चिकित्सा सुविधा के विकास और आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से बढ़ेंगे सूकर पालकों की संख्या
राची और आसपास के इलाकों में ज्यादातर किसान सूकर पालन से अच्छी आमदनी कर रहे हैं।
जागरण संवाददाता, राची : राची और आसपास के इलाकों में ज्यादातर किसान सूकर पालन छोटे-छोटे स्तरों पर कर रहे हैं। गांव के इलाके में पाले हुए सूकरों की लोकल खपत भी अच्छी है। मगर सरकार की मदद से इससे बड़े और वृहद स्तर पर करके राज्य को सूकर पालन में तीसरे पायदान से पहले पर लाया जा सकता है। इसमें सबसे जरूरी बात ये है कि शहर के आसपास के इलाके में सूकर पालन को बढ़ावा देने के लिए सारे संसाधन मौजूद हैं। इसके साथ ही हमारे यहा के मौसम और जलवायु के लिए सबसे उन्नत किस्म भी मौजूद हैं। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के द्वारा विकसित झारसूक यहा की सबसे बेहतर और उन्नत सूकर है। मगर कई बार किसानों की शिकायत रहती है कि उन्हें सरकारी मदद और अपने सूकरों के लिए चिकित्सा सुविधा समय पर नहीं मिलती है। ऐसे में सरकारी तंत्र की खामियां सामने आती हैं। मजदूरों की लिस्टिंग के साथ करेंगे हर संभव मदद
काके विधायक समरी लाल बताते हैं कि राज्य का सबसे बड़ा कृषि विश्वविद्यालय बिरसा कृषि विश्वविद्यालय उनके क्षेत्र में पड़ता है। यहा से पशुपालकों को हर संभव मदद दी जाती है। इसके साथ ही यहा के अस्पताल में सभी जानवरों के लिए चिकित्सा व्यवस्था मौजूद है। इसका फायदा राची और आसपास के लोग लेते हैं। लॉकडाउन के बाद हमारे यहा बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर आये हैं। हम उनकी हर संभव मदद कर रहे हैं। इसके साथ ही एक सूची भी तैयार की जा रही है जिससे उनके कौशल के मुताबिक उन्हें काम में लगाया जा सके। ऐसे में हम समाज के लोगों के बीच सूकर पालन के बारे में भी जागरूकता लाने का प्रयास करेंगे। पशुओं की चिकित्सा व्यवस्था के अभाव को जल्द दूर करने का प्रयास जारी है। आधुनिक तकनीक और उन्नत किस्म के सूकरों को देंगे बढ़ावा
तमाड़ के विधायक विकास मुंडा बताते हैं कि झारखंड के गावों में सूकर पालन पारंपरिक रूप में किया जाता है। मगर अब किसानों और लोगों को समृद्ध करने के लिए देसी सूकरों के साथ उन्नत किस्म के सूकरों की जरूरत है। इसके साथ ही सूकर पालन में कई आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल होता है। इससे किसानों की इनपुट कम हो जाती है और लाभाश बढ़ जाते है। किसानों तक ऐसे तकनीक को पहुंचाने के लिए सरकार गंभीर है। जो प्रवासी कोरोना काल में आये है और अब यहीं रहकर पशु पालन करना चाहते हैं, उनके लिए सरकार अपने प्लान में कुछ चीजें लेकर आ सकती है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। मजदूर की प्रतिक्त्रिया----------------
घर में पैसे की कमी थी इसलिए काम करने के लिए दूसरे राज्य में जाना पड़ा। अपने यहा काम भी नहीं है और लोग सही पैसे भी देना नहीं चाहते हैं। अगर घर में काम मिले तो बाहर क्यों जाएंगे।
रोहन उराव, मजदूर गाव के कुछ लोग पहले से बाहर जाकर कमा रहे थे। इसलिए काम की तलाश में हम भी बाहर निकल गये। बड़ी मुश्किल से वापस आये हैं। अब जो करेंगे अपने गाव में ही करेंगे।
सावनी उराइन, प्रवासी मजदूर बाहर जाकर जो पैसे कमाये थे वापस घर आने पर सब खत्म हो गये। अब जो भी होगा अपने जिला से बाहर काम करने नहीं जाएंगे। सरकार काम खोजने में मदद करे तो अच्छा होगा।
मंगरा उराव, प्रवासी मजदूर मेहनत-मजदूरी करके अच्छी कमाई हो जाती थी। कोरोना में सब खत्म हो गया। मजबूरी में गाव आना पड़ा। अब समझ नहीं आ रहा यहा क्या करेंगे।
परिबल उराव, प्रवासी मजदूर