Buddha Purnima: रांची भी आए थे भगवान बुद्ध... 1880 में गोरखा रेजिमेंट स्थापना के बाद बौद्ध अनुयायी का हुआ आगमन
Buddha Purnima Today रांची एवं आसपास के इलाकों में करीब 10 हजार आबादी है बौद्ध अनुयायियों की। अधिकतर महायान पंत को मानने वाले। शुरुआत में 400-500 सेवानिवृत जवानों को रखा गया था गोरखा रेजिमेंट में। सबसे ज्यादा संख्या दार्जिलिंग इलाकों के जवानों की थी।
रांची, (नीलमणि चौधरी)। सोमवार को भगवान बुद्ध की 2566वीं जयंती मनायी जा रही है। राजधानी रांची के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले बौद्ध अनुयायी भगवान बुद्ध की जयंती को धूमधाम से मना रहे हैं। धार्मिक अनुष्ठान के साथ भगवान बुद्ध के शांति व करुणा का संकल्प लिया जा रहा है। रांची एवं आसपास में करीब 10 हजार बौद्ध अनुयायी स्थायी रूप से रहते हैं। अधिकतर बौद्ध धर्म के महायान पंत के मानने वाले हैं। महायान बौद्ध धर्म की प्रमुख शाखा है। भारत सहित एशिया के अन्य देशों तिब्बत, चीन, जापान, कोरिया आदि देशों में सर्वाधिक जनसंख्या महायान के अनुयायियों की ही है। दक्षिणी छोटानागपुर बौद्ध सोसाइटी के अध्यक्ष एसके तमांग के अनुसार अपने प्रवास के दौरान भगवान बुद्ध रांची आये थे। दंतकथा के अनुसार रांची-पुरुलिया राजमार्ग स्थित जोन्हा फाल में भगवान बुद्ध स्नान किया था। इस कारण इस फाल का नामांकरण गौतम धारा रखा गया। गौतम धारा फाल के एक छोर पर भगवान बुद्ध को समर्पित एक मंदिर और एक आश्रम भी है।
अंग्रेज अधिकारी ने नेपाल हाउस के समीप सैन्य छावनी बनाया
झारखंड सशस्त्र बल वन एसोसिएशन के कोषाध्यक्ष पेमन जिम्बा के अनुसार रांची में बौद्ध धर्मावलंबियों का आगमन 1880 में अंग्रेज द्वारा गोरखा सैन्य पुलिस रेजिमेंट की स्थापना के बाद हुआ। गोरखा की वीरता को देखते हुए अंग्रेज अधिकारी ने विशेष रूप से नेपाल हाउस के समीप एक सैन्य छावनी बनाया जिसका नाम गोरखा सैन्य पुलिस रेजिमेंट रखा गया था। शुरुआती समय में सेना से सेवानिवृत 400-500 जवानों को सेवा में रखा गया था। अधिकतर जवान दार्जिलिंग, सिलांग, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, नेपाल हाउस क्षेत्र से थे। धीरे-धीरे लोग यहीं बसते गए। आज राजधानी के नामकुम, हेसाग, डोरंडा, सिद्धार्थ नगर में बड़ी आबादी बौद्ध धर्म को मानने वालों की है। रांची के आसपास खूंटी, सरायकेला में भी काफी बौद्ध धर्म के मानने वाले रहते हैं।
रांची के रहने वाले बौद्धों को संस्कार के लिए नहीं मिलते बौद्ध भिक्षु
राजधानी में रहने वाले बौद्ध अनुयायियों को विवाह या फिर अंतिम संस्कार के लिए दार्जिलिंग के बौद्ध भिक्षु पर निर्भर रहना पड़ता है। झारखंड सशस्त्र बल वन में 2002 में बौद्ध मंदिर बनाया गया था। मंदिर की पूजा अर्चना के लिए बौद्ध भिक्षु को रखा गया है लेकिन एक भिक्षु अपर्याप्तत है। छोटानागपुर बौद्ध सोसाइटी के अध्यक्ष एसके तमांग के अनुसार शादी या अन्य संस्कार के लिए तो भिक्षु को बुलाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। सबसे ज्यादा परेशानी अंतिम संस्कार में होती है। दार्जिलिंग से भिक्षु को बुलाने तक शव को बर्फ में रखना पड़ता है। वहां से भिक्षु आते हैं तब अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की जाती है। एसके तमांग के अनुसार शिक्षा ग्रहण करने के बाद अधिकतर भिक्षु थाईलैंड, मलेशिया, जापान चले जाते हैं। वहां अच्छी आमदनी होती है।