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Durga Puja 2020: महाअष्‍टमी को लेकर न रहें भ्रम में, यहां लें पूरी जानकारी

ज्योतिष डॉ एसके घोषाल के अनुसार अष्टमी यदि सप्तमी से लेशमात्र भी स्पर्श हो तो उसे त्याग दें। उन्होंने कहा कि पंचांग दिवाकर ने धर्मसिन्धु के वचन को ही प्रमाण मानकर निर्णय दे दिया है। जबकि अन्य वचनों पर ध्यान नही दिया है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 10:24 AM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 10:28 AM (IST)
Durga Puja 2020: महाअष्‍टमी को लेकर न रहें भ्रम में, यहां लें पूरी जानकारी
नवरात्र की दो-दो तिथियां एक दिन ही पड़ रही हैं।

रांची, जासं। इस नवरात्र दो-दो तिथियां एक दिन ही पड़ रही है। इससे अष्टमी तिथि को लेकर भ्रम की स्थिति हो गई है। रांची विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के लेक्चरर डॉ एसके घोषाल के अनुसार सूर्योदय काल में अष्टमी तिथि उपलब्ध हो तो उस नवमी से युक्त अष्टमी में ही दुर्गाष्टमी का पर्व मनाना चाहिए। अष्टमी यदि सप्तमी से लेशमात्र भी स्पर्श हो तो उसे त्याग देना चाहिए। क्योंकि यह राष्ट्र का नाश, पुत्र, पौत्र, पशुओं का नाश करने के साथ ही पिशाच योनि देने वाली होती है।

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अत: अष्टमी पूजन के लिए 24 अक्टूबर ही सर्वथा मान्य है। उन्होंने कहा कि पंचांग दिवाकर ने धर्मसिन्धु के वचन को ही प्रमाण मानकर निर्णय दे दिया है। जबकि अन्य वचनों पर ध्यान नही दिया है। जबकि निर्णय सिन्धु में स्पष्टतः सप्तमी विद्धा अष्टमी को त्यागकर लेशमात्र या कलामात्र (24 सेकंड) के लिए भी यदि अष्टमी सूर्योदय काल में विद्यमान हो तो उसी दिन दुर्गाष्टमी का व्रत करना चाहिए। नवमी युक्‍त अष्टमी ही ग्राह्य एवं श्रेष्ठ है, जबकि सप्तमी युक्‍त अष्टमी का सर्वथा त्याग करना चाहिए। इस बार सप्तमी तिथि शुक्रवार को दोपहर 12.09 बजे तक ही है, इसके बाद अष्टमी तिथि आरंभ हो जाती है।

मदनरत्न में स्मृति संग्रह से-

शरन्महाष्टमी पूज्या नवमीसंयुता सदा।

सप्तमीसंयुता नित्यं शोकसन्तापकारिणीम्।।

रूपनारायणधृते देवीपुराणे-

सप्त मीवेधसंयुक्ता यैः कृता तु महाष्टमी।

पुत्रदारधनैर्हीना भ्रमन्तीह पिशाचवत् ॥

(निर्णयसिन्धु पृष्ठ 354)

रूपनारायण में देवीपुराण का वचन है कि जिनों ने सप्तमीवेध से युक्त महा-अष्टमी को किया, वे लोग इस संसार में पुत्र, स्त्री तथा धन से हीन होकर पिशाच के सदृश भ्रमण करते हैं।


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