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राजधानी के उद्योगों पर जारी है बिजली का सितम

बिजली की स्थिति आज भी नहीं सुधरी। चुनाव के दौरान यह मुद्दा नहीं बनता है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 06:55 AM (IST)Updated: Tue, 26 Mar 2019 06:55 AM (IST)
राजधानी के उद्योगों पर जारी है बिजली का सितम
राजधानी के उद्योगों पर जारी है बिजली का सितम

विवेक आर्यन, रांची :

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मोमेंटम झारखंड के तहत उद्योग स्थापित करने का कदम आज भी राजधानी की पायदान से दूर है। नए उद्योग तो बहुत दूर की बात है, छोटे उद्योग भी बुरे दौर से गुजर रहे हैं। और इनकी एक बड़ी वजह है राजधानी की बदहाल बिजली व्यवस्था। राज्य गठन के दो दशक पूरे होने को हैं, लेकिन उद्योगों को निर्बाध बिजली देने की कोई भी योजना नहीं बन सकी। जैसे आम लोगों के घरों के में बिजली कटती है, ठीक वैसे ही उद्योगों की बत्ती भी कभी भी गुल हो जाती है। बिजली की ऐसी व्यवस्था से सभी उद्योग त्रस्त हैं लेकिन किसी भी राजनीतिक पार्टी ने इस मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में शामिल नहीं किया है। उद्योग लगाने का जिक्र भाषणों में जरूर हुआ है।

राजधानी के उद्योग कई वर्षो से घाटे में हैं। कोकर, नामकुम, तुपुदाना और मेसरा औद्योगिक क्षेत्रो में डेडिकेटेड लाइन की कोई व्यवस्था नहीं है। मेसरा में डेडिकेटेड लाइन दी गई थी, जिसे बाद में अन्य कार्यो के प्रयोग में भी लाया गया। उद्योगों में बिजली नहीं कटे, या अगर कटे तो इसके पूर्व सूचना मिले इसकी कोई योजना सरकार या विभाग के पास नहीं है। औद्योगिक क्षेत्रों के लिए कोई अधिकारी नियुक्त नहीं है। डिविजन के कार्यपालक अभियंता ही अपने क्षेत्र के औद्योगिक क्षेत्रों के लिए जिम्मेदार हैं। अलग सबस्टेशन आदि की भी कोई योजना नहीं बन सकी है। इन सबसे अभी तक के सरकारों का रवैया साफ हो जाता है और इस बात का भी जवाब मिल जाता है कि राजनीतिक पार्टियां उद्योगों के विकास को लेकर कितने गंभीर हैं। नहीं मिलती है उद्योगों में बिजली कट की सूचना

शहर के उद्योगपति बताते हैं कि औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली कटना आम बात है। काम करते हुए कभी भी बिजली गुल हो जाती है। अन्य शहरों में नियम है कि औद्योगिक क्षेत्रों में बिजली काटने से पूर्व सूचना दी जाती है, इससे उद्योग अपनी तैयारी कर लेते हैं और नुकसान कम होता है। लेकिन रांची में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। इसका परिणाम है कि नए उद्योग लग नहीं रहे और पुराने बंद होने की स्थिति में हैं। -----------------------

वोट की राजनीति में बिजली अब मुद्दा नहीं

देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को यह एहसास हो गया है कि बिजली अब कोई मुद्दा नहीं रह गई है। जनता को रिझाने के लिए उन्हें और भावुक विषय मिल गए हैं। इसका सुबूत है कि राज्य की टैरिफ निर्धारण के पहले जन-सुनवाई में एक भी पार्टी का कोई कार्यकर्ता उपस्थित नहीं हुआ। आज की सरकारें जनहित के मुद्दों को छोड़ कर वोट की राजनीति में लगी हुई हैं। कोट ::

दिल्ली, मुंबई और कोलकाता में अलग-अलग सरकारें हैं। लेकिन तीनों शहरों में बिजली की स्थिति बेहतरीन है। क्योंकि वहां की सरकारों को पता है कि अगर बिजली नहीं दी तो जनता सरकार गिरा देगी। यह डर यहां की सरकारों को नहीं है। इसलिए वे बिजली को मुद्दा मानती ही नहीं है। राज्य में बिजली की स्थिति को सुधारने का एक मात्र उपाय है कि सरकार इस भ्रष्ट तंत्र को संरक्षण देना बंद करे और बिजली को प्रोफेशनल हाथों में सौंप दे। जमशेदपुर इसका एक बेहतरीन उदाहरण है।

: अजय भंडारी, चेयरमैन, इंडस्ट्रीज उपसमिति, झारखंड चैंबर। जो उद्योग निर्बाध बिजली पर केंद्रित हैं उनका नुकसान ज्यादा है। अचानक बिजली कटने से पूरी प्रक्रिया दोबारा शुरू करनी पड़ती है। जो माल प्रक्रिया के अधीन है वो खराब हो जाता है, प्रोडक्शन खर्च बढ़ जाता है और प्रोडक्ट की गुणवत्ता पर भी असर पड़ता है। राजधानी में उद्योगों के विकास पर बिजली की वर्तमान स्थिति सबसे बड़ी बाधा है। जबकि रांची के अलावा अन्य शहरों में स्थिति अलग है। बेहद जरूरी है कि रांची की बिजली व्यवस्था भी निजी हाथों में सौंप दी जाए। आज भी उद्योगों में बिजली आपूर्ति राजनीतिक पार्टियों के लिए कोई महत्व नहीं रखता है।

- एसके अग्रवाल, अध्यक्ष, जेसिया।


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