जिंदगानी बचा रही दवाई दोस्तों की जवानी
राची : स्वास्थ्य ही धन है। यह कहावत अपने आप में पूरी तरह सही है, इसलिए हर इंसान कोशिश होनी चाहिए।
सलोनी,
राची : स्वास्थ्य ही धन है। यह कहावत अपने आप में पूरी तरह सही है, इसलिए हर इंसान कोशिश करता है कि अपनी सेहत का पूरा ध्यान रखा जाए। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में जिस तरह खाना और पानी हमारे लिए जरूरी है ठीक उसी तरह दवाएं भी हमारी सेहत को बरकरार रखने के लिए जरूरी है। आज हम हेल्दी फूड और एक्सरसाइज पर निर्भर न होकर पूरी तरह दवाओं पर निर्भर हो गए हैं। जैसे ही हमें हल्की सी खासी, जुकाम बुखार या सर दर्द होता है, तुरंत दवाओं का सहारा लेते हैं।
क्या आपने कभी सोचा है कि इलाज के बाद बची हुई दवा किसी गरीब की जान व पैसा दोनों बचा सकती है। आज के वक्त में लोगों के लिए सबसे बड़ी परेशानी है महंगी दवाएं। हर चीज महंगी हो रही है और दवाएं भी इससे अछूती नहीं है। बहुत से लोगों की मौत दवाओं की कमी से हो जाती है। इसी परेशानी को दूर करने के लिए सेंट जेवियर्स के विद्यार्थियों ने एक मुहिम छेड़ी है। बची दवाएं बचाएं नाम से विद्यार्थियों ने अभियान शुरू किया है जो आज लोगों की मदद करने में सक्षम साबित हो रहा है।
कॉलेज के 20 विद्यार्थी मिल कर इस अभियान को आगे लेकर जा रहे हैं। अभी तक उन्होने निरामया अस्पताल में दो बार दवाएं डोनेट की है।
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कब हुई शुरूआत
इस अभियान की शुरूआत जनवरी में हुई थी, लेकिन अप्रैल में इसे पूरी तरह धरातल पर लाया जा सका। कॉलेज के रोट्रैक्ट क्लब के सदस्य यह कार्य कर रहे हैं। इसमें विद्यार्थियों की मदद कर रहे हैं प्रकाश टेकरीवाल। वह इस अभियान को स्पॉसर भी कर रहे हैं, साथ ही कॉलेज के प्रोफेसर भी इसमें अपना सहयोग दे रहे हैं।
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कहा से मिली प्रेरणा
विद्यार्थियों को दवा बैंक शुरू करने की प्रेरणा दिल्ली के ओंकारनाथ शर्मा से मिली। इनकी उम्र 80 से ज्यादा है और वह घर-घर जाकर दवाएं संग्रहित करते हैं और गरीबों को निश्शुल्क उपलब्ध कराते हैं। इन्हीं की कहानी ने कॉलेज के विद्यार्थियों को प्रेरित किया। तय कर लिया कि जब उम्र के इस पड़ाव पर वह इतना नेक काम कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं।
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क्या-क्या कर चुके हैं
अभी तक विद्यार्थियों ने निरामया अस्पताल में दो बार दवाइया डोनेट की है। शहर के अलग-अलग 12 स्कूलों में जैसे की जेवीएम श्यामली, डीएवी बरियातू,उर्सुलाइन कॉन्वेंट सेंट्रल एकेडमी बरियातू आदि में दवा डोनेशन बॉक्स लगाया है, जहा बच्चे, अभिभावक, शिक्षक आदि आकर घर में बची दवाएं इसमें डाल सकते हैं। अभियान के कोऑर्डिनेटर बताते हैं कि दवा सही है और एक्सपायर्ड नहीं हो, इसका पूरा ख्याल रखा जाता है। निरामया अस्पताल दवाओं की गुणवत्ता का ध्यान रखता है। कुछ दिन के अंतराल पर विद्यार्थी स्कूल जाकर एस बॉक्स से दवाएं निकाल लाते हैं और अस्पताल तक पहुंचाते हैं। क्या है टारगेट
विद्यार्थियों का कहना है कि चूंकि अभी स्कूलों में गर्मियों की छुट्टियां चल रही हैं। बैंक व दूसरे संस्थानों में दवा डोनेशन बॉक्स लगाया जाएगा, ताकि छुट्टी में भी काम नहीं रुके। शहर के विभिन्न 10 कोचिंग इंस्टीट्यूट से बात की जा चुकी है और कुछ ही दिनों में वहा पर भी बॉक्स लगा दिया जाएगा।
कौन- कौन लोग करते हैं डोनेट
दवा बॉक्स में ज्यादातर लोग सर्दी, जुकाम, बुखार, बीपी, डायबिटीज आदि की दवाएं डोनेट करते हैं।
'हमें लोगों का बहुत सपोर्ट मिला है। साथ ही कॉलेज के डीन ऑफ स्टूडेंट वेलफेयर, डॉ.मार्क्स बारला ने भी इसमें हमारी पूरी मदद की है। हमारा उद्देश्य है जरूरतमंदों तक मदद दवाएं पहुंचाना। महंगी दवाओं की वजह से किसी की मौत नहीं होनी चाहिए। यह इस अभियान का मकसद है।'
अशबाह जावेद, विद्यार्थी, बी.कॉम पार्ट वन, अभियान कोऑर्डिनेटर