नीति आयोग की बैठक में आज शामिल होंगे सीएम सोरेन, खनन रॉयल्टी के बकाया 1.36 लाख करोड़ के भुगतान की रखेंगे मांग
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन नई दिल्ली में होने वाले नीति आयोग की बैठक में शामिल होंगे। इसके लिए वे शुक्रवार को यहां से रवाना हो गए। वे बैठक में वन संरक्षण नियम में संशोधन को लेकर अपने पक्ष से केंद्र को अवगत कराएंगे।
HighLights
- आज नीति आयोग की बैठक में सीएम हेमंत सोरेन शामिल होंगे।
- खनन रॉयल्टी का 1.36 लाख करोड़ बकाया के भुगतान की मांग रखेंगे।
- वन संरक्षण नियम में संशोधन को लेकर भी अपना पक्ष रखेंगे।
राज्य ब्यूरो, रांची। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन नई दिल्ली में होने वाले नीति आयोग की बैठक में शामिल होंगे। इसके लिए वे शुक्रवार को यहां से रवाना हो गए।
वे बैठक में राज्य की खनन रॉयल्टी के बकाया 1.36 लाख करोड़ के भुगतान की मांग समेत वन संरक्षण नियम में संशोधन को लेकर अपने पक्ष से केंद्र को अवगत कराएंगे।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कई मौकों पर इसे लेकर अपना पक्ष रख चुके हैं। साथ ही राज्य सरकार ने केंद्र राज्य में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) द्वारा खनन के लिए 1.36 लाख करोड़ रुपये की मांग उठाई है।
10 दशकों से चल रहा है कोयला खनन
हेमंत सोरेन ने कहा है कि इसका भुगतान नहीं होना खनन इकाइयों में समस्या का मुख्य कारण है। कोयला खनन राज्य में करीब 10 दशकों से हो रहा है।
अधिकांश खनन केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा किया जाता है। इन उपक्रमों ने लोगों के कल्याण के लिए पर्याप्त काम नहीं किया है।
नहीं हुई सकारात्मक कार्रवाई
राज्य सरकार ने रॉयल्टी और अन्य मुद्दों का आकलन किया तो पाया कि राज्य के विभिन्न हिस्सों में किए गए कोयला खनन के लिए सार्वजनिक उपक्रमों के पास 1.36 लाख करोड़ रुपए लंबित हैं। इसे लेकर पत्राचार किया गया है, लेकिन सकारात्मक कार्रवाई नहीं हुई।
यदि यह राशि प्राप्त होती तो इसे सामाजिक एवं विकास परियोजनाओं को पूरा करने में किया जाएगा। कुछ माह पूर्व दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ मुलाकात में भी उन्होंने इसे लेकर ज्ञापन सौंपा था।
पीएम मोदी को भी लिखा था पत्र
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने वन संरक्षण नियम में संशोधन पर भी आपत्ति जताई है। इसमें उल्लेख है कि आदिवासियों और वनों पर निर्भर रहने वाले समुदायों की सहमति के बिना भी निजी डेवलपर्स वनों को काट सकेंगे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसपर पुनर्विचार करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा था।
पत्र में उन्होंने उल्लेख किया था कि झारखंड में प्रकृति के साथ विभिन्न आदिवासी समुदाय जीवन जीते हैं। ये प्रकृति पूजक हैं और पेड़ों की पूजा एवं रक्षा करते हैं।
आदिवासी पेड़ों को अपने पूर्वज के रूप में देखते हैं। ऐसे में उनकी सहमति के बगैर पेड़ों को काटना उनकी भावना पर कुठाराघात करना होगा।