18 साल में झारखंड बना 50,845 करोड़ का कर्जदार
हर झारखंडी के सिर पर 14,123 रुपये का कर्ज पिछले वित्तीय वर्ष में ही 5000 करोड़ रुपये का बढ़ा बोझ
-हर झारखंडी के सिर पर 14,123 रुपये का कर्ज
-पिछले वित्तीय वर्ष में ही 5000 करोड़ रुपये का बढ़ा कर्ज
-महालेखापरीक्षक के 851 निरीक्षण आवेदन का सरकारी विभागों नहीं दिया जवाब
-विभागों की लापरवाही से राज्य सरकार को करीब 13000 करोड़ रुपए राजस्व का नुकसान राज्य ब्यूरो, रांची
गठन के शुरूआती वर्षों में बेहतर वित्तीय अनुशासन वाले राज्यों में शुमार झारखंड की स्थिति कर्ज के मामले में अच्छी नहीं है। कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है और जवाबदेह तंत्र इसपर अंकुश लगाने में नाकामयाब दिख रहा है। विधानसभा में शुक्रवार को पेश किए गए भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की ताजा रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर हुआ है। सीएजी की रिपोर्ट बताती है कि पिछले 18 साल में झारखंड पर कर्ज का बोझ बढ़कर 50,845 करोड़ रुपये हो चुका है। इसके मुताबिक अगर वर्ष 2011 की जनसंख्या को आधार बनाएं तो हर झारखंडी 14,123 रुपये का कर्जदार है। पिछले साल यह कर्ज का आंकड़ा करीब 46 हजार करोड़ रुपये था। वर्तमान कर्ज का बोझ पिछले साल से करीब पांच हजार करोड़ रुपये अधिक है। इसी तरह सरकार का घाटा भी बढ़ता गया है। साल 2012-13 के दौरान यह घाटा एक हजार करोड़ रुपये था, लेकिन 2016-17 के दौरान यह बढ़कर 6 हजार करोड़ रुपये हो गया है।
कुछ ऐसा ही हाल राजस्व का है। साल 2016-17 में सरकार को 47,054 करोड़ राजस्व मिला है। पिछले साल यह 40,638 करोड़ था। पिछले साल से 23 फीसद राजस्व व्यय बढ़कर इस बार 53,625 करोड़ रुपये हो गया। इसी तरह पूंजीगत व्यय 33 फीसद बढ़कर 13 हजार करोड़ रुपये हो गया।
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बिना बजट अनुमान के बढ़ोतरी
महालेखाकार सीएम सिंह ने बताया कि राज्य के कई विभागों ने मुख्य सचिव, वित्त सचिव की अध्यक्षता की बैठक में बजट अनुमानों को बिना कारण बताए ही उसमें वृद्धि कर दी। जिसके चलते कर राजस्व बजट अनुमानों एवं वास्तविक प्राप्ति के बीच बहुत ज्यादा भिन्नता रही। साल 2008 से 2017 के बीच 851 निरीक्षण आवेदन भेजे गए लेकिन संबंधित विभागों ने कोई जवाब नहीं दिया। जिसके चलते करीब 13 हजार करोड़ रुपये के राजस्व की वसूली नहीं हो सकी।
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2749 करोड़ अधिक खर्च किया सरकारों ने :
झारखंड बनने के बाद से यहां की सरकारों ने अबतक 2749 करोड़ रुपये अधिक व्यय किया, लेकिन इसके विनियमन के लिए सरकार ने इसे विधानसभा में प्रस्तुत ही नहीं किया। इसी तरह झारखंड के 88 प्रतिशत से अधिक सार्वजनिक लोक उपक्रमों के आठ वर्षो की अवधि तक लेखे बकाया हैं। इसके बाद भी वित्त विभाग ने इन सार्वजनिक लोक उपक्रमों को 2016-17 के दौरान 2 हजार 673 करोड़ रुपये बजटीय सहायता उपलब्ध कराई।
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280 परियोजनाएं नहीं हो सकीं पूरी :
राज्य सरकार की ओर से पूरी नहीं होने वाली 280 परियोजनाओं को 31 मार्च 2017 तक पूरा करना था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। परियोजनाओं में विलंब होने के कारण लागत में बढ़ोतरी होती गई। इसमें से आठ परियोजनाओं की लागत 341 करोड़ रुपये थी। समय से पूरा नहीं होने के चलते संशोधित अनुमान 460 करोड़ रुपये हो गया।
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विभागों की अधूरी योजनाएं
भवन निर्माण - 08
पेयजल एवं स्वच्छता - 23
पथ निर्माण - 134
ग्रामीण कार्य - 39
जल संसाधन - 76
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