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शहरनामा

एफबी वाले ज्ञानी बाबा बचपन में नानी ने कहानी सुनाई थी।

By JagranEdited By: Published: Thu, 04 Jun 2020 03:09 AM (IST)Updated: Thu, 04 Jun 2020 06:15 AM (IST)
शहरनामा
शहरनामा

ब्रजेश मिश्र, रांची

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:: एफबी वाले ज्ञानी बाबा ::

बचपन में नानी ने कहानी सुनाई थी। एक बार दो बहसबाज टकरा गए। न पहला सुन रहा था, न दूसरा चुप बैठने को तैयार। देर तक जब कोई पास नहीं फटका तो बीच का रास्ता निकला। तय हुआ कि पहला अपनी बात कहेगा, दूसरा सुनेगा। बात खत्म होने पर दूसरे की बारी आएगी। समझौते के तहत पहले ने लंबी-लंबी फेंकी। दूसरे की बारी आने पर पहले ने दौड़ लगा दी। दोनों को दौड़ते देख किसी ने कारण पूछा। दूसरे ने दर्द बया किया। इसने अपनी बात सुना दी, मेरी सुन नहीं रहा। दरअसल, आजकल फेसबुक पर कई ज्ञानी बाबा हैं। पहले जहा-तहा ज्ञान बाट रहे थे। बदले मौसम में कोई फटकने नहीं दे रहा तो एफबी पर ज्ञान गंगा बहा रहे हैं। कुछ ने तो खुद को एक्सपर्ट भी घोषित कर रखा है। सब्जेक्ट एक लाइन लिखने में नानी याद आ जाए, यह बात दीगर है। ---

:: दरोगाजी असल बराती ::

असल बराती दरोगाजी रहे। मिठाई रसगुल्ला चाहे जिसे ना मिल रहे हो। दरोगाजी की आवभगत पूरे शबाब पर रही। लॉकडाउन में बड़ी जिम्मेदारी मिली थी। बड़े साहब ने काम दिया था। इलाके में होनेवाली शादियों के घराती-बराती पर नजर रखनी थी। सो, दरोगाजी गली-मोहल्ले में मौका-मुआयना करते रहे। शादी के मंडप के पास उन्हें खड़े देख कई के पसीने छूट गए। पता नहीं क्या लफड़ा हो गया, क्यों आए हैं। कहीं शादी में तय सीमा से अधिक लोग तो नहीं जुट गए। मनोरथ जानकर जान में जान पड़ी। अब साहब वर्दी पहनकर बिन बुलाए आ ही गए तो मेहमानवाजी में कैसे चूक होने देते। भरपूर स्वागत। नाश्ते के साथ भोजन का इंतजाम। निकलते समय विदाई भी मिल गई। इससे बेहतर और क्या हो सकता था। पेट्रोलिंग करते-करते शरीर का भी पूरा पेट्रोल भी तो खत्म हो जाता है। इस बहाने दोनों की व्यवस्था हो गई। --

:: टिक टॉक वाले देशप्रेमी ::

एमपी वाले एक शायर ने लिखा। सीमा पर तनाव है क्या, पता तो करो चुनाव है क्या..। तो आपकी जानकारी के लिए बता दूं। इस बार तनाव भी है और चुनाव भी नहीं है। हा, देश प्रेम जरूर उफान पर है। राजधानी राची में चीनी सामानों का त्याग करने वाला वाट्सएप मैसेज बूम कर रहा है। एक से एक वीडियो वायरल हो रहा है। हैरानी तब हुई जब चीन को कोसने वाला टिक टॉक सामने आ गया। भाई लोगों को कौन समझाए, जिस एप पर दिन-रात नौटंकी कर सफल अभिनेता बनने की कोशिश में जुटे हो। दरअसल, पड़ोसी देश को असल पावर सप्लाई ऐसे ही एप से हो रही है। नया दौर, चीनी दाल की लड़ाई का नहीं, डाटा और आइटी पर कब्जे का है। स्वदेशी जूता पहनने से ज्यादा जरूरी अब स्वदेशी एप अपनाना है। भड़ास निकालने में भला हमसे समृद्ध विरासत किसके पास है। --

::और सुगुनू जी सो गए ::

सुगुनू जी बड़े माहिर राजनेता रहे हैं। हाल के दिनों में थोड़ी नींद से परेशान हैं, जब तब पता नहीं क्यों आ ही जा रही। पहले स्थानीयता के मुद्दे पर इतनी जोर से चिल्लाते थे कि स्थानीय भी इनकी आवाज से डर जाएं। लेफ्ट, राइट, सोशलिस्ट, कम्युनिस्ट की दीवार तोड़कर सुगुनू जी ने हमेशा स्थानीय की राजनीति की। सुगुनू जी का नया ट्रेंड लोगों को खूब भाया। नारेबाजी बड़े काम की रही। हाल के वर्षो में यह जबरदस्त पोषित पल्लवित हुई। समय ने करवट बदली, सुगुनू जी आलाकमान बन गए। अचानक, कुछ दिनों पहले कठिन समय में एक बड़ा फैसला होना था। बड़ी-बड़ी कुर्सी पर बैठने के लिए बड़े-बड़े स्थानीय बड़ी-बड़ी निगाहें लगाए थे। अचानक सुगुनू जी सो गए। शिक्षा वाले बड़े मंदिर का प्रसाद स्थानीय को छोड़कर सभी भक्तजनों में वितरित हो गया। सुगुनू जी सोते रहे। अब उठेंगे तो नारा लगाएंगे। जय झारखंड।


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