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काली पूजा 14 नवंबर को, चल रही है तैयारी

शक्ति और साधना की देवी मा काली की आराधना का पर्व काली पूजा इस बार 14 नवंबर को है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 01 Nov 2020 05:12 AM (IST)Updated: Sun, 01 Nov 2020 05:12 AM (IST)
काली पूजा 14 नवंबर को, चल रही है तैयारी
काली पूजा 14 नवंबर को, चल रही है तैयारी

जागरण संवाददाता, राची : शक्ति और साधना की देवी मा काली की आराधना का पर्व काली पूजा इस बार 14 नवंबर को है। पूजा के लिए मुहूर्त रात 11 बजकर 39 मिनट से रात 12 बजकर 32 मिनट तक है। पंडित राकेश मोहन शास्त्री के अनुसार दीपावली के दौरान शक्ति की वंदना दो बार होती है। एक नरक चतुर्दशी पर तो दूसरी दिवाली की अंधेरी रात को। इस बार राजधानी राची के सभी काली मंदिरों में पूजा-अर्चना की तैयारी है। सार्वजनिक पूजा समितियों की ओर से कोविड- 19 के दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखकर पूजा की जाएगी।

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कुछ ऐसे होगी पूजा

दीपावली की अमावस्या पर देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा होती है। इसके साथ-साथ पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और झारखंड में इस अवसर पर मा काली की पूजा होती है। यह पूजा अ‌र्द्धरात्रि में की जाती है। ऐसी मान्यता है कि राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध कम नहीं हुआ तो भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर स्पर्श मात्र से ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसके बाद से उनके शात रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई। कुछ राज्यों में इसी रात रौद्ररूप काली की पूजा का विधान भी है। मां काली की पूजा करने वालों को माता सभी तरह से निर्भीक और सुखी बना देती हैं।

पूजा की अलग-अलग विधि धाíमक अनुष्ठान कराने वाले पंडित राकेश उपाध्याय ने बताया कि दो अलग-अलग विधियों से मा काली की पूजा की जाती है। एक सामान्य और दूसरी तंत्र पूजा। सामान्य पूजा कोई भी कर सकता है। माता काली की सामान्य पूजा में विशेष रूप से 108 गुड़हल के फूल, 108 बेलपत्र एवं माला, 108 मिट्टी के दीपक और 108 दुर्वा चढ़ाने की परंपरा है। साथ ही मौसमी फल, मिठाई, खिचड़ी, खीर, तली हुई सब्जी तथा अन्य व्यंजनों का भी भोग माता को लगाया जाता है। पूजा की इस विधि में सुबह से उपवास रखकर रात्रि में भोग, हवन व पुष्पाजलि अर्पित की जाती है। अधिकतर जगहों पर तंत्र साधना के लिए मा काली की उपासना की जाती है। इसमें विशेष मंत्र का जाप होता है।


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