झारखंड उपचुनाव में भाजपा की हार पर दिनेश उरांव बोले, तकरार त्याग कर चूक की करें समीक्षा
तमाम गतिविधियों के बीच विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव की तल्ख टिप्पणी प्रदेश भाजपा में चर्चा के केंद्र में है।
प्रदीप सिंह, रांची। झारखंड में विधानसभा की दो सीटों गोमिया और सिल्ली में सत्तापक्ष की हार से सत्ताधारी भाजपा में तूफान मचा है। खासकर गोमिया में तीसरे स्थान पर पार्टी प्रत्याशी के खिसकने से वरीय नेता परेशान हैं। ज्यादातर गतिविधियां भले ही भितरखाने चल रही हों, लेकिन आवाज हर स्तर से उठ रही है। तमाम गतिविधियों के बीच विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव की तल्ख टिप्पणी प्रदेश भाजपा में चर्चा के केंद्र में है। उरांव ने सधे शब्दों में अपने मन की पीड़ा साझा की है और सीधा व सपाट सुझाव भी दिया है। वे चाहते हैं कि चूक की समीक्षा हो। इसके लिए उन्होंने आपसी तकरार और द्वेष का त्याग करने की सलाह दी है। अपनी बात कहने के लिए उन्होंने सोशल साइट का इस्तेमाल किया है। उनकी सलाह पर ढ़ेर सारी टिप्पणियां भी आई हैं जिनमें उनकी बात का समर्थन किया गया है।
फिर गहरा सकता है विवाद
स्पीकर दिनेश उरांव की गतिविधियां सरकार को हलकान करती रही हैं। कुछ माह पूर्व उन्होंने सुरक्षाकर्मी और गाड़ियां वापस कर दी थी। वे विधानसभा अध्यक्ष को मिले सरकारी बंगले का भी उपयोग नहीं करते। कई मसलों पर उनकी बेबाक राय इसकी वजह है। बीते जनवरी माह में यह कयास लगाया जा रहा था कि उन्हें स्पीकर पद से हटाया जा सकता है। झारखंड विकास मोर्चा के छह विधायकों के भाजपा में शामिल होने के मामले में स्पीकर कोर्ट में सुनवाई भी चल रही है। सुनवाई के दौरान कई दफा उनकी तल्ख टिप्पणियों ने सरकार को असहज किया है। उपचुनाव के परिणाम को लेकर उनकी ताजा टिप्पणी से भी विवाद गहरा सकता है।
यह कहना है स्पीकर दिनेश उरांव का
राजनीति, श्रेष्ठ राजनीति तभी है जब हम आपसी तकरार, द्वेष को त्याग कर यह समीक्षा करें कि आखिर चूक कहां हो गई। जनता हमसे प्रतिनिधि के रूप में क्या-क्या अपेक्षा रखती है? अंत में हार स्वीकार कर आगे की रणनीति भी इसी आधार पर बनाई जानी चाहिए। सोना आग में तपकर ही कुंदन बनता है जिसकी पूछ एवं प्रशंसा सब जगह होती है। मैं कहना चाहूंगा कि यदि आपको कोई चीज कड़ी मेहनत और संघर्ष के पश्चात मिलती है तो आप उसके प्रति ईमानदार भी रहते हैं क्योंकि आप उस चीज की अहमियत समझते हैं।
वरीय नेताओं की अनदेखी पर भी सवाल
भाजपा में इस बात को लेकर भी बातें उठ रही है कि गोमिया में प्रत्याशी तय करने से लेकर नामांकन पत्र भरने और चुनाव अभियान में वरीय नेताओं की अनदेखी हुई। सलाह-मशविरा की बात तो दूर, उन्हें पूछा तक नहीं गया। ऐसे में इन नेताओं ने खुद को सीमित रखा। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि वैसे नेताओं को गोमिया के चुनावी मुहिम में लगाया गया जो पूर्व में लिंट्टीपाड़ा विधानसभा चुनाव में सक्रिय थे। उन्होंने स्थिति का जमीनी आकलन करने में चूक की। यही वजह है कि भाजपा प्रत्याशी माधवलाल सिंह तीसरे स्थान पर खिसक गए। अगर भाजपा और आजसू का तालमेल अगले विधानसभा चुनाव में हुआ तो आजसू इसी आधार पर गोमिया सीट पर दावेदारी ठोक सकती है।
आजसू के तेवर भी तल्ख
दल के भीतर पैदा हुई सुगबुगाहट के अलावा भाजपा के समक्ष आजसू को साथ बनाए रखना भी एक चुनौती है। आजसू प्रमुख सुदेश कुमार महतो के तेवर तल्ख हैं। वे भाजपा के साथ अपनी पार्टी का तालमेल तोड़ सकते हैं। हालांकि इससे सत्तापक्ष की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन विपक्ष का मनोबल बढ़ेगा। विधानसभा में सत्तापक्ष के संख्या बल पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा।