नगर सरकार
संकट कोरोना का था। केंद्र सरकार ने लॉकडाउन का पालन करने के बाद अब ऑफिस बुलाया जा रहा है।
:: राजेश पाठक, रांची
:: लॉकडाउन मेहरबान ::
संकट कोरोना का था। केंद्र सरकार ने लॉकडाउन की मियाद इतनी बढ़ाई कि घर में रहने की आदत सी हो गई। अब साहब ऑफिस बुला रहे हैं। तरह-तरह के काम थमा दे रहे हैं, तो कोफ्त हो रही। वाह रे लॉकडाउन.., तू था तो कितना आराम था। न ऑफिस जाने का झझट और न कोई जिम्मेदारी, जवाबदेही। काम तो काम है। साहबों को तो बस बोझे की तरह लादना है। हर दिन साहब की डाट-फटकार मिल रही है। काश! लॉकडाउन-5 थोड़ा मेहरबान होता। दफ्तर से छुट्टी मिलती। घर से काम होता। घर का काम होता। बिना काम हर माह पगार भी मिल रहा था। परिवार वाले भी खुश थे। सुना है, अब शहर की सरकार पूरे फॉर्म में है। बरसात से पहले नाली की सफाई भी अभियंता ही कराएंगे। दो माह आराम के बाद काम पर लौटे भी तो यही लिखा था नसीब में? इधर गंदगी, उधर सड़ांध। ::::::::
:: सख्त हो गए साहब ::
साहब राची नगर निगम में ज्वाइन किए थे तो काफी नरम समझे जाते थे। कोरोना ने उन्हें इतना सख्त कर दिया कि अब उनके सामने किसी की नहीं चलती। समय पर रिपोर्ट न दी तो वेतन काट रहे हैं। अब मानसून के आगमन से पूर्व नालों व नालियों की सफाई को लेकर तल्ख हैं। सफाई कार्य के लिए समय सीमा भी निर्धारित कर दी है। काम में लापरवाही बरतने वालों को कार्यमुक्त करने का फरमान भी जारी कर दिया है। लॉकडाउन की समयावधि में भी चैन नहीं मिला। कभी सैनिटाइजेशन को लेकर तो कभी कूड़ा उठाव को लेकर डाट-फटकार मिलती रही। अब बरसात की तैयारियों को लेकर साहब ने नाक में दम कर रखा है। अब मानदेय के अलावा प्रोत्साहन राशि मिलने की भी गुंजाइश नहीं है। साहब तो बस काम देना जानते हैं। पक्का रिजल्ट भी चाहते हैं। स्थिति करो या मरो जैसी हो गई है। :::::::
:: हद कर दी आपने ::
केंद्र सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा क्या कर दी, साहब ने हद कर दी। लॉकडाउन फेज-1 व 2 में साहब ऑफिस छोड़ घर में चैन की नींद सोते रहे। लॉकडाउन फेज-3 की घोषणा हुई तो घटे-दो घटे अपने दफ्तर में बैठने लगे। अब तो उनके दर्शन भी दुर्लभ हैं। पहले कुछ वार्डो के नक्शे की स्वीकृति प्रदान करते थे। अब तो पूरे शहर के माई-बाप हैं। काम की रफ्तार तो पूछिए मत। वैसे साहब काफी अनुभवी हैं। पिछले 16 वर्षो से नगर विकास विभाग का ही नमक खा रहे हैं। पैतृक विभाग में लौटने का नाम ही नहीं लेते। सरकार किसी की हो, इनकी रामलीला से सभी प्रभावित हो जाते हैं। जाच की आच का भी इन्हें भय नहीं है। पुराने मामलों की बात छिड़ते ही छाती ठोक कहते हैं, जो हुआ सो हुआ। गड़े मुर्दे को उखाड़ने से क्या फायदा। हमाम में सभी नंगे हैं।
:::::::::::::::
सड़कें सुनसान, चौराहे वीरान
कोरोना के खौफ ने शहर की तस्वीर बदल दी है। मुख्य सड़कों पर न तो जाम लग रहे हैं और न ही चौराहों पर ट्रैफिक पुलिस सिटी बजा रही है। ग्रीन सिग्नल देख लोग आगे बढ़ रहे हैं और रेड लाइट जलते ही वाहन रुक रहे हैं। लॉकडाउन से पूर्व व आज के हालात में काफी बदलाव आया है। पुलिस चौक-चौराहों पर कहीं नजर आ रही है, तो कहीं ट्रैफिक बूथ के अंदर। रफ्तार में चलने वाले वाहन भी इन दिनों नजर नहीं आ रहे हैं। फुटपाथ पर फल व सब्जी की दुकानें भी अनगिनत लगी हुई हैं। फिर भी सड़कों पर वाहनों का आवागमन सामान्य है। काश! खाली सड़कों को देख आलाधिकारी कुछ धांसू आइडिया लाते। नई प्लानिंग करते तो शहर की सूरत बदल जाती। लॉकडाउन ने कई सकारात्मक संदेश दिए हैं। जरूरत है इन संदेशों पर अमल करने की। सोचिए, समझिए और प्लानिंग कीजिए। न्यू नॉर्मल अपनाइए।