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BAU ने मशरूम स्‍पान रन बैग के अवशेष से बनाया कम्‍पोस्‍ट, ओल-अदरक की खेती में है उपयोगी

Jharkhand News. मशरूम की खेती करने वाले किसान अतिरिक्त आय कर सकेंगे। इस कंपोस्ट से अति आम्लिक बंजर एवं पथरीली भूमि के उर्वरता में सुधार संभव है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sat, 18 Jul 2020 10:32 AM (IST)Updated: Sat, 18 Jul 2020 02:37 PM (IST)
BAU ने मशरूम स्‍पान रन बैग के अवशेष से बनाया कम्‍पोस्‍ट, ओल-अदरक की खेती में है उपयोगी
BAU ने मशरूम स्‍पान रन बैग के अवशेष से बनाया कम्‍पोस्‍ट, ओल-अदरक की खेती में है उपयोगी

रांची, जासं। बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विभाग में मशरूम उत्पादन यूनिट का वर्षों से संचालन किया जा रहा है। इस यूनिट के वैज्ञानिकों ने मशरूम उत्पादन में प्रयुक्त स्पान रन बैग के अवशेष का कम्पोस्ट के रूप में प्रयोग करने की तकनीक विकसित की है। पौधा रोग विभाग के अध्यक्ष एवं यूनिट प्रभारी डॉ नरेंद्र कुदादा ने बताया कि मशरूम की खेती में स्पान बीज को स्पान रन पालीथीन बैग में भरकर विभिन्न प्रक्रियाओं से मशरूम का उत्पादन किया जाता है।

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इस बैग से 20 से 22 दिनों के बाद मशरूम प्राप्त होने लगता है। हरेक बैग से 60 दिनों तक विभिन्न अंतराल पर मशरूम को तोड़ा जाता है। 60 दिनों के बाद बैग में पड़े अवशेष को अनुपयोगी समझकर फेंक दिया जाता है। हालंकि कुछ लोग इस अवशेष का मछली के चारे के रूप में तालाब में प्रयोग करते है। मगर इससे अब हम बेहतरीन कम्‍पोस्ट तैयार करेंगे।

बीएयू के द्वारा इसके अवशेष से ओल एवं अदरक की खेती करने की योजना बनाई गई। इसके तहत स्पान रन के अवशेष को अगले 30-40 दिनों के लिए पूरी तरह सड़ने के लिए छोड़ दिया गया। इसके बाद इस कंपोस्ट से शोध प्रक्षेत्र में ओल एवं अदरक की खेती की गई। इसे लेकर पिछले तीन सालों से शोध किए जा रहे थे। तीनों साल के परिणाम काफी अच्छे रहे हैं। इस शोध में अवशेषरहित की तुलना में सड़े अवशेष के उपयोग से 30 प्रतिशत से अधिक उपज तथा मिट्टी के भौतिक गुणों में सुधार पाया गया है।

डॉ नरेंद्र कुदादा ने कहा कि इस तकनीक से सालोभर कम्पोस्ट का उत्पादन किया जा सकता है। मशरूम की खेती से जुड़े किसान इस तकनीक से बिना किसी अतिरिक्त लागत से कम्पोस्ट का उत्पादन कर दोहरा लाभ ले सकते है। डीन एग्रीकल्चर डॉ एमएस यादव ने बताया कि इस सड़े अवशेष को अति आम्लिक, बंजर एवं पथरीली भूमि के उर्वरता में सुधार किया जा सकता है। ये आम्लीय भूमि सुधारक चूना का बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।

उन्होंने कहा कि इस अवशेष का अति आम्लिक, बंजर एवं पथरीली भूमि में लगातार 5-6 वर्षों तक प्रयोग से उपजाऊ भूमि में बदला जाना संभव है। इस सड़े अवशेष से सब्जी फसलों एवं फलदार वृक्षों की सफलता पूर्वक खेती की जा सकती है। उन्होंने वैज्ञानिकों को इस दिशा में व्यापक शोध कार्य करने का निर्देश एवं मार्गदर्शन दिया। बीएयू के इस मशरूम इकाई के द्वारा साल भर में पांच प्रकार के मशरूम का उत्पादन किया जाता है।

गर्मी में धान पुआल मशरूम व सफेद दुधिया मशरूम, बरसात में वायस्टर मशरूम (गुलाबी, सफ़ेद एवं नीला) व ढिंगरी मशरूम तथा जाड़े में सफेद बटन मशरूम का उत्पादन एवं तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाता है। वैज्ञानिकों द्वारा ईकाई में 3, 7 एवं 15 दिनों का प्रशिक्षण दिया जाता है। ग्रामीण किसान को 3 एवं 7 दिनों का प्रशिक्षण शुल्क 300 रुपये प्रति दिन पर दिया जाता है। इसके अलावा 15 दिन और 6 महीने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है।


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