कैंपस कथा
मैडम को नया टर्म फिर से मिल गया है। बहुत खुश हैं।
प्रणय कुमार सिंह, रांची :
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:: मैडम की पहुंच ::
मैडम का कार्यकाल एक टर्म और बढ़ गया है। उम्मीद भी ऐसी ही थी, लेकिन मैडम की पहुंच पर सभी को तब आश्चर्य हुआ जब राज्य के विश्वविद्यालयों में कार्यरत शिक्षाविदों में से केवल मैडम का चयन हुआ। इनके अलावा सात अन्य कुलपति और प्रतिकुलपति की नियुक्ति हुई, लेकिन सभी राज्य के बाहर के शिक्षण संस्थानों से हैं। ऐसे में आश्चर्य होना लाजिमी था। मैडम का फोन घनघनाता रहा। लगातार बधाइया मिल रही थी। मैडम भी खूब खुश। ऑफिस पहुंचीं तो बड़े साहब से लेकर अधिकारियों और कर्मचारियों ने गुलदस्ता भेंट कर स्वागत किया। मैडम के लिए तो यहा कुछ भी नया नहीं था। पहला टर्म तो इन्हीं लोगों के बीच और इसी कैंपस में बीता था। मैडम को चिंता सता रही थी कि दूसरे टर्म में सबसे पहले आखिर किस चीज से सामना होगा। एक लाख से अधिक डिग्रिया उनके हस्ताक्षर की बाट जोह रही हैं। --
:: लाट साहब का फरमान ::
लाट साहब का फरमान था कि अनुबंध शिक्षकों के मानदेय का भुगतान कर दिया जाए। अब जब भुगतान की फाइल बढ़ी तो सभी फेका-फेकी करने लगे। अलग-अलग बहाने बनाने लगे। विवि के बिग बॉस कह रहे हैं कि विभागाध्यक्ष ने क्लास की सूची नहीं भेजी है। इधर विभागाध्यक्ष कह रहे हैं कि मार्च में जब कक्षा ही नहीं हुई तो उसकी संख्या कैसे बता दें। अनुबंध शिक्षकों का कहना है कि उन्होंने ऑनलाइन स्टडी मैटेरियल्स तो दिया। सभी के अपने-अपने तर्क हैं, लेकिन लाट साहब के निर्देश का क्या? अब कुछ नई बातें सामने आ रहीं है। बिग बॉस परेशान हो गए। कह रहे हैं कि इस संबंध में उच्च शिक्षा विभाग से मार्गदर्शन मागेंगे, लेकिन अभी तक नहीं मिला है। वहा से मार्गदर्शन मिल जाए, तभी आगे कुछ कह सकते हैं। बढ़ सकते हैं। थके-हार शिक्षकों की आखिरी उम्मीद भी अब विभाग से ही है।
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:: दिल के अरमा ::
लॉकडाउन से तो सभी को परेशानी हुई, लेकिन कई मास्टर साहब का तो वर्षो का सपना ही बिखर गया। अरमान धरे रह गए। दरअसल, लॉकडाउन के दौरान ही कई मास्टर साहब रिटायर हो गए। दिल में बड़े अरमान पाल रखे थे कि उनकी विदाई धूमधाम से होगी, लेकिन कोरोना ने इस पर पानी फेर दिया। मास्टर साहब का दर्द यहीं नहीं खत्म हो जाता है। अरमान तो धुले ही, इन्हें बटुए को लगी चपत का भी मलाल है। दरअसल, जैक की कॉपियों की जाच 20 मार्च से होनी थी, लेकिन लॉकडाउन के कारण यह 28 मई से शुरू हो पाई। मास्टर साहब ने 20 मार्च को कॉपियों के मूल्याकन के लिए योगदान दे दिया था, लेकिन जब 28 मई से दोबारा मूल्याकन शुरू हुआ तो वे सेवानिवृत्त हो चुके थे। मलाल है कि लॉकडाउन नहीं होता तो मूल्याकन से भी कुछ पैसे आ जाते।
प्रैक्टिकल की खानापूर्ति
राज्य के सबसे पुराने विवि में पहली बार वर्चुअल प्रैक्टिकल हो रहा है। नई-नई तकनीक लागू हुई तो सभी खुश। विवि तकनीक के मामले में तरक्की की राह पर है। पहले दिन तो किसी कॉलेज में प्रैक्टिकल नहीं हुआ। एक-दो दिन बीता तो सुगबुगाहट तेज हुई। मुख्यालय से निर्देश जारी हुआ था कि 10 जून तक सभी को अपने-अपने छात्रों का वर्चुअल प्रैक्टिकल ले लेना है ताकि रिजल्ट जारी कर सकें। टाइम 10 जून तक का था इसलिए निश्चितता थी, लेकिन शुरू तो करना ही था। शुरुआत हुई तो पता चला कि कहीं नेट का सिग्नल नहीं है तो किसी के पास डाटा पैक नहीं। ग्रामीण क्षेत्र से यह समस्या अधिक आने लगी। छात्र संगठन भी वर्चुअल प्रैक्टिकल का विरोध करने लगे। इसके बाद मुखिया समझाने लगे कि जिनका प्रैक्टिकल छूटेगा, उनके लिए बाद में व्यवस्था की जाएगी। कुल मिलाकर प्रैक्टिकल के नाम पर खानापूíत हो रही है।