Hindalco Accident: 2013 में ही भर गया था रेड मड पौंड, CPCB ने दी थी चेतावनी
Hindalco Accident. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने केंद्रीय अभियंत्रण संस्थानों की मदद से एक नए तालाब के निर्माण का निर्देश दिया था।
रांची, राज्य ब्यूरो। Hindalco Accident - केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने मुरी स्थित हिंडाल्को कंपनी को वर्ष 2013 में ही रेड मड पौंड (लाल रासायनिक कीचड़ का तालाब) की जगह पर नया तालाब निर्माण करने का निर्देश दिया था। यह भी सुनिश्चित करने को कहा था कि नए तालाब की दीवारें दुरुस्त हों और रेड मड कभी ओवर फ्लो न करे। इस निर्देश के बाद मुरी स्थित हिंडाल्को इंडस्ट्रीज ने अपना जवाब भी दाखिल किया था और बताया था कि रेड मड पौंड की क्षमता बढ़ाने के लिए सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीच्यूट, रुड़की और आइआइटी मुंबई के प्रोफेसर डीएन सिंह के सुझाव पर क्षमता बढ़ाने की योजना पर काम चल रहा है। अब तमाम बातों की पड़ताल करते हुए झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद ने हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक को इस दुर्घटना से हुए नुकसान की भरपाई के लिए नोटिस दिया है।
प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के सदस्य सचिव राजीव लोचन बख्शी ने शोकॉज नोटिस के तहत कंपनी से पूछा है कि सीपीसीबी से मिले निर्देशों का पालन क्यों नहीं किया गया और इसमें कहां चूक हुई। इसके कारण आसपास के लोगों, रेलवे और किसानों को हुए नुकसान की भरपाई करने को भी कहा गया है। पत्र के अनुसार सीपीसीबी को वर्ष 2013 में ही यह जानकारी मिल चुकी थी कि औद्योगिक कचरे को रखने के लिए बने तालाबों में एक, दो और तीन भर चुके थे और चौथा तालाब भी लगभग भरने की कगार पर था।
फरवरी 2015 में कंपनी ने सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीच्यूट से डिजाइन बनवाकर काम करना शुरू किया। कंपनी को तीन महीने में समयबद्ध योजना बनाकर देने को कहा गया था ताकि रेड मड का पूरा इस्तेमाल हो सके। इस दौरान कंपनी की ओर से दिए गए प्रजेंटेशन के बीच भी प्लान पर सवाल उठाए गए और किसी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में आपदा प्रबंधन योजना तैयार रखने को कहा गया। इस दौरान अधिकारियों ने गैबियन वाल का निर्माण डिजाइन के अनुरूप होने की बात कही थी।
इंजीनियरिंग संस्थान सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, रुड़की ने आश्वस्त किया था कि दीवारें मजबूत हैं और आनेवाले दिनों में भी कोई खतरा नहीं है। रेड मड तालाब की ऊंचाई बढ़ाने से प्रदूषण के खतरे से भी इन्कार किया गया था। ज्ञात हो कि रेड मड पौंड 4 की दीवार 600 मीटर के दायरे में टूट गई थी। झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद ने इस संदर्भ में 15 दिनों के अंदर जवाब तलब किया है।
कितने वाल्यूम में है रेड मड, इंजीनियर्स करेंगे आकलन
हिंडाल्को के कचरे के पहाड़ का एक हिस्सा ढहने के बाद जिला प्रशासन के अधिकारी ही नहीं, हिंडाल्को कंपनी के अधिकारी भी सशंकित हैं। कारण, बरसात में अब चंद दिन बचे हैं और बरसात के पूर्व कचरा नहीं उठा तो आफत आना तय है, क्योंकि उसके बाद कचरा उठाने में पसीने छूट जाएंगे। इसके लिए ङ्क्षहडाल्को ने इंजीनियर्स की एक टीम को बुलाया है, जो आकलन करेगी कि कितना वाल्यूम रेड मड बहा है, जिसे हटाया जाना है। इंजीनियर्स ये बताएंगे कि कितने डंपर व कितने पोकलेन तथा जेसीबी लगेंगे कि बरसात के पूर्व युद्ध स्तर पर कचरा उठाया जा सके।
दो दिन में सिर्फ 100 डंपर कचरा ही हटा, लाखों डंपर पसरा हुआ है रेड मड
रेड मड का मलबा हटाने का वर्तमान में जो प्रयास चल रहा है अगर उस रफ्तार से चला तो महीनों अभियान चलाने के बाद भी मलबा नहीं हट पाएगा। दो दिन में चार पोकलेन व 10 हाइवा से मलबा ढोया जा रहा है। दो दिनों के भीतर सिर्फ 100 डंपर कचरा ही हट पाया है। जबकि, मौके पर लाखों डंपर कचरा पसरा हुआ है। ऐसी स्थिति में डंपर की संख्या बढ़ाने पर ही राहत कार्य तेज हो सकता है। हालांकि, ङ्क्षहडाल्को कंपनी के अधिकारियों ने दावा किया कि दो दिनों के भीतर एक दर्जन हाइवा बढ़ाने की योजना है, जिसका प्रस्ताव भेजा जा चुका है।
रास्ता के लिए किसान ने लिया एक लाख रुपये का मुआवजा
रेड मड का मलबा ढोने के लिए खेत को पाटकर व नदी के तल को समतल कर अस्थाई रास्ता बनाया गया है, ताकि हाइवा को आने-जाने में उपयोग किया जा सके। रास्ता के लिए घोल्टू महतो ने एक लाख रुपये का मुआवजा लिया। घोल्टू ने अपनी खेत में कच्चू, भिंडी व प्याज की फसल लगाई थी। वह अपने खेत से गाड़ी भेजने के पक्ष में नहीं था। कंपनी व प्रशासनिक अधिकारियों की मान-मनौव्वल के बाद उसे एक लाख रुपये का मुआवजा दिया गया, उसके बाद वह तैयार हुआ। अब उसकी फसल पर अस्थाई रास्ता बना है, जिससे हाइवा दौड़ रहा है।
अब कंपनी में डंप किया जा रहा है मलबा, जहां से सीमेंट करखाने में भेजा जा रहा
बिखरे हुए मलबे को डंपर-हाइवा के माध्यम से ङ्क्षहडाल्को कंपनी में डंप किया जा रहा है। वहां रेलवे से विभिन्न सीमेंट कारखाना में मलबा को भेजा जा रहा है। यह पूछे जाने पर कि पहले सीमेंट कारखाने में मलबा भेजने की पहल क्यों नहीं हुई, कंपनी के अधिकारी कुछ भी बोलने से कतराते दिखे। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि अभी सामने विवशता है, इसलिए वे मलबा को सीमेंट कारखाने में भेज रहे हैं।
पुलिस व एनडीआरएफ कर रही मलबा हटने का इंतजार
रेड मड पहाड़ के समीप अस्थाई कैंप है, जहां पुलिस व एनडीआरएफ के जवान-पदाधिकारी कैंप कर रहे हैं। सभी मलबा हटने का इंतजार कर रहे हैं ताकि यह पता चल सके कि पहाड़ धंसने से लोगों की जानमाल का नुकसान हुआ है या नहीं। मौके पर एनडीआरएफ के 35 जवान-पदाधिकारी अस्थाई कैंप में बैठकर समय काट रहे हैं। पूछने पर बताए कि जब तक मलबा नहीं हटेगा, तब तक उनकी भूमिका शुरू नहीं होगी।