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रांची के इस अस्‍पताल में बिहार से बड़ी संख्‍या में आते हैं लोग, कम पैसे में मानसिक रोग का मिलता है बेहतर इलाज

केंद्रीय मनश्चिकित्सा संस्थान (सीआईपी) कांके में झारखंड या किसी अन्‍य जगह के मुकाबले बिहार से मरीज अधिक आ रहे हैं क्‍योंकि एक तो संस्‍थान काफी पुराना है ऊपर से पैसे भी बेहद कम लगते हैं। ऐसे में इलाज के लिए इसे ही बेहतर विकल्‍प माना जा रहा है।

By Jagran NewsEdited By: Arijita SenPublished: Thu, 25 May 2023 03:29 PM (IST)Updated: Thu, 25 May 2023 03:29 PM (IST)
रांची के इस अस्‍पताल में बिहार से बड़ी संख्‍या में आते हैं लोग, कम पैसे में मानसिक रोग का मिलता है बेहतर इलाज
रांची सीआईपी में भर-भरकर आ रहे हैं बिहार से मरीज।

अनुज तिवारी, रांची। केंद्रीय मनश्चिकित्सा संस्थान (सीआईपी) कांके में मानसिक रोग का इलाज करवाने आने वालों में सबसे अधिक संख्या बिहार के लोगों की है। झारखंड की तुलना में बिहार से पांच गुना से अधिक लोग इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।

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सीआईपी के ओपीडी में बिहारी मरीजों की भीड़

सीआईपी के ओपीडी में हर दिन 10 में से 9 मरीज बिहार से आते हैं जो अपने मानसिक रोग का इलाज व जांच करवाते हैं। वहीं, दूसरी ओर भर्ती होने वालों में भी सबसे अधिक संख्या बिहारियों की है, जो यहां रहकर अपना इलाज करवाते हैं।

CIP में झारखंड के मुकाबले बिहारियों की संख्‍या ज्‍यादा

सीआईपी के प्रशासनिक अधिकारी डा अविनाश शर्मा बताते हैं कि सीआईपी हमेशा से ही मानसिक रोगियों को बेहतर व गुणवता इलाज के लिए तैयार रहता है। इलाज करवाने वालों की संख्या जो देखी जा रही है उसमें सबसे अधिक बिहार के मरीजों की संख्या है। यह संख्या इतनी अधिक है कि इसमें झारखंड के मरीजों की बात करें तो वो काफी कम है।

बिहारियों को है यकीन CIP में मिलेगा बेहतर इलाज

झारखंड से सटे बिहार के जिले से लेकर उत्तर बिहार के मानसिक रोगी सीआईपी में ही अपना इलाज करवाने आते हैं। उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा कि यह केंद्र काफी पुराना है (17 मई, 1918 को स्थापना हुई थी) जो अंग्रेजों के जमाने का है, जो लोगों में उम्मीद जताती है कि बेहतर इलाज मिलेगा। साथ ही बिहार में मनोचिकित्सा को लेकर कोई बेहतर केंद्र नहीं है, जिस कारण भी लोग यहां इलाज के लिए आना चाहते हैं। हालांकि, अब वहां भी कुछ खुल रहे हैं।

सीआईपी में एक वर्ष में एक लाख मनोरोगियों का हुआ इलाज

मनोरोगियों की पहली पसंद सीआईपी बन रही है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर वर्ष एक लाख से अधिक मरीज यहां इलाज करवाने पहुंच रहे हैं। इन रोगियों में बिहार से आने वालों की बात की जाए तो इसमें 80 प्रतिशत लोग झारखंड के बाहर से हैं।

यहां भर्ती होने वालों को मात्र दस रुपये में बेड से लेकर रहने व खाने की व्यवस्था है। दूसरा कारण यह भी है कि यहां उच्च स्तर के कमरे सिर्फ 30 से 40 रुपये तक में मिल जाते हैं। जो देश के अन्य अस्पतालों की तुलना में कम है। डा अविनाश शर्मा बताते हैं कि मरीजों को ना सिर्फ इलाज की सुविधा है, बल्कि बेहतर व इतनी सस्ती इलाज की सुविधा है कि कोई सोच भी नहीं सकता।

बिहारियों का इलाज रिनपास में बंद भी बड़ा कारण

बिहार के मरीजों का इलाज रिनपास में बंद कर दिया गया है। यह झारखंड सरकार की संस्था है और यहां पर बिहारियों का इलाज अब नहीं होता है। जो भी एक प्रमुख कारण है कि सीआईपी में बिहार से आने वाले मरीजों की संख्या बढ़ी है।

रिनपास में बिहारी मरीजों के इलाज का करोड़ों रुपये बकाया है, जिसकी मांग जब राज्य सरकार से की तो कहा गया कि वे बिहार के मरीजों का अब इलाज ना करें और पैसे देने के नाम पर कुछ नहीं दिया गया।

जिसके बाद रिनपास में बिहारी मनोरोगियों का इलाज बंद है और अब उन्हें सिर्फ सीआईपी के ही भरोसे रहना पड़ता है। सरकारी लड़ाई में सिर्फ बिहार के मरीजों को ही नुकसान उठाना पड़ रहा है। रिनपास में पूरा इलाज निश्शुल्क दिया जाता है।


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