20 साल बाद शहर की प्यास नहीं बुझा पाएंगे तीनों डैम
शहर की बढ़ती आबादी के साथ तीनों डैमों पर लगातार पानी के लिए दबाव बढ़ रहा है। 20 साल बाद शहर को पूरा पानी देने में तीनों डैम अक्षम साबित होंगे।
By Edited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 07:58 AM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 08:02 AM (IST)
रांची : शहर की बढ़ती आबादी के साथ तीनों डैमों पर लगातार पानी के लिए दबाव बढ़ रहा है। 20 साल बाद 2041 में रांची को 204.27 एमजीडी (मिलियन गैलन पर डे) पानी की जरूरत पड़ेगी। वर्तमान में 45 एमजीडी पानी की तीनों डैमों से सप्लाई की जा रही है। यानी कि 20 साल बाद सीधे तौर पर आज की तुलना में तिगुना पानी यानी कि 159 एमजीडी की रांची शहर की बढ़ी हुई आबादी को जरूरत पड़ेगी। ऐसे में भविष्य में एक ओर पानी पाने की तमन्ना और दूसरी ओर पानी के इंतजामात की चुनौती बरकरार है। यह चुनौती साधारण नहीं है, क्योंकि चार दशक पहले बनाए गए तीनों डैम में दो डैम दम तोड़ रहे हैं। कांके डैम लगातार सिकुड़ रहा है, वहीं हटिया डैम अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्षरत है। दम तोड़ रहा कांके डैम, सिकुड़ रहा एरिया : कांके डैम लगातार सिकुड़ता जा रहा है। इसके जल स्तर में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। यह कोई एक दिन का मसला नहीं है। झारखंड निर्माण के बाद इसके जल संचयन की क्षमता में लगातार गिरावट दर्ज की गई। सिर्फ गर्मी के मौसम में डैम को लेकर हाय-तौबा मचती है और फिर जल प्रबंधन से जुड़ी सभी इकाइयां शांत होकर बैठ जाती हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर कांके डैम के जल स्तर में इसी प्रकार की गिरावट दर्ज होती रही, तो आने वाले 10 या 20 सालों में शहरवासियों को पीने के लिए तरसना पड़ सकता है। कांके डैम की लगातार हो रही उपेक्षा : कांके डैम संरक्षण समिति बनाकर इसकी रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे अमृत पाठक और किशोर महापात्रा कहते हैं कि हम लोगों ने इस डैम के किनारे खेलते हुए अपनी पूरी जिंदगी गुजार दी है। इस डैम से आसपास के इलाके यानी मुख्यमंत्री आवास, राज्यपाल भवन, रातू रोड, काके रोड, सीएमपीडीआई आदि को पानी पिलाया जाता है, लेकिन इसकी लगातार उपेक्षा की जा रही है। 52 में से 12 एकड़ पर अतिक्रमण : सरकारी फाइल में कांके डैम का कुल रकबा करीब 52 एकड़ है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। झारखंड गठन के बाद से पिछले 18 साल में डैम की 12 एकड़ से ज्यादा जमीन पर अतिक्रमण हो चुका है। लोगों ने घर तक बना लिए हैं और नालियों के सहारे डैम को ही प्रदूषित कर रहे हैं। मामला प्रकाश में आने के बाद दो साल पहले जिला प्रशासन ने फौरी तौर पर कुछ अवैध कब्जे को तो हटाया, लेकिन इसके बाद फिर पुरानी स्थिति बन गई है। सरोवर नगर साइड तेजी से सूख रहा डैम : सरोवर नगर साइड से 200 फीट तक कांके डैम सूख चुका है। पानी इतना गंदा हो चुका है कि पास जाने पर दुर्गंध देता है। चारों ओर कचरे का अंबार लगा हुआ है। बताया जा रहा है कि निर्माण के बाद से डैम में कभी उराही यानी डिसिल्टेशन का काम नहीं किया गया है। डैम की जमीन पर जमीन माफियाओं की गिद्ध दृष्टि है। 60 से सीधे 200 फीट तक गिरा जलस्तर : सबसे विकट समस्या आसपास के इलाके में गिरते जल स्तर की है। कांके डैम में पानी लगातार घटता गया और उसका असर आसपास के इलाके के जल स्तर पर भी पड़ रहा है। डैम के किनारे बसे मोहल्लों में पहले जहां 60-80 फीट पर पानी आ जाता था, वहीं अब 200 फीट पर पानी आता है। गर्मी के दिनों में बो¨रग से पानी निकालने में मोटर हांफ जाता है। जल सत्याग्रह से भी नहीं बनी बात : कांके डैम संरक्षण समिति से जुड़े अमृत पाठक और किशोर महापात्रा ने बताया कि स्थिति जब ज्यादा बिगड़ने लगी तो मोहल्ले के ही कुछ युवक डैम को बचाने के लिए सामने आए और जल सत्याग्रह शुरू कर दिया। 2016 से जल संरक्षण अभियान की कोशिश जारी है। अमृत पाठक ने बताया कि समिति के आंदोलन को देखते हुए जिला प्रशासन ने सरोवर नगर के आसपास डैम की जमीन पर बने अवैध निर्माण को तोड़ा। अभियान के दौरान कई बार स्थानीय लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ा। अभी इस आंदोलन में 70 से ज्यादा युवा जुड़े हुए हैं। शोपीस बनी वाटर ट्रीटमेंट के लिए लगी पाइपलाइन : साल 2008 में कांके डैम के पानी के ट्रीटमेंट के लिए पीएचइडी विभाग द्वारा पाइपलाइन बिछाई गई, लेकिन करोड़ों रुपये से बनी इस पाइपलाइन का आज तक कोई उपयोग नहीं हो सका है। वहीं, इस पाइप लाइन के कारण डैम का क्षेत्र और सिकुड़ा है। लोगों का कहना है कि पाइपलाइन किनारे में लगाने की बजाय लगभग 50 फीट अंदर बिछा दिया गया। इस कारण पाइपलाइन से पहले के भाग तक अतिक्रमणकारियों की पहुंच हो गई है। बंद हुए जल स्त्रोत, बरसात पर है निर्भरता : कभी पिस्का की ओर से आने वाली नदी कांके डैम के लिए स्थायी जल स्त्रोत का काम करती थी। लेकिन समय के साथ उक्त नदी में पानी ही कम रह गया है और प्राय: सूखा रहता है। अब कांके डैम के जल स्त्रोत का आधार सिर्फ बारिश ही बचा है।
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