, तभी अचानक कंप्यूटर ने दगा दे दिया।

तेजी पर ब्रेक लग गई। सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी से सेमेस्टर परीक्षा के लिए जारी एडमिट कार्ड में कई त्रुटियां हो गईं। एडमिट कार्ड जारी भी होने लगे। कंप्यूटर वाले विभाग के बॉस खासे परेशान हैं। इससे पहले कि छात्र-छात्राओं का गुस्सा फूटे, घेराव-प्रदर्शन शुरू हो, बॉस विभाग-विभाग जाकर एडमिट कार्ड बटोर रहे। इसमें सुधार करवा रहे हैं। उनकी परेशानी यहीं समाप्त नहीं हुई। सुधारने के बाद इसे वापस विभाग में भी वही पहुंचा रहे हैं।

हठ के आगे हरियाली है

रांची यूनिवर्सिटी के मोरहाबादी कैंपस में हरियाली छाई है। जिस ओर निकल जाइए आपको पेड़-पौधे, फूल-पत्तियां मिल जाएंगे। दो-तीन वर्ष पहले यह क्षेत्र रेगिस्तान लगता था। अब उग आए घास पर पेड़ की छाया में छात्र-छात्राएं पढ़ते मिल जाएंगे। ऐसा हुआ है विवि के कुलपति डॉ. रमेश कुमार पांडेय के प्रकृति प्रेम के कारण। इन्होंने अपने घर से सैकड़ों गमले और छोटे पौधे लाकर कैंपस में लगवाए।

बिल्डिंग के पीछे बॉटैनिकल गार्डेन बना दिया। वीसी साहब हर दिन कैंपस का एक चक्कर जरूर लगाते हैं। छुट्टी के दिन भी अपनी गाड़ी से खुद ड्राइव करते हुए निकल पड़ते गार्डेन देखने। कई बार तो अहले सुबह पहुंच जाते हैं। देखादेखी कई नेतानुमा छात्र भी सुबह में मार्निंग वॉक करने पहुंचने लगे हैं। कैंपस की हरियाली तो मन मोह लेती है, वीसी चाहते हैं कि छात्र-छात्राओं से भी कैंपस गुलजार रहे। संस्थान की असली रौनक तो यही बच्चे हैं।

बिल्डिंग तैयार, गुरु-शिष्य का इंतजार

रांची विश्वविद्यालय का गौरवशाली अतीत रहा है। यहां के छात्र-छात्राओं ने देश-विदेश मेंं खूब नाम कमाया है। बात उस समय की हो रही, जब इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी थी। शिक्षक कम थे। नए दौर के मुखिया नई-नई चीजें लेकर आए। कुछ ने सारा ध्यान ताबड़तोड़ बिल्डिंगें बनवाने में लगा दिया। उनकी सोच थी कि छात्र-छात्राओं को खूब सुविधा देंगे। पढ़ाई का माहौल बनाएंगे। लेकिन स्थिति यह हो गई कि बिल्डिंगें तो बन-बढ़ गईं, लेकिन छात्र लगातार कम होते चले जा रहे।

मौजूदा मुखिया बहुत चिंतित हैं। बात इतनी ही नहीं है। पढ़ाने वाले शिक्षकों की भी भारी कमी है। गुरु न शिष्य। मुखिया लाचार हैं। चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे। कहते हैं, हमारे वश में जो था, वह किया। शिक्षकों को अनुबंध पर लेकर आए। लेकिन दिक्कत ये है कि इन्हें सम्मानजनक मानदेय नहीं मिलता। ऐसे में मास्साब का ज्यादातर वक्त सड़क पर गुजरता है। इंकलाब जिंदाबाद!

जिम छोडि़ए, हेल्थ इंश्योरेंस कराइए

राजधानी के एक उच्च शिक्षण संस्थान में कुछ दिनों पहले बैठक हुई। इसमें अधिकारी छात्रों व शिक्षकों के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित दिखे। चिंता बढ़ी तो बॉस ने आर्डर कर दिया कि शिक्षकों व छात्रों दोनों का हेल्थ इंश्योरेंस करा दें। जब कभी बीमार पड़ेंगे तो परेशानी नहीं होगी। उन्होंने सोचा कि सब खुश हो जाएंगे। इधर, शिक्षकों व छात्रों तक खबर पहुंची तो सभी खुश भी दिखे। लेकिन मुखिया ने फस्र्ट इयर के छात्रों का ही हेल्थ इंश्योरेंस कराने की बात कही थी।

फिर क्या था जिनका बीमा नहीं हुआ, उन्होंने मोर्चा खोल दिया। मुद्दा बना दिया संस्थान में बंद पड़े एक जिम का। लाखों के इक्यूपमेंट बर्बाद हो रहे हैं, लेकिन जिम दो वर्षों से बंद है। जिम बनाया गया था कि शिक्षक व छात्र कसरत करेंगे। स्वस्थ रहेंगे। लेकिन मुखिया ने मान लिया है कि सभी बीमार पड़ेंगे ही, इसलिए सबका हेल्थ इंश्योरेंस पहले कराया जाए।


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