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बुद्धं शरण गच्छामि, धम्मं शरण गच्छामि, संघ शरण गच्छामि..

राची दुनिया को सत्य अहिंसा और करुणा की सीख देने वाले भगवान बुद्ध का जन्मो

By JagranEdited By: Published: Thu, 07 May 2020 01:04 AM (IST)Updated: Thu, 07 May 2020 01:04 AM (IST)
बुद्धं शरण गच्छामि, धम्मं शरण गच्छामि,  संघ शरण गच्छामि..
बुद्धं शरण गच्छामि, धम्मं शरण गच्छामि, संघ शरण गच्छामि..

जागरण संवाददाता, राची : दुनिया को सत्य, अहिंसा और करुणा की सीख देने वाले भगवान बुद्ध का जन्मोत्सव गुरुवार को मनाया जाएगा। उनका जन्म बैसाख पूर्णिमा को हुआ था। इस कारण बैसाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा भी कहा जाता है। 563 ईसा पूर्व शाक्य गणराज्य के लुंबिनी(वर्तमान नेपाल ) में गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्मावलंबियों के लिए बेहद खास दिन होता है। क्योंकि बैसाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान का जन्म हुआ, ज्ञान की प्राप्ति और महानिर्वाण हुआ था। दुनियाभर के करोड़ों बौद्ध धर्मावलंबी बुद्ध पूर्णिमा को उत्सव के रूप में मनाते है। राजधानी डोरंडा, नेपाल हाउस स्थित छोटानागपुर बौद्ध सोसाइटी मंदिर, जैप वन के अलावा कई स्थानों पर भगवान बुद्ध की सादगीपूवर्क पूजा-अर्चना की जाएगी। दोमाग पाठ के बीच बुद्ध के वचन बुद्धं शरण गच्छामि, धम्मं शरण गच्छामि और संघ शरण गच्छामि का पाठ किया जाएगा।

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1994 में छोटानागपुर बौद्ध सोसाइटी के नाम से पंजीयन राजधानी राची में बुद्ध पूर्णिमा पर पूजा अर्चना की शुरुआत डोरंडा स्थित बीएमपी परिसर(वर्तमान में जैप वन) में हुई थी। 1915 में अंग्रेजी शासन में सुबेदार रहे आरबी तमाग ने केसरी लामा व अजय कुमार के सहयोग से बुद्ध पूर्णिमा पर पूजा की परंपरा शुरू की। आरबी तमाग के पुत्र छोटानागपुर बौद्ध सोसाइटी के अध्यक्ष एसके तमाग के अनुसार 1805 में जैप परिसर में शिव मंदिर बनाया गया था। अन्य देवी-देवताओं के साथ भगवान बुद्ध की प्रतिमा भी स्थापित की गई थी लेकिन विशेष पूजा नहीं होती थी। बाद में जब छावनी में बौद्ध धर्मावलंबियों की संख्या बढ़ी तो इसकी शुरुआत की गई। तभी से जैप में हर साल बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष पूजा-अर्चना होती है। हालाकि, जैप वन के बाहर भव्य रूप से 1994 से बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाने लगी। इसका श्रेय एसके तमाग को जाता है। राची डीसी ऑफिस में बड़ा बाबू से सेवानिवृत्त हुए एसके तमाग का जवानी के दिनों से ही धार्मिक कायरें काफी रूचि है। नौकरी के साथ-साथ समाज को एकजुट करने में जुटे रहे।1994 में छोटानागपुर बौद्ध सोसाइटी के नाम से पंजीयन कराने के बाद पहली बार राची की धरती पर सार्वजनिक उत्सव मनाया गया। दोमाग पाठ के लिए बाहर से लामाओं को बुलाया जाने लगा।1996-97 से भव्य शोभायात्रा निकाली जाने लगी। एसके तमाग के अनुसार पहली बार जब शोभायात्रा निकाली गई तो दिशोम गुरु शिबु सोरेन भी शामिल हुए थे। ...............

कारोना संक्त्रमण से बचें, घर में ही करें पूजा :

विश्वव्यापी कोरोना महामारी व लॉक डाउन के कारण जैप वन में सार्वजनिक आयोजन नहीं होंगे। सिर्फ विधिवत पूजा संपन्न कराई जाएगी। कोरोना संक्त्रमण से बचने के लिए आवश्यक है कि धर्मावलंबी अपने घरों में रहकर ही भगवान बुद्ध की आराधना करें। बाहर न निकलें।

पेमन जिमबा, बौद्ध परिवार, जैप वन

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दुनिया कोरोना संक्रमण से जूझ रही है। ऐसे में भगवान बुद्ध की विश्व बंधुत्व व ओर दूसरे की वेदना व दुख दूर करने की शिक्षा का पालन करने से ही महामारी से निजात पाई जा सकती है। छोटानागपुर बौद्ध सोसाइटी मंदिर में बड़े आयोजन नहीं होंगे। सामान्य पूजा होगी। विश्व की सुख समृद्धि के लिए विशेष प्रार्थना की जाएगी।

एसके तमाग, अध्यक्ष छोटानागपुर बौद्ध सोसाइटी, राची


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