वक्त रहते मन की बात सुनें, तो बच जाएगी जान
अगर आपका बच्चा शांत रहता है, बाते कम करता है, जो कल तक उसको प्रिय था उससे आज दूर भागता है, तो जरूरत है कि आप उसका विशेष ख्याल रखें। आजकल बच्चों में अवसाद अपनी पैठ जमा रहा है। यही कारण है कि विद्यार्थियों के बीच आत्म हत्या का औसत बढ़ चुका है।
सुरभि अग्रवाल, रांची : कोई भी इंसान बेहद मजबूरी में अपने जीवन को खत्म करने का फैसला लेता है। अगर वक्त रहते किसी ने उसकी पुकार को सुनकर समझ ले और मदद कर दे, तो जिंदगी बचाई जा सकती है। जिंदगी के प्रति अनिच्छा जताना, मरने की बात करना, मनपसंद कामों, रुचियों और पसंदीदा चीजों के प्रति भी अनिच्छा का भाव दिखाना, उनकी अनदेखी करना या उनसे लगाव कम होना डिप्रेशन के लक्षण होते हैं। अवसाद आत्महत्या की एक बड़ी वजह है। जिंदगी से निराश व्यक्ति जब खुद को असहाय पाने लगता है तो डिप्रेशन के दलदल में फंस जाता है। इसके चक्कर में युवा समय से पहले ही अपनी जान दे रहे हैं। बढ़ रहे हैं मामले
बदलते लाइफस्टाइल में डिप्रेशन की बीमारी आम हो रही है। महानगर से निकलकर यह छोटे शहरों तक पहुंच रही है। इसके शिकार न सिर्फ युवा और बुजुर्ग, बल्कि स्कूल जाने वाले स्टूडेंट भी हैं। डॉक्टरों के अनुसार, इसका इलाज सिर्फ दवाओं से नहीं हो सकता। इससे उबरने के लिए परिवार, दोस्त और अपनों के साथ की भी दरकार होती है। रविवार को बीआइटी के छात्र द्वारा खुदखुशी करना इसका उदाहरण मात्र है। ऐसे कई मामले आए दिन देखने को मिल रहे हैं। कैसे हो पहचान :
आपका कोई दोस्त, परिजन अक्सर उदास या परेशान रहता हो और बातों-बातों में खुद को अक्सर कोसता हो, खुद को बेबस महसूस करता हो, बिल्कुल नींद न आती हो, बिल्कुल कम खाता हो या बहुत ज्यादा खाता हो, उसका वजन अचानक बढ़ रहा हो या तेजी से कम हो रहा हो, खुशी के मौकों को इग्नोर करता हो, सिरदर्द और बदन दर्द की शिकायत लगातार करता हो, चिढ़कर जवाब देता हो तो आप समझें कि उसे आपके साथ और डॉक्टर के इलाज की जरूरत है। ऐसे समय में उसकी हरकतों पर नजर जरूर रखें। ऐसे रहें खुश :
रोजाना वर्कआउट करें, योग और ध्यान करें
पसंद के भोजन खाएं
अपनी हॉबीज को पूरा करने की कोशिश करें
लोगों से मिलें-जुलें
जॉगिंग करें या आउटडोर गेम्स में हिस्सा लें
अपनी पसंद के गीत सुनें। आज के बच्चों को छोटे छोटे कारणों से अवसाद घेर लेता है। बच्चों की मांगें पूरी नही होती तो वे गुस्सा करते हैं और रही सही कसर टीवी और फोन ने भी पूरी कर दी है। इसके प्रभाव से बच्चें छोटी उम्र में बड़े हो रहे हैं।
- लवी राय, अभिभावक आज के युवा इतनी आसानी से जिंदगी समाप्त कर देते हैं। जैसे उनके आगे पीछे कोई नही होता। उन्हे ऐसे काम करने के पहले परिवार से बात करनी चाहिए, परिवार के लोग उन्हे दुखी नही देख सकते।
- नीरज राय, अभिभावक आत्महत्या के विशेष रूप से दो कारण देखने को मिलते हैं पहला करियर में असफलता दूसरा प्यार में असफलता। बच्चों को यह क्यों नही समझ आता कि यह कारण इतने बड़े नही होते कि कोई अपना जीवन समाप्त कर लें।
- राजलक्ष्मी देवी, अभिभावक आज के बदलते परिवेश में हमें बच्चों तथा आस पास घटित हो रहे घटनाओं पर नजर रखने की जरूरत है। बच्चों की आदतों में बदलाव, उनके व्यवहार में बदलाव को नोटिस करना आवश्यक है।
- शिवानी सिंह, अभिभावक