अब कांग्रेस को रास नहीं आ रहा महागठबंधन राग, RPN ने दिए एकला चलो के संकेत
कांग्रेस को अब महागठबंधन राग पसंद नहीं आ रहा है। पार्टी में जिस तरह से जिला अध्यक्षों ने अपनी राय जाहिर की है उससे झारखंड के कांग्रेस प्रभारी भी गठबंधन के इच्छुक नहीं हैं।
रांची, राज्य ब्यूरो। कांग्रेस को अब महागठबंधन राग पसंद नहीं आ रहा है। पार्टी में जिस तरह से जिला अध्यक्षों ने अपनी बात रखी है उससे स्पष्ट है कि कहीं न कहीं इसके पीछे शीर्ष नेताओं की भी हामी है। अधिसंख्य जिलाध्यक्षों का तर्क है कि लोस चुनाव में सहयोगी दलों को कांग्रेस के संगठन का लाभ मिला, कांग्रेस के हाथ कुछ नहीं आया। तमाम सीटों पर कांग्रेस को आए मतों का आंकड़ा इसके पक्ष में पेश किया जा रहा है।
कहीं न कहीं अब प्रदेश कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह भी गठबंधन को अधिक महत्व देने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। उन्होंने भी एकला चलो के संकेत दे दिए हैं। वे पार्टी के जिलाध्यक्षों के साथ ही खड़े दिखे। यही कारण है कि उन्होंने पंद्रह दिनों में रिपोर्ट मांगी है। प्रदेश प्रभारी से मिलनेवाले प्रमुख नेताओं में सुबोधकांत सहाय, गीता कोड़ा, ददई दुबे, फुरकान अंसारी, प्रदीप बलमुचू, रामेश्वर उरांव, गोपाल साहू, मधु कोड़ा आदि शामिल हैं।
रविवार की सुबह आरपीएन सिंह वापस लौट गए लेकिन इसके पूर्व उन्होंने पार्टी के कील-कांटों को दुरुस्त करने की कोशिश भी की। उनके सामने एक बार फिर कुछ जिलाध्यक्षों ने कहा कि गठबंधन से फायदा तो नहीं होता, दूसरे दलों के पीछे घूमकर कांग्रेस के कार्यकर्ता भी प्रताड़ित होते हैं। जिलाध्यक्षों ने कहा कि चुनाव लड़नेवाले नेताओं को लगता है कि गठबंधन से उन्हें फायदा होगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
खासतौर पर संताल के जिलाध्यक्ष उग्र थे और उन्होंने यह भी जोड़ा कि कांग्रेस को झामुमो के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी का भी मुकाबला करना पड़ा और कुछ क्षेत्रों में कम वोट का एक कारण यह भी है। इधर विरोध, उधर लालू से मिले सुबोध रविवार को कांग्रेस में इस बात की भी चर्चा रही कि जहां पार्टी के तमाम जिला अध्यक्ष महागठबंधन का विरोध कर रहे हैं वहीं पार्टी के सीनियर नेता सुबोधकांत सहाय लालू यादव से मिलकर परिणाम पर चर्चा कर रहे थे। कई नेता उनके खिलाफ मुखर भी रहे।
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