केंद्र की नई नीति के विरोध में दवा दुकानें बंद, सड़क पर व्यवसायी
रांची में दवा की दुकानें बंद होने के कारण निजी अस्पतालों में कई ऑपरेशन टाल दिए गए हैं।

जागरण संवाददाता, रांची। केंद्र सरकार की नई नीतियों के विरोध में राजधानी रांची की दवा दुकानें पूरी तरह से बंद हैं। मेन रोड से लेकर रिम्स चौक तक की दुकानों का शटर गिरा हुआ है। मरीज परेशान हैं तो इलाज के लिए भी दवाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। दवा की कमी के कारण निजी अस्पतालों में कई ऑपरेशन टाल दिए गए हैं, जबकि रिम्स में सरकारी दवाखाने के कारण स्थिति फिलहाल सामान्य बनी हुई है। वहीं, जामताड़ा में अधिकांश दवा दुकानें खुली हैं।
ऑल इंडिया आर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट (एआइओसीडी) के आह्वान पर यह कदम उठाया जा रहा है। सिर्फ राजधानी रांची में 1232 से भी अधिक दवा दुकानें बंद हैं। इसमें थोक से लेकर खुदरा विक्रेता तक शामिल हैं। ऐसे में राहत सरकार की ओर से संचालित जेनरिक दवाओं की दुकानें दे रही हैं।
जेसीडीए के सचिव अमर कुमार सिन्हा ने कहा कि सरकार दवा कारोबारियों का शोषण कर रही है। ड्रग पोर्टल पर दवा निर्माता, सीएनएफ एजेंट, स्टॉकिस्ट को पंजीकरण कराना होगा।
बिना रजिस्ट्रेशन दवा बिक्री की इजाजत नहीं होगी। दवा विक्रेताओं को डॉक्टर की पर्ची को वेबसाइट पर अपलोड करना होगा, तभी वह किसी को दवा दे सकेंगे। यह गलत है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा बिल अपलोड करना होगा। थोक कारोबारियों को इनवाइस अपलोड करनी होगी। ये नियम पूरी तरह से औचित्यहीन हैं। जिन जगहों पर इंटरनेट की सुविधा नहीं है वहां के व्यापारियों को सबसे ज्यादा दिक्कत होगी। ऐसे नियमों को दवा व्यापारी बर्दाश्त नहीं करेंगे।
अध्यक्ष श्रीकृष्ण प्रधान ने कहा कि सरकार बिना फॉर्मासिस्ट दवा बेचने पर रोक लगा रही है, जबकि अवैध तरीके से ऑनलाइन दवा बिक्री पर कोई रोक नहीं हैं। ड्रग लाइसेंस के नवीनीकरण शुल्क को तीन हजार से बढ़ाकर 30 हजार रुपये करने का प्रस्ताव है।
जेनरिक में हो रहा खेल
महासचिव अमर कुमार सिन्हा ने कहा कि जेनरिक दवाइयों में खेल हो रहा है। इस ओर सरकार का ध्यान नहीं है। जेनरिक दवाइयों की प्रिंट कीमत 20 रुपये होती है, जबकि उसकी असली कीमत 4 से 5 रुपये है। दुकानदार 80 प्रतिशत छूट देकर ग्राहकों को बेवकूफ बनाते हैं।

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