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प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया में गड़बड़ी की पुष्टि के बाद DSE बर्खास्त Ranchi News

विभागीय जांच में गड़बड़ी की पुष्टि होने के बाद स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने तत्कालीन जिला शिक्षा अधीक्षक सुधांशु शेखर मेहता को सरकारी सेवा से मुक्त कर दिया है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Sat, 04 Jan 2020 11:09 AM (IST)Updated: Sat, 04 Jan 2020 11:09 AM (IST)
प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया में गड़बड़ी की पुष्टि के बाद DSE बर्खास्त Ranchi News
प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया में गड़बड़ी की पुष्टि के बाद DSE बर्खास्त Ranchi News

खास बातें

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  • देवघर में तीन साल पहले हुई प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति का मामला 
  • बड़े पैमाने पर मिलीं गड़बडिय़ां, कई अभ्यर्थियों के मूल आवेदन पत्र कार्यालय से गायब 
  • पहली बार नियुक्ति में गड़बड़ी को लेकर राज्य के कोई डीएसई हुए हैैं बर्खास्त 

रांची, राज्य ब्यूरो। देवघर में वर्ष 2015-16 में हुई प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया में गड़बड़ी की पुष्टि हुई है। अंकों में छेड़छाड़ करते हुए कम अंक होने के बावजूद कई अभ्यर्थियों को मेधा सूची में ऊपर कर उनकी नियुक्ति कर ली गई। विभागीय जांच में गड़बड़ी की पुष्टि होने के बाद स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने तत्कालीन जिला शिक्षा अधीक्षक सुधांशु शेखर मेहता को सरकारी सेवा से मुक्त कर दिया है। विभाग ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है। 

विभागीय जांच में यह बात सामने आई कि तत्कालीन जिला शिक्षा अधीक्षक सुधांशु शेखर मेहता ने अपने सहकर्मियों के सहयोग से नियुक्ति नियमावली के विपरीत कार्य कर सक्षम अभ्यर्थियों को नियुक्ति से वंचित किया। शैलेश कुमार पाठक नामक अभ्यर्थी के डीपीई के मेधा अंक में छेड़छाड़ कर बढ़ोत्तरी करते हुए 59.42 के स्थान पर 69.00 कर नियुक्ति हेतु गलत ढंग से मेधा सूची में चयनित किया गया। इसके अलावा शांतनु सौरभ और सरिता कुमारी का नियुक्ति संबंधित मूल आवेदन पत्र जिला शिक्षा अधीक्षक कार्यालय से गायब पाया गया। यह मामला सामने आने के बाद भी तत्कालीन जिला शिक्षा अधीक्षक ने आवेदन पत्र गायब होने के जिम्मेदार कर्मियों पर कोई कार्रवाई नहीं की। विभागीय जांच पदाधिकारी ने भ्रष्ट आचरण और कर्तव्य के प्रति लापरवाही को प्रमाणित पाते हुए कार्रवाई की अनुशंसा विभाग से की। जांच पदाधिकारी की अनुशंसा के आलोक में तत्कालीन जिला शिक्षा पदाधिकारी से दो बार कारण पूछा गया, लेकिन वे संतोषजनक जवाब नहीं  दे सके।  

पारा शिक्षक होने को कई अभ्यर्थियों ने छिपाया 

जांच में यह भी पाया गया कि कई आवेदनों में कंडिका-20 को रिक्त रखा गया या पारा शिक्षक के रूप में कार्यरत रहने की बात छिपाई गई। दोनों ही परिस्थितियों में ऐसे आवेदन अमान्य थे, लेकिन इन आवेदनों पर नियुक्ति की गई। 

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